कौन हैं असुर जाति के ‍लोग?

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असुरों ने भारत में अनेकों वर्ष तक शासन किया था। इसके बाद उन्होंने ईरान के निकटवर्ती राज्यों पर विजय प्राप्त की और वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया। असुरों के गुरु भृगु के पुत्र शुक्राचार्य थे।
असुरों को दैत्य कहा जाता है। दानव और राक्षस अलग होते हैं। दैत्यों की कश्यप पत्नी दिति से उत्पत्ति हुई। कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया।

श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निसंतान रहे। जबकि हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। इन्हीं से असुरों के कुल और साम्राज्य का विस्तार हुआ।
 
प्राचीन काल में हिमालय से इतर जो भी भाग था उसे धरती और हिमालय के भाग को स्वर्ग माना जाता था। कुछ लोग मानते हैं कि ब्रह्मा और उनके कुल के लोग धरती के नहीं थे। उन्होंने धरती पर आक्रमण करके मधु और कैटभ नाम के दैत्यों का वध कर धरती पर अपने कुल का विस्तार किया था। हालांकि दैत्यों और देवताओं के बीच लड़ाई के कई कारण रहे हैं। ये दोनों ही एक की कुल एवं वंश के लोग हैं।
 
दैत्यों के अधिपति हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के बाद विरोचन बने जिनके गुरु शुक्राचार्य और शिव परम ईष्ट हैं। असुर जाति के लोग शिव को ही अपना परमेश्वर मानते हैं। एक ओर जहां देवताओं के भवन, अस्त्र आदि के निर्माणकर्ता विश्‍वकर्मा थे तो दूसरी ओर असुरों के मयदानव।
 
इंद्र का युद्ध सबसे पहले वृत्तासुर से हुआ था जो पारस्य देश में रहता था। माना जाता है कि ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ क्षे‍त्रों में असुरों का ही राज था। इंद्र का अंतिम युद्द शम्बासुर के साथ हुआ था। महाबली बलि का राज्य दक्षिणभारत के महाबलीपुरम में था जिसको भगवान विष्णु ने पाताल लोक का राजा बना दिया था।
 
असुरों के राजा बलि की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ। इस बलि ने ही अमृत मंथन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंद्र से जहां आत्म संस्कृति का विकास हुआ वहीं विरोचन से भोग संस्कृ‍ति जन्मी। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है। दोनों ही ब्रह्मा के पास शिक्षा ग्रहण करते हैं लेकिन उस शिक्षा का असर दोनों में भिन्न भिन्न होता है। इंद्र आत्मा को ही सबकुछ मानते हैं और विरोचन शरीर को। इस आधार पर दुनिया में योग और भोग संस्कृति का विकास हुआ। यही आगे चलकर आस्तिकों और नास्तिकों की विचारधारा का आधार बन गए।
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