प्रभु श्रीराम के जीवन का संक्षिप्त परिचय

Webdunia
गुरुवार, 14 अप्रैल 2016 (12:28 IST)
अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र थे भगवान राम। दशरथ की तीन पत्नीयां थी- कौशल्या, सुमीत्रा और कैकयी। राम के तीन भाई थे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न। राम कौशल्या के पुत्र थे। सुमीत्रा के लक्ष्मण और शत्रुध्न दो पुत्र थे। कैकयी के पुत्र का नाम भरत था।
लक्ष्मण की पत्नी का नाम उर्मिला, शत्रुध्न की पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति और भरत की पत्नी का नाम मांडवी था। सीता और उर्मिला राजा जनक की पुत्रियां थी और मांडवी और श्रुत‍कीर्ति कुशध्वज की पुत्रियां थी। लक्ष्मण के अंगद तथा चंद्रकेतु नामक दो पुत्र थे।
 
राम का विवाह मिथिला के नरेश राजा जनक की पुत्री सीता से हुआ। सीता स्वयंवर में रावण भी आया था। विवाह बाद कैकयी के कहने पर राम को दशरथ ने 14 वर्ष के वनवास में भेज दिया। वनवास में सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ गए। इधर कैकयी ने भारत को अयोध्या का राजा बना दिया।
 
आदिवासियों के भगवान : राम ने 14 वर्ष वन में रहकर भारतभर में भ्रमण कर भारतीय आदिवासी, जनजाति, पहाड़ी और समुद्री लोगों के बीच सत्य, प्रेम, मर्यादा और सेवा का संदेश फैलाया। यही कारण रहा की राम का जब रावण से युद्ध हुआ तो सभी तरह की अनार्य जातियों ने राम का साथ दिया। यह वह काल था जबकि लोगों में किसी भी प्रकार की जातिवादी सोच नहीं थी। लोग सिर्फ दो तरह की सोच में ही बंटे थे- सुर और असुर जिन्हें देव और दैत्य कहा जाता था। सुर के सहयोगी यक्ष, गंधर्व, वानर आदि थे तो असुरों के सहयोगी राक्षस, दानव, पिशाच आदि थे।

वनवास के दौरान लक्ष्मण ने रावण की बहिन सूर्पणखा की नाक काट दी थी। सीता स्वयंवर में अपनी हार और सूरपर्णखा की नाक काटने का बदला लेने के लिए रावण ने सीता का हरण कर लिया। वनवास के दौरान ही राम को सीता से दो पुत्र प्राप्त हुए- लव और कुश। एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए ‍जो महाभारत युद्ध में कोरवों की ओर से लड़े थे।
 
राम ने सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए संपाति, हनुमान, सुग्रीव, विभिषण, मैन्द, द्विविद, जाम्बवंत, नल, नील, तार, अंगद, धूम्र, सुषेण, केसरी, गज, पनस, विनत, रम्भ, शरभ, महाबली कम्पन (गवाक्ष), दधिमुख, गवय और गन्धमादन आदि की सहायता से सेतु बनाया और लंका पर चढ़ाई कर दी। लंका में घोर युद्ध हुआ और पराक्रमी रावण का वध हो गया। तब पुष्पक विमान द्वारा रावण सीता सहित पुन: अयोध्या आ गए।
 
इस सारे घटनाक्रम में हनुमानजी ने राम का बहुत साथ दिया इसीलिए हनुमानजी राम के अनन्य सहायक और भक्त सिद्ध हुए। भगवान राम को हनुमान ऋष्यमूक पर्वत के पास मिले थे।
 
महत्वपूर्ण घटनाक्रम: गुरु वशिष्ठ से शिक्षा-दिक्षा लेना, विश्वामित्र के साथ वन में ऋषियों के यज्ञ की रक्षा करना और राक्षसों का वध, राम स्वयंवर, शिव का धनुष तोड़ना, वनवास, केवट से मिलन, लक्ष्मण द्वारा सूर्पणखा (वज्रमणि) की नाक काटना, खर और दूषण का वध, लक्ष्मण द्वारा लक्ष्मण रेखा खींचना, स्वर्ण हिरण-मारीच का वध, सीता हरण, जटायु से मिलन।
 
कबन्ध का वध, शबरी से मिलन, हनुमानजी से मिलन, सुग्रीव से मिलन, दुन्दुभि और बाली का वध, संपाति द्वारा सीता का पता बताना, अशोक वाटिका में हनुमान द्वारा सीता को राम की अंगुठी देना, हनुमान द्वारा लंका दहन, सेतु का निर्माण, लंका में रावण से युद्ध, लक्ष्मण का मुर्छित होना, हनुमान द्वारा संजीवनी लाना और रावण का वध, पुष्पक विमान से अयोध्या आगमन।
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