श्री हनुमानजी के पैरों के निशान देखिए कहां-कहां हैं...

अनिरुद्ध जोशी
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरी असुर संहारे। रामचन्द्रजी के काज संवारे।।
और देवता चित न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई।।
 
दुनियाभर में 2 फुट से 6 फुट तक के लंबे पदचिह्न पाए जाते हैं। सवाल यह उठता है कि यह किसी विशालकाय मानव के पदचिह्न हैं या कि मानव ने ऐसे पदचिह्न अपने हाथों से बनाए हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि यदि मानव ने बनाए हैं तो वह क्यों किसी जंगल में, निर्जन स्थान पर या ऊंची पहाड़ी पर ऐसे पदचिह्न बनाएगा? इससे यही सिद्ध होता है कि ये किसी विशालकाय मानव के ही पदचिह्न हैं। भारत में इस तरह के पदचिह्नों को भगवान शिव और हनुमानजी से जोड़कर देखा जाता है।
रामदूत हनुमानजी के पैरों के निशान के दर्शन करना अपने आप में अद्भुत अनुभव होता है। आओ, जानते हैं कि कहां-कहां भगवान हनुमानजी ने धरती पर अपने कदम रखे थे, जहां उनके पैरों के निशान बन गए। उनमें से कुछ प्रमुख पदचिह्नों के बारे में प्रस्तुत है संक्षिप्त में जानकारी और फोटो। (सभी फोटो साभार सोशल मीडिया।)
 
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श्रीलंका में हनुमान पदचिह्न : हनुमानजी ने जब सीताजी को खोजने के लिए समुद्र पार किया था तो उन्होंने भव्य रूप धारण कर लिया था, फिर वे आकाश मार्ग से समुद्र को पार करके श्रीलंका पहुंच गए थे।
ऐसा कहा जाता है कि जहां उन्होंने अपने पहले कदम रखे, वहां उनके पैरों के निशान बन गए। ये निशान आज भी वहां मौजूद हैं जिसे 'हनुमान पद' कहा जाता है।
 
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लेपाक्षी में हनुमान पद : राम, हनुमान के साथ यहां दर्द से तड़प रहे जटायु से मिले थे। राम ने यहां जटायु को मोक्ष प्राप्त करने में मदद की और दो शब्द कहे थे- 'ले पक्षी' (Lepakshi) जिसका तेलुगु में मतलब होता है 'पक्षी उदय'। यहां आपको बहुत बड़े पैर के छाप मिलेंगे। इन पैरों के निशान के बारे में कहा जाता है कि ये हनुमानजी के पैरों के निशान हैं।
यह लेपाक्षी मंदिर आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित है। इस मंदिर की दक्षिण भारत में बड़ी मान्यता है। पैरों के इस निशान को लेकर कई मान्यताएं हैं। कोई कहता है कि ये देवी दुर्गा का पैर है, कोई इसे श्रीराम के निशान मानता है, लेकिन इस मंदिर का इतिहास जानने वाले इसे सीता का पैर मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि जटायु के घायल होने के बाद सीता ने जमीन पर आकर खुद अपने पैरों का यह निशान छोड़ा था और जटायु को भरोसा दिलाया था कि जब तक भगवान राम यहां नहीं आते, यहां मौजूद पानी जटायु को जिंदगी देता रहेगा। ऐसा माना जाता है कि ये वही स्थान है, जहां जटायु ने श्रीराम को रावण का पता बताया था।
 
यहां मौजूद एक अद्भुत शिवलिंग है रामलिंगेश्वर जिसे जटायु के अंतिम संस्कार के बाद भगवान राम ने खुद स्थापित किया था। पास में ही एक और शिवलिंग है हनुमानलिंगेश्वर। बताया जाता है कि श्रीराम के बाद महाबली हनुमान ने भी यहां भगवान शिव की स्थापना की थी। 
 
मंदिर के बीचोबीच एक नृत्य मंडप है। इस मंडप पर कुल 70 पिलर यानी खंभे मौजूद हैं जिसमें से 69 खंभे वैसे ही हैं, जैसे होने चाहिए। मगर 1 खंभा दूसरों से एकदम अलग है, वो इसलिए क्योंकि ये खंभा हवा में है यानी इमारत की छत से जुड़ा है, लेकिन जमीन के कुछ सेंटीमीटर पहले ही खत्म हो गया। बदलते वक्त के साथ ये अजूबा एक मान्यता बन चुका है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई इंसान खंभे के इस पार से उस पार तक कोई कपड़ा ले जाए, तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है।
 
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जाखू में पदचिह्न : हिमाचल के शिमला में जाखू मंदिर में हनुमानजी के पदचिह्न देखे जा सकते हैं। मान्यता है कि राम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मणजी के मूर्छित हो जाने पर संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय की ओर आकाश मार्ग से जाते हुए हनुमानजी की नजर यहां तपस्या कर रहे यक्ष ऋषि पर पड़ी। बाद में इसका नाम यक्ष ऋषि के नाम पर ही यक्ष से याक, याक से याकू, याकू से जाखू तक बदलता गया।
हनुमानजी विश्राम करने और संजीवनी बूटी का परिचय प्राप्त करने के लिए जाखू पर्वत के जिस स्थान पर उतरे, वहां आज भी उनके पदचिह्नों को देखा जा सकता है।
 
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मलेशिया में हनुमान : मलेशिया के पेनांग में एक मंदिर के भीतर हनुमानजी के पैरों के निशान हैं। आगंतुक अपने अच्छे भाग्य के लिए इस पदचिह्न पर सिक्के फेंकते हैं।
 
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थाईलैंड में हनुमान : थाईलैंड में 'रामकियेन' नाम से रामायण प्रचलित है। इसका प्राचीन नाम सियाम था। सम्राट अशोक के समय में हजारों बौद्ध भिक्षु भारत से बर्मा होकर पैदल ‘सियाम’ गए थे और कालांतर में वहीं बस गए थे। थाईलैंड की प्राचीन राजधानी को अयुत्थाया (Ayutthaya) कहा जाता था। यह प्राचीन राजधानी वर्तमान राजधानी बैंकॉक से 40 किमी की दूरी पर स्थित थी।
 
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अंजनेरी पर्वत पर हनुमान पद : 5 हजार फुट की ऊंचाई पर बना है आस्था का ऐसा परम धाम, जहां आज भी मिलते हैं पवनपुत्र हनुमान के पैरों के निशान। कहते हैं कि यहीं से बाल हनुमान के मुख में समा गए थे सूर्यदेव। जानकार लोग कहते हैं कि आकाश के सूर्य नहीं, बल्कि सूर्य (विवस्वान) नामक देवता को उन्होंने अपने मुख में समा लिया था।
यहां पांव के आकार जैसा दिखने वाला एक सरोवर है जिसके बारे में कहा जाता है कि ये बाल हनुमान के पैरों के दबाव से बना है। यहीं से उन्होंने एक पैर जमीन पर दबाकर जोर से छलांग लगाई और सूर्यदेव को फल समझकर मुंह में दबा लिया था। जब इन्द्रदेव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने हनुमानजी के मुख पर वज्र का प्रहार किया जिसके उनका मुंह खुल गया और सूर्यदेव मुंह से बाहर निकल आए, लेकिन इन्द्रदेव के इस कृत्य के चलते हनुमानजी की ठुड्डी (हनु) टूट गई थी जिसके चलते उनका नाम हनुमान पड़ गया।
 
अंजनेरी पर्वत पर बना यह सरोवर आज भी उस घटना की याद दिलाता है। यह मान्यता है कि इसके पानी को छूना बजरंग बली के चरण स्पर्श करने के बराबर है। यह पर्वत महाराष्‍ट्र के नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर के पास लगभग 6 से 7 किलोमीटर दूर स्थित है।
 
झारखंड के गुमला जिले में पवनपुत्र का ननिहाल था। यहीं माता अंजनी ने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा गुजारा। यहां मौजूद माता अंजनी और हनुमान की निशानियां आज भी भक्तों को अभिभूत कर देती हैं। झारखंड में रांची से करीब 140 किमी दूर गुमला जिले में घने जंगलों के बीच स्थित है यह स्थान। इलाके में करीब 360 सरोवर और 360 शिवलिंग मौजूद हैं। 
 
अपने तप के दौरान माता अंजनी घने जंगलों के बीच रहकर रोज नए-नए सरोवर में स्नान कर अलग-अलग शिवलिंग की उपासना करती थीं। उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ही भोलेनाथ ने उनके गर्भ से 11वें रुद्र अवतार 'हनुमान' के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था।
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