‘शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्रचिंता प्रवृत्तते’ : अर्थात शस्त्र द्वारा राष्ट्र की रक्षा हो जाने पर ही शास्त्र की चिंता में प्रवृत्त होना चाहिए।
' नीतिज्ञ' का अर्थ होता है, जो धर्म, राजनीति और अर्थनीति का विशेषज्ञ हो। यह राज्य का विचारक होता है, जो अपनी युक्ति और विचार से राज्य की भलाई का कार्य करने की सलाह देता है। युधिष्ठिर भी नीतिज्ञ थे और भगवान कृष्ण भी। इन सबसे पहले भगवान शंकर के गण नंदी को सबसे बड़ा नीतिज्ञ माना जाता है। उन्होंने धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र लिखा था। लेकिन हम यहां इनकी बात नहीं कर रहे हैं।
भारत ने दुनिया को चार महान नीतिज्ञ दिए जिनकी नीति या कहें कि विचारों का प्रचलन आज भी है। दुनिया उनके विचारों को आज भी मानती है। उनके इन विचारों को किसी भी प्रकार के तर्क से काटा नहीं जा सकता और न ही किसी प्रमाण से असिद्ध किया जा सकता है तभी तो वे भारत के महान नीतिज्ञ कहलाते हैं। स्कूल की किताबों में इनकी नीति और जीवन को शामिल किए जाने की आवश्यकता है।
जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारों ऋषियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराए उस ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और (तु अर्थात) अंगिरा से ऋग, यजु, साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया।
अंगिरा ऋषि : अंगिरा को वेदों के रचयिता चार ऋषियों में शामिल किया जाता है। माना जाता है कि अंगिरा से ही भृगु, अत्रि आदि ऋषियों ने ज्ञान प्राप्त किया। अंगिरा ने धर्म और राज्य व्यवस्था पर बहुत काम किया। ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं अंगिरा। इनकी पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री स्मृति (मतांतर से श्रद्धा) थीं जिनसे इनके वंश का विस्तार हुआ। अग्निदेव ही बृहस्पति नाम से अंगिरा के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध हुए। बृहस्पति देवताओं के गुरु थे। उतथ्य तथा महर्षि संवर्त भी इन्हीं के पुत्र हैं। इन्होंने वेदों की ऋचाओं के साथ ही अपने नाम से अंगिरा स्मृति की रचना की।
अंगिरा-स्मृति : अंगिरा-स्मृति में सुन्दर उपदेश तथा धर्माचरण की शिक्षा व्याप्त है।
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महाराजा मनु : अब तक मनु तो सात हो चुके हैं। सातवें मनु वैवस्वत (श्राद्धदेव) ने जल प्रलय के बाद फिर से राज्य और धर्म व्यवस्था को स्थापित किया। उनकी परंपरा में ही मनु स्मृति का निर्माण हुआ।
वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ। इनकी शासन व्यवस्था में देवों में पांच तरह के विभाजन थे- देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व। इनके दस पुत्र हुए थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही मुख्यतः विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए हैं।
वैवस्वत सातवें मन्वंतर का स्वामी बनकर मनु पद पर आसीन हुए थे। इस मन्वंतर में ऊर्जस्वी नामक इन्द्र थे। अत्रि, वसिष्ठ, कश्यप, गौतम, भरद्वाज, विश्वामित्र और जमदग्नि- ये सातों इस मन्वंतर के सप्तर्षि थे।
मनु स्मृति : चारों वर्णों, चारों आश्रमों, सोलह संस्कारों तथा सृष्टि उत्पत्ति के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, भांति-भांति के विवादों, सेना का प्रबंध आदि उन सभी विषयों पर परामर्श दिया गया है, जो कि मानव मात्र के जीवन में घटित होने संभव हैं। यह सब धर्म-व्यवस्था वेद पर आधारित है।
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विदुर : महर्षि अंगिरा, राजा मनु के बाद विदुर ने ही राज्य और धर्म संबंधी अपने सुंदर विचारों से ख्याति प्राप्त की थी। अम्बिका और अम्बालिका को नियोग कराते देखकर उनकी एक दासी की भी इच्छा हुई। तब वेदव्यास ने उससे भी नियोग किया जिसके फलस्वरूप विदुर की उत्पत्ति हुई। विदुर धृतराष्ट्र के मंत्री किंतु न्यायप्रियता के कारण पांडवों के हितैषी थे। विदुर को उनके पूर्व जन्म का धर्मराज कहा जाता है। जीवन के अंतिम क्षणों में इन्होंने वनवास ग्रहण कर लिया तथा वन में ही इनकी मृत्यु हुई।
विदुर नीति : विदुर नीति इनकी प्रसिद्ध रचना है। इसके अंतर्गत नीति सिद्धांतों का सुंदर वर्णन किया गया है। युद्ध के अनंतर विदुर पांडवों के भी मंत्री हुए। हिन्दी नीति काव्य पर विदुर के कथनों एवं सिद्धांतों का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
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चाणक्य : चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री और चणक के पुत्र चाणक्य को कौन नहीं जानता। वे कौटिल्य और विष्णुगुप्त नाम से भी विख्यात थे। माना जाता है कि वात्स्यायन नाम से उन्होंने ही 'कामसूत्र' लिखा था। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र, राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि महान ग्रंथ हैं। तक्षशिला में उनकी पढ़ाई हुई और पाटलीपुत्र में उनका निधन हुआ।
चाणक्य नीति : चाणक्य नीति में चाणक्य ने धर्म, राजनीति, जीवन और समाज से जुड़े हर पहलू पर अपने नीतिज्ञ विचार प्रस्तुत किए हैं। चाणक्य नीति दुनियाभर में प्रचलित और प्रसिद्ध है। चाणक्य का सबसे बड़ा गुरुमंत्र : 'कभी भी अपने रहस्यों को किसी के साथ साझा मत करो, यह प्रवृत्ति तुम्हें बर्बाद कर देगी।'