नर और नारायण कौन थे?

अनिरुद्ध जोशी
परमेश्वर सदाशिव (शिव, शंकर, रुद्र या महेश नहीं) के तीन प्रकट रूपों में से प्रथम भगवान विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं, उनमें से ही दो अवतार हैं- नर और नारायण। हम जिन्हें नारायण कहते हैं वे विष्णु के अवतार हैं। उनका भजन भी आपने सुना होगा- श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि। तेरी लीला सबसे न्यारी न्यारी, हरि हरि।

नर और नारायण की कहानी को जानना जरूरी है। यहां उनके जीवन की कहानी नहीं बल्कि संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। इन्हीं दो भाइयों के कारण धर्म और सत्य का भारत में विस्तार हुआ। अधिकतर हिन्दू इनकी कथा को नहीं जानते और वे यह मानते हैं कि ये विष्णु ही है।

अवतार का अर्थ किसी में विष्णु का अवतरण होना। भगवान राम भी विष्णु के अवतार थे लेकिन वे स्वयं विष्‍णु नहीं थे। वे भी ‍ब्रह्मा और वशिष्ठ की अनुशंसा पर विष्णु के अवतार घोषित किए गए थे। अर्थात राम एक माध्यम थे और विष्णु ने उनमें उतरकर लीला रची थी। अवतार का अर्थ किसी में किसी दूसरे का अवतरण होना। हालांकि कुछ अवतारों में विष्णु स्वयं प्रकट हैं।

24 अवतारों का क्रम निम्न है-1.आदि परषु, 2.चार सनतकुमार, 3.वराह, 4.नारद, 5.नर और नारायण, 6.कपिल, 7दत्तात्रेय, 8.याज्ञ, 9.ऋषभ, 10.पृथु, 11.मतस्य, 12.कच्छप, 13.धनवंतरी, 14.मोहिनी, 15.नृसिंह, 16.हयग्रीव, 17.वामन, 18.परशुराम, 19.व्यास, 20.राम, 21.बलराम, 22.कृष्ण, 23.बुद्ध और 24.कल्कि।

भगवान ब्रह्मा के पुत्र धर्म की पत्नी रुचि के माध्यम से श्रीहरि विष्णु ने नर और नारायण नाम के दो ऋषियों के रूप में अवतार लिया। जन्म लेते ही वे बदरीवन में तपस्या करने के लिए चले गए। उसी बदरीवन में आज बद्रीकाश्रम बना है। वहीं नर और नारायण नामक दो पहाड़ है। वहीं पास में केदारनाथ का पवित्र शिवलिंग है जिसे नर और नारायण ने मिलकर ही स्थापित किया था। यह लगभग 8 हजार ईसा पूर्व की बात है।

नर और नारायण की तपस्या से ही संसार में सुख और शांति का विस्तार हुआ। आज भी केदानाथ और बद्रीकाश्रम में भगवान नर-नारायण निरन्तर तपस्या में रत रहते हैं। इन्होंने ही द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतार लेकर लीला रची थी। लीला का अर्थ नाटक नहीं होता।

उनकी तपस्या को देखकर देवराज इंद्र ने दी जब चुनौती...

एक बार नर और नारायण की तपस्या को देखकर देवराज इंद्र ने सोचा कि ये तप के द्वारा मेरे इंद्रासन को लेना चाहते हैं। ऐसे सोचकर इंद्र ने उनकी तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव, वसंत तथा अप्सराओं को भेजा। उन्होंने जाकर भगवान नर-नारायण को अपनी नाना प्रकार की कलाओं के द्वारा तपस्या भंग करने का प्रयास किया, किंतु उनके ऊपर कामदेव तथा उसके सहयोगियों का कोई प्रभाव न पड़ा। कामदेव, वसंत तथा अप्सराएं शाप के भय से थर-थर कांपने लगे। उनकी यह दशा देखकर भगवान नर और नारायण ने कहा, 'तुम लोग  मत डरो। हम प्रेम और प्रसन्नता से तुम लोगों का स्वागत करते हैं।'

भगवान नर और नारायण की अभय देने वाली वाणी को सुनकर काम अपने सहयोगियों के साथ अत्यन्त लज्जित हुआ। उसने उनकी स्तुति करते हुए कहा- प्रभो! आप निर्विकार परम तत्व हैं। बड़े बड़े आत्मज्ञानी पुरुष आपके चरण कमलों की सेवा के प्रभाव से कामविजयी हो जाते हैं। हमारे ऊपर आप अपनी कृपादृष्टि सदैव बनाए रखें। हमारी आपसे यही प्रार्थना है। आप देवाधिदे विष्णु हैं।

कामदेव की स्तुति सुनकर भगवान नर नारायण प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी योगमाया के द्वारा एक अद्भुत लीला दिखाई। सभी लोगों ने देखा कि सुंदर-सुंदर नारियां नर और नारायण की सेवा कर रही हैं। नर नारायण ने कहा- 'तुम इन स्त्रियों में से किसी एक को मांगकर स्वर्ग में ले जा सकते हो, वह स्वर्ग के लिए भूषण स्वरूप होगी।'

उनकी आज्ञा मानकर कामदेव ने अप्सराओं में सर्वश्रेष्ठ अप्सरा उर्वशी को लेकर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया। उसने देवसभा में जाकर भगवान नर और नारायण की अतुलित महिमा के बारे में सबसे कहा, जिसे सुनकर देवराज इंद्र चकित और भयभीत हो गए। इंद्र को श्री नर और नारायण के प्रति अपनी दुर्भावना और दुष्कृति पर विशेष पश्चाताप हुआ।

केदारनाथ में नर और नारायण द्वारा शिवलिंग की स्थापना...

महाभारत के अनुसार केदार और बदरीवन में नर-नारायण नाम के दो भाइयों ने घोर तपस्या की थी। इसलिए यह स्थान मूलत: इन दो ऋषियों का स्थान है। दोनों ने केदारनाथ में शिवलिंग और बदरीकाश्रम में विष्णु के विग्रहरूप की स्थापना की थी।

केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पति की कथा शिव पुराण में तब आती है जब नर और नारायण शिव की अराधना कर रहे होते हैं। भगवान शिव की प्रार्थना करते हुए दोनों कहते हैं कि शिव आप हमारी पूजा ग्रहण करें।

नर और नारायण के पूजा आग्रह पर भगवान शिव स्वयं उस पार्थिव लिंग में आते हैं। इस तरह पार्थिव लिंग के पूजन में वक्त गुजरता जाता है। एक दिन भगवान शिव खुश होते हैं और नर व नारायण के सामने प्रकट होकर कहते हैं कि वो उनकी अराधना से बेहद खुश हैं इसलिए वर मांगो।

नर और नारायण कहते हैं, हे प्रभु अगर आप प्रसन्न हैं तो लोक कल्याण के लिए कुछ कीजिए। भगवान शिव कहते हैं कि कहो क्या कहना चाहते हो। इस पर नर और नारायण कहते हैं कि जिस पार्थिव लिंग में हमने आपकी पूजा की है उस लिंग में आप स्वयं निवास कीजिए ताकि आपके दर्शन मात्र से लोगों का कष्ट दूर हो जाए।

दोनों भाइयों के अनुरोध से भगवान शिव और प्रसन्न हो जाते हैं और केदारनाथ के इस तीर्थ में केदारेश्वर ज्योतिलिंग के रुप में निवास करने लगते हैं। इस तरह केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पति होती है।

महाभारत अनुसार पाप से मुक्त होने के बाद केदारेश्वर में स्थित ज्योतिर्लिंग के आसपास मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने हाथ से किया था। बाद में इसका दोबारा निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था। इसके बाद राजा भोज ने यहां पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया था।

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