हनुमानजी के 11 ऐसे रहस्य जिन्हें पढ़कर चौंक जाएंगे आप

अनिरुद्ध जोशी
।।चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।।
 
 
आज हम हनुमानजी के बारे में आपको कुछ नई बातें बताएंगे। संभवत: आपने यह बातें कभी कहीं नहीं पढ़ी होगी। नीचे जो लिंक दी गई है उसके लेखों से भिन्न यह जानकारी आपको जरूर आश्चर्य में डाल देगी।
 
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हनुमानजी के 10 पराक्रम, जानिए
 
13वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और 20वीं शताब्दी में स्वामी रामदास हनुमान को देखने का दावा करते हैं।
 
हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक धरती पर रहेंगे। जब कल्कि रूप में भगवान विष्णु अवतार लेंगे तब हनुमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, विश्वामित्र, विभीषण और राजा बलि सार्वजनिक रूप से प्रकट हो जाएंगे। कलियुग में हनुमानजी, भैरव, काली और माता अम्बा को जाग्रत देव माना गया है। इनका ध्यान करने पर यह तुरंत ही सक्रिय हो जाते हैं। इसलिए जहां इनकी भक्ति सरल है वहीं इनको क्रोधित करना भी सरल ही है। इनके क्रोधित होने पर आप को कहीं सु‍रक्षित जगह नहीं मिलेगी।
 
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हनुमानजी के गुरु : मातंग ऋषि के शिष्य थे हनुमानजी। हनुमानजी ने कई लोगों से शिक्षा ली थी। सूर्य, नारद के अलावा एक मान्यता अनुसार हनुमानजी के गुरु मातंग ऋषि भी थे। मातंग ऋषि शबरी के गुरु भी थे। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था।
 
मातंग ऋषि के यहां माता दुर्गा के आशीर्वाद से जिस कन्या का जन्म हुआ था वह मातंगी देवी थी। दस महाविद्याओं में से नौवीं महाविद्या देवी मातंगी ही है। यह देवी भारत के आदिवासियों की देवी है। दस महाविद्याओं में से एक तारा और मातंग देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं। बौद्ध धर्म में मातंगी को मातागिरी कहते हैं।
 
भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों में मातंग समाज के लोग आज भी विद्यमान है। मान्यता अनुसार मातंग समाज, मेघवाल समाज और किरात समाज के लोगों के पूर्वज मातंग ऋषि ही थे। श्रीलंका में ये आदिवासी समूह के रूप में विद्यमान है। कुछ विद्वानों अनुसार मेघवाल समाज भी मातंग ऋषि से संबंधित है। ये सभी मेघवंशी हैं।
 
सेतु एशिया नामक एक वेबसाइट ने दावा किया है कि श्रीलंका के जंगलों में एक आदिवासी समूह से हनुमानजी प्रत्येक 41 साल बाद मिलने आते हैं। सेतु के शोधानुसार श्रीलंका के जंगलों में एक ऐसा कबीलाई समूह रहता है जोकि पूर्णत: बाहरी समाज से कटा हुआ है। इसका संबंध मातंग समाज से है जो आज भी अपने मूल रूप में है। उनका रहन-सहन और पहनावा भी अलग है। उनकी भाषा भी प्रचलित भाषा से अलग है।
 
सेतु एशिया नाम इस आध्यात्मिक संगठन का केंद्र कोलंबों में है जबकि इसका साधना केंद्र पिदुरुथालागाला पर्वत की तलहटी में स्थित एक छोटे से गांव नुवारा में है। इस संगठन का उद्देश्य मानव जाति को फिर से हनुमानजी से जोड़ना है। सेतु नामक इस आध्यात्मिक संगठन का दावा है कि इस बार 27 मई 2014 हनुमानजी ने इन आदिवासी समूह के साथ अंतिम दिन‍ बिताया था। इसके बाद अब 2055 में फिर से मिलने आएंगे हनुमानजी। सेतु संगठन अनुसार इस कबीलाई या आदिवासी समूह को मातंग लोगों का समाज कहा जाता है।
 
उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास मातंग ऋषि का आश्रम है जहां हनुमानजी का जन्म हुआ था। इस समूह का कहीं न कहीं यहां से संबंध हो सकता है। श्रीलंका के पिदुरु पर्वत के जंगलों में रहने वाले मातंग कबीले के लोग संख्या में बहुत कम हैं और श्रीलंका के अन्य कबीलों से काफी अलग हैं।
 
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हनुमान और रामजी का युद्ध : भगवान राम का अपने भक्त हनुमान से युद्ध भी हुआ था। गुरु विश्वामित्र के निर्देशानुसार भगवान राम को राजा ययाति को मारना था। राजा ययाति ने हनुमान से शरण मांगी। हनुमान ने राजा ययाति को वचन दे दिया।

हनुमान ने किसी तरह के अस्त्र-शस्त्र से लड़ने के बजाए भगवान राम का नाम जपना शुरू कर दिया। राम ने जितने भी बाण चलाए सब बेअसर रहे। विश्वामित्र हनुमान की श्रद्धाभक्ति देखकर हैरान रह गए और भगवान राम को इस धर्मसंकट से मुक्ति दिलाई।
 
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कुंति पुत्र भीम है हनुमानजी के भाई : श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था। हनुमानजी का जन्म श्रीराम के जन्म से कुछ वर्ष पूर्व हुआ था। इसी तरह श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व हुआ था। इस मान से भीम का जन्म श्रीकृष्ण के जन्म से कुछ वर्षों पूर्व हुआ था। हनुमान और भीम के जन्म में कम से कम 2002 हजार वर्षों का अंतर आता है। तब आप सोच रहे होंगे कि वे दोनों भाई कैसे हो सकते हैं?
दरअसल, हनुमानजी पवनपुत्र हैं। कुंति ने भी पवनदेव की माध्यम से ही भीम को जन्म दिया था। इस मान से दोनों के पिता एक ही हैं। इसीलिए भीम को भी पवनपुत्र कहा जाता है। दोनों ही शक्तिशाली हैं। माना जाता है कि कुंती पुत्र भीम में हजार हाथियों का बल था। युद्ध में भीम से ज्यादा शक्तिशाली सिर्फ उनका पुत्र ही था।
 
भीम की परीक्षा : एक बार भीम अपनी पत्नी के लिए एक फूल ढ़ूढ रहे थे तो रास्ते में एक बंदर मिला जो अपनी पूंछ से रास्ता रोके हुआ था। भीम ने उससे पूंछ हटाने के लिए कहा। तब बंदर ने चुनौती देते हुए कहा कि अगर वह उसकी पूंछ हटा सकता है तो हटा दे लेकिन भीम उसकी पूंछ हिला भी नहीं पाए तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि यह कोई साधारण बंदर नहीं है। यह बंदर और कोई नहीं बल्कि हनुमान थे।
 
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कुंति पुत्र भीम है हनुमानजी के भाई : श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था। हनुमानजी का जन्म श्रीराम के जन्म से कुछ वर्ष पूर्व हुआ था। इसी तरह श्रीकृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व हुआ था। इस मान से भीम का जन्म श्रीकृष्ण के जन्म से कुछ वर्षों पूर्व हुआ था। हनुमान और भीम के जन्म में कम से कम 2002 हजार वर्षों का अंतर आता है। तब आप सोच रहे होंगे कि वे दोनों भाई कैसे हो सकते हैं?
दरअसल, हनुमानजी पवनपुत्र हैं। कुंति ने भी पवनदेव की माध्यम से ही भीम को जन्म दिया था। इस मान से दोनों के पिता एक ही हैं। इसीलिए भीम को भी पवनपुत्र कहा जाता है। दोनों ही शक्तिशाली हैं। माना जाता है कि कुंती पुत्र भीम में हजार हाथियों का बल था। युद्ध में भीम से ज्यादा शक्तिशाली सिर्फ उनका पुत्र ही था।
 
भीम की परीक्षा : एक बार भीम अपनी पत्नी के लिए एक फूल ढ़ूढ रहे थे तो रास्ते में एक बंदर मिला जो अपनी पूंछ से रास्ता रोके हुआ था। भीम ने उससे पूंछ हटाने के लिए कहा। तब बंदर ने चुनौती देते हुए कहा कि अगर वह उसकी पूंछ हटा सकता है तो हटा दे लेकिन भीम उसकी पूंछ हिला भी नहीं पाए तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि यह कोई साधारण बंदर नहीं है। यह बंदर और कोई नहीं बल्कि हनुमान थे।
 
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माता जगदम्बा के सेवक हनुमान : रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक हैं। हनुमानजी माता के आगे-आगे चलते हैं और भैरवजी पीछे-पीछे। माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास हनुमान और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं। हनुमान की खड़ी मुद्रा में और भैरव का कटा सिर होता है। कुछ लोग उनकी यह कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़कर देखते हैं। 
भगवान श्रीराम और माता दुर्गा की कृपा चाहने के लिए हनुमानजी की भक्ति जरूरी होती है। हनुमानजी की शरण में जाने से सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इसके साथ ही जब हनुमानजी हमारे रक्षक हैं तो हमें किसी भी अन्य देवी, देवता, बाबा, साधु, पीर-फकीर, ज्योतिष आदि की बातों में भटकने की जरूरत नहीं। धर्म की स्थापना और रक्षा का कार्य 4 देवों के हाथों में है- दुर्गा, भैरव, हनुमान और कृष्ण।
 
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हनुमानजी ने इस तरह भी दिया था प्रभु श्रीराम का साथ : माना जाता है कि महापंडित और शिवभक्त रावण युद्ध में अपनी विजय सुनिश्चत करने के लिए त्रिदेवों की जननी माता चंडी दुर्गा का पाठ ब्राह्मणों से करवा रहा था। ब्राह्मणों के पाठ की तैयारी और उनकी सेवा के लिए कई लोग नियुक्त थे। उन्हीं लोगों के बीच हनुमानजी भी ब्राह्मण बालक का रूप धरकर ब्राह्मणों की सेवा में जुट गए।
बालक हनुमानजी की निःस्वार्थ सेवा देखकर चण्‍डी पाठ करने वाले उन ब्राह्मणों ने प्रसन्न होकर हनुमानजी से वर मांगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा:- प्रभु, यदि आप मेरी सेवा से प्रसन्न हैं तो आप जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका केवल एक अक्षर मेरे कहे अनुसार बदल दीजिए।
 
माना जाता है कि हनुमानजी स्‍वयं शास्‍त्रों के ज्ञाता हैं। उनके जैसा ज्ञानी अन्‍य कोई नहीं हैं, इसलिए हनुमानजी चण्‍डी पाठ के लिए उच्‍चारित किए जा रहे एक-एक मंत्र का गूढ़ अर्थ जानते थे, जबकि मंत्रों का इतना गहन ज्ञान उन ब्राह्मणों को नहीं था। सो वे ब्राह्मण, हनुमानजी के इस रहस्य को समझ न सके और जल्दबाजी में तथास्तु कह दिया। दरअसल, हनुमानजी ने चण्‍डीपाठ के जयादेवी…भूर्तिहरिणी वाले मंत्र में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करने का निवेदन किया, जिसे उन ब्राह्मणों ने मान लिया था।
 
‘भूर्तिहरिणी’ का अर्थ होता है प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ‘भूर्तिकरिणी‘ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली। उच्‍चारण के इस परिवर्तन मात्र से माता चण्‍डी का पाठ विकृत हो गया, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण को अमरता प्रदान करने के स्‍थान पर उसका सर्वनाश कर दिया।
 
मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमानजी को चोला चढ़ाएं। हनुमान जयंती या महीने के किसी भी मंगलवार के दिन सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें। 1 लोटा जल लेकर हनुमानजी के मंदिर में जाएं और उस जल से हनुमानजी की मूर्ति को स्नान कराएं।
 
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पहली हनुमान स्तुति : हनुमानजी की प्रार्थना में तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक आदि अनेक स्तोत्र लिखे, लेकिन हनुमानजी की पहली स्तुति किसने की थी? तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है। लेकिन क्या आप जानते हैं सबसे पहले हनुमानजी की स्तुति किसने की थी?
बजरंगबली हनुमान साठिका
 
जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था। दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था। भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था। सबसे सुखद तो यह कि उनके घर के ऊपर 'राम' नाम अंकित था। यह देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया।
 
विभीषण के शरण याचना करने पर सुग्रीव ने श्रीराम से उसे शत्रु का भाई व दुष्ट बताकर उनके प्रति आशंका प्रकट की और उसे पकड़कर दंड देने का सुझाव दिया। हनुमानजी ने उन्हें दुष्ट की बजाय शिष्ट बताकर शरणागति देने की वकालत की। इस पर श्रीरामजी ने विभीषण को शरणागति न देने के सुग्रीव के प्रस्ताव को अनुचित बताया और हनुमानजी से कहा कि आपका विभीषण को शरण देना तो ठीक है किंतु उसे शिष्ट समझना ठीक नहीं है।
 
इस पर श्री हनुमानजी ने कहा कि तुम लोग विभीषण को ही देखकर अपना विचार प्रकट कर रहे हो मेरी ओर से भी तो देखो, मैं क्यों और क्या चाहता हूं...। फिर कुछ देर हनुमानजी ने रुककर कहा- जो एक बार विनीत भाव से मेरी शरण की याचना करता है और कहता है- 'मैं तेरा हूं, उसे मैं अभयदान प्रदान कर देता हूं। यह मेरा व्रत है इसलिए विभीषण को अवश्य शरण दी जानी चाहिए।'
 
इंद्रा‍दि देवताओं के बाद धरती पर सर्वप्रथम विभीषण ने ही हनुमानजी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी। विभीषण को भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। वे भी आज सशरीर जीवित हैं। विभीषण ने हनुमानजी की स्तुति में एक बहुत ही अद्भुत और अचूक स्तोत्र की रचना की है। विभीषण द्वारा रचित इस स्तोत्र को 'हनुमान वडवानल स्तोत्र कहते हैं।
 
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लंका को जलाकर पछताए थे हनुमानजी : महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में उल्लेख मिलता है 'हनुमानजी ने जब रावण की लंका जलाई तो उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ, क्योंकि हनुमानजी एकादश रुद्र के अवतार हैं।
रावण ने अपने दस सिरों को काटकर महामृत्युंजय की आराधना की थी। लेकिन ग्यारहवां रुद्र हमेशा असंतुष्ट ही रहा और यही रुद्र त्रेता युग में हनुमान के रूप में अवतरित हुआ। हनुमानजी का अवतार ही दरअसल रावण के विनाश के लिए भगवान श्रीराम के सहायक के रूप में हुआ था।
 
जब हनुमानजी ने रावण की लंका जला दी तो उनका मन कई उलझनों में था। वे अपने किए पर कभी पश्चाताप कर रहे थे। वाल्मीकि रामायण में श्लोक है 'यदि दग्धात्वियं सर्वानूनमार्यापि जानकी। दग्धा तेन मया भर्तुहतमकार्यजानता।' अर्थात सारी लंका जल गई तो निश्चित रूप से जानकी भी उसमें जल गई होंगी। ऐसा करके मैंने निश्चित रूप से अपने स्वामी का बहुत बड़ा अहित कर दिया है। भगवान राम ने तो मुझे लंका इसलिए भेजा था कि मैं सीता का पता लगाकर लौटूंगा, लेकिन मैंने तो यहां कुछ और ही कर दिया। जब सीता ही नहीं रहीं तो राम भला कैसे जी पाएंगे। फिर सुग्रीव-राम की मैत्री के मायने क्या रह जाएंगे।
 
हनुमान जी यह भी भूल गए कि जिसने थोड़ी देर पूर्व उन्हें अजर-अमर होने का आशीर्वाद दिया था, वे जनकनंदनी भला आग की भेंट कैसे चढ़ सकती हैं? 'अजर- अमर गुण निधि सुत होहू, करहिं सदा रघुनायक छोहू' यही वजह थी कि जवालामुखी से घिरे होने के बावजूद हनुमानजी की सेहत पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं था।
 
हनुमानजी को आग की लपटों में देख, सीता जी ने भगवान शिव से प्रश्न किया किया कि अग्नि का हनुमानजी पर प्रभाव क्यों नही पढ़ रहा? तब भगवान शिव बोले कि हनुमान रुद्र के अवतार हैं। 'ताकर दूत अनल जेहि सिरजा, जरा न सो तेहि कारन गिरजा' रामायण में कथा आती है कि हनुमानजी ने लंका के सभी घर जला दिए लेकिन विभीषण का घर नहीं जलाया। 'जारा नगर निमिष इक माहिं, एक विभीषण कर गृह नाहिं।
 
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ब्रह्मास्त्र था हनुमानजी के लिए बेअसर : हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे। ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया।
 
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हनुमानजी को जब मिला मृत्युदंड : भगवान राम जब राज सिंहासन पर विराजमान थे तब नारद ने हनुमानजी से विश्वामित्र को छोड़कर सभी साधुओं से मिलने के लिए कहा। हनुमानजी ने ऐसा ही किया। तब नारद मुनि विश्वामित्र के पास गए और उन्होंने उन्हें भड़काया। इसके बाद विश्वामित्र गुस्सा हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान सममझा।
भड़कते हुए वे श्रीराम के पास गए और उन्होंने श्रीराम से हनुमान को मृत्युदंड देने की सजा का कहा। श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र की बात कभी टालते नहीं थे। उन्होंने बहुत ही दुखी होकर हनुमान पर बाण चलाए, लेकिन हनुमानजी राम का नाम जपते रहे और उनको कुछ नहीं हुआ। राम को अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना ही था इसलिए भगवान श्रीराम ने हनुमान पर बह्रमास्त्र चलाया। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से राम नाम का जप कर रहे हनुमान का ब्रह्मास्त्र भी कुछ नहीं बिगाड़ पाया। यह सब देखकर नारद मुनि विश्वामित्र के पास गए और अपनी भूल स्वीकार की।
 
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क्यों प्रमुख देव हैं हनुमान : हनुमानजी 4 कारणों से सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं। पहला कारण यह कि सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं। जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती। हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है। वे खुद की शक्ति से संचालित होते हैं।

दूसरा कारण यह कि वे इतने शक्तिशाली होने के बावजूद ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित हैं, तीसरा यह कि वे अपने भक्तों की सहायता तुरंत ही करते हैं और चौथा यह कि वे आज भी सशरीर हैं। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।

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