प्राचीन भारत के 5 महान 'बाहुबली'

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भारतवर्ष में पहले देव, असुर, गंधर्व, किन्नर, यक्ष, मानव, नाग आदि जातियां निवास करती थीं। कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरांतदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, संधव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते थे। भारत के पूर्वी भाग में किरात (चीनी) और पश्चिमी भाग में यवन (अरबी) बसे हुए थे। उस काल में एक से बढ़कर एक बाहुबली होते थे, लेकिन हम उन असुरों की बात नहीं कर रहे जो अपनी मायावी शक्ति के बल पर कुछ भी कर सकते थे हम बात कर रहे हैं ऐसे लोगों की जिनकी भुजाओं में अपार बल था।
बाहुबली का अर्थ होता है जिसकी भुजाओं में अपार बल है। बलवान, शक्तिमान और ताकतवर। दुनिया में आज भी ऐसे कई व्यक्ति है जिनकी भुजाओं में इतना बल है जितना कि किसी सामान्य इंसान या किसी कसरत करने वाले ताकतवर व्यक्ति की भुजाओं में भी नहीं होगा।
 
हम महाबली शेरा, महाबली खली, महाबली सतपाल या दारासिंह की बात नहीं कर रहे हैं। हम आपको बताएंगे भारत के प्राचीनकाल में ऐसे कौन-कौन से व्यक्ति थे जिनकी भुजाओं में आम इंसान की अपेक्षा कहीं ज्यादा बल था। 
 
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श्रीहनुमानजी : जब ताकत की, बल की या शक्ति की बात हो तो हनुमानजी का नाम सबसे पहले रखा जाता है। श्रीरामदूत हनुमानजी की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने संजीवनी बूटी का एक पहाड़ उठा लिया था।
श्रीरामदूत हनुमानजी के बारे में क्या कहें? उनके पराक्रम और बाहुबल के बारे में रामायण सहित दुनिया के हजारों ग्रंथों में लिखा हुआ है। केसरीनंदन पवनपुत्र श्रीहनुमानजी को भगवान शंकर का अंशशवतार माना जाता है।
 
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कुंति पुत्र भीम : पांडु के पांच में से दूसरे पुत्र का नाम भीम था जिन्हें भीमसेन भी कहते थे। कहते हैं कि भीम में दस हजार हाथियों का बल था और वह गदा युद्ध में पारंगत था। एक बार उन्होंने अपनी भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया था। लेकिन वे हनुमानजी की पूंछ को नहीं उठा पाए थे।
 
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भीम को पवनपुत्र भी कहा जाता है। पवनपुत्र इसलिए कि पांडु तो पुत्र पैदा कर नहीं सकते थे। इसीलिए कुंति ने पवनदेव का आह्‍वान किया था। भीम के पुत्र घटोत्कच तो भीम से भी कहीं ज्यादा शक्तिशाली था। युद्ध में भीम से ज्यादा शक्तिशाली सिर्फ उनका पुत्र ही था। 
 
यह सभी जानते हैं कि गांधारी का बड़ा पु‍त्र दुर्योधन और गांधारी का भाई शकुनि, कुंती के पुत्रों को मारने के लिए नई-नई योजनाएं बनाते थे। कहते हैं कि इसी योजना के तहत एक बार दुष्ट दुर्योधन ने धोखे से भीम को विष पिलाकर उसे गंगा नदी में फेंक दिया। मूर्छित अवस्था में भीम बहते हुए नागों के लोक पहुंच गए। वहां विषैले नागों ने उन्हें खूब डंसा जिससे भीम के शरीर का जहर कम होने लगा यानी जहर से जहर की काट होने लगी।
 
जब भीम की मूर्छा टूटी, तब उन्होंने नागों को मारना शुरू कर दिया। यह खबर नागराज वासुकि के पास पहुंची, तब वे स्वयं भीम के पास आए। वासुकि के साथी आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना के नाना थे। भीम ने उन्हें अपने गंगा में धोखे से बहा देने का किस्सा सुनाया। यह सुनकर आर्यक नाग ने भीम को हजारों हाथियों का बल प्रदान करने वाले कुंडों का रस पिलाया जिससे भीम और भी शक्तिशाली हो गए।
 
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महाबली बली :  महाबली बली या बाली अजर-अमर है। कहते हैं कि वो आज भी धरती पर रहकर देवताओं के विरुद्ध कार्य में लिप्त है। पहले उसका स्थान दक्षिण भारत के महाबलीपुरम में था लेकिन मान्यता अनुसार अब मरुभूमि अरब में है जिसे प्राचीनकाल में पाताल लोक कहा जाता था। अहिरावण भी ‍वहीं रहता था। समुद्र मंथन में उसे घोड़ा प्राप्त हुआ था जबकि इंद्र को हाथी। उल्लेखनीय है कि अरब में घोड़ों की तादाद ज्यादा थी और भारत में हाथियों की।
 
शिवभक्त असुरों के राजा बाली की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। वह मानता था कि देवताओं और विष्णु ने उसके साथ छल किया। हालांकि बाली विष्णु का भी भक्त था। भगवान विष्णु ने उसे अजर-अमर होने का वरदान दिया था।
 
हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बाली का जन्म हुआ। बाली जानता था कि मेरे पूर्वज विष्णु भक्त थे, लेकिन वह यह भी जानता था कि मेरे पूर्वजों को विष्णु ने ही मारा था इसलिए बाली के मन में देवताओं के प्रति द्वेष था। उसने शुक्राचार्य के सान्निध्य में रहकर स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं को खदेड़ दिया था। वह ‍तीनों लोक का स्वामी बन बैठा था।
 
देवताओं के कहने पर वामन रूप विष्णु ने दानवीर बाली के समक्ष ब्राह्मण रूप में उपस्थित होकर उससे तीन पग भूमि मांग ली थी। वामन ने दो पग में तीनों लोक नापकर पूछा, अब तीसरा पग कहां रखूं तो बाली ने कहा कि प्रभु अब मेरा सिर ही बचा है आप इस पर पग रख दें। बाली के इस वचन को सुनकर और उसकी दानवीरता को देखते हुए भगवान वामन ने उनको पाताल लोक का राजा बनाकर अमरता का वरदान ‍दे दिया। इस तरह इंद्र और अन्य देवताओं को फिर से स्वर्ग का साम्राज्य मिल गया था।
 
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वानर राज बालि : वानर राज बालि किष्किंधा का राजा और सुग्रीव का बड़ा भाई था। बालि का विवाह वानर वैद्यराज सुषेण की पुत्री तारा के साथ संपन्न हुआ था। तारा एक अप्सरा थी। बालि को तारा किस्मत से ही मिली थी। बालि के आगे रावण की एक नहीं चली थी, तब रावण ने क्या किया था यह अगले पन्ने पर पढ़ें।
 
रामायण के अनुसार बालि को उसके धर्मपिता इन्द्र से एक स्वर्ण हार प्राप्त हुआ था। इस हार की शक्ति अजीब थी। इस हार को ब्रह्मा ने मंत्रयुक्त करके यह वरदान दिया था कि इसको पहनकर बालि जब भी रणभूमि में अपने दुश्मन का सामना करेगा तो उसके दुश्मन की आधी शक्ति क्षीण हो जाएगी और यह आधी शक्ति बालि को प्राप्त हो जाएगी। इस कारण से बालि बाहुबली बाहुबली बनकर लगभग अजेय था।
 
अत्यधिक ताकतवर होने के बावजूद जब रावण पाताल लोक के राजा बालि के साथ युद्ध करने गया तो राजा बालि के भवन में खेल रहे बच्चों ने ही उसे पकड़कर अस्तबल में घोड़ों के साथ बांध दिया था। बड़ी मुश्किल से उनसे छुटकर जब वह संध्यावंदन कर रहे बालि की ओर बढ़ा तो बालि के मंत्री ने उसको बहुत समझाया कि आप उन्हें संध्यावंदन कर लेने दें अन्यथा आप मुसीबत में पड़ जाएंगे, लेकिन रावण नहीं माना।
 
रावण संध्या में लीन बालि को पीछे से जाकर उसको पकड़ने की इच्छा से धीरे-धीरे आगे बढ़ा। बालि ने उसे देख लिया था किंतु उसने ऐसा नहीं जताया तथा संध्यावंदन करता रहा। रावण की पदचाप से जब उसने जान लिया कि वह निकट है तो तुरंत उसने रावण को पकड़कर बगल में दबा लिया और आकाश में उड़ने लगा। राजा बालि ने रावण को अपनी बाजू में दबाकर 4 समुद्रों की परिक्रमा की। 
 
बारी-बारी में उसने सब समुद्रों के किनारे संध्या की। राक्षसों ने भी उसका पीछा किया। रावण ने स्थान-स्थान पर नोचा और काटा किंतु बालि ने उसे नहीं छोड़ा। संध्या समाप्त करके किष्किंधा के उपवन में उसने रावण को छोड़ा तथा उसके आने का प्रयोजन पूछा। रावण बहुत थक गया था किंतु उसे उठाने वाला बालि तनिक भी शिथिल नहीं था। रावण समझ गया था कि बालि से लड़ना उसके बस की बात नहीं है तो उससे प्रभावित होकर रावण ने अग्नि कोसाक्षी बनाकर उससे मित्रता कर ली।
 
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भगवान बाहुबली : जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के दो पुत्र भरत और बाहुबली थे। भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत रखा गया था। ऋषभदेव के जंगल चले जाने के बाद राज्याधिकार के लिए बाहुबली और भरत में युद्ध हुआ। बाहुबली ने युद्ध में भरत को परास्त कर दिया।

लेकिन इस घटना के बाद उनके मन में भी विरक्ति भाव जाग्रत हुआ और उन्होंने भरत को राजपाट ले लेने को कहा, तब वे खुद घोर तपश्चरण में लीन हो गए। तपस्या के पश्चात उनको केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। भरत ने बाहुबली के सम्मान में पोदनपुर में 525 धनुष की बाहुबली की मूर्ति प्रतिष्ठित की। प्रथम सबसे विशाल प्रतिमा का यह उल्लेख है।
 
भारतीय राज्य कर्नाटक के मड्या जिले में श्रवणबेलगोला के गोम्मटेश्वर स्थान पर स्थित महाबली बाहुबली की विशालकाय प्रतीमा जिसे देखने के लिए विश्‍व के कोने-कोने से लोग आते हैं। बाहुबली की विशालकाय प्रतिमा पूर्णत: एक ही पत्थर से निर्मित है। इस मूर्ति को बनाने में मूर्तिकार को लगभग 12 वर्ष लगे। बाहुबली को गोमटेश्वर भी कहा जाता था।
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