क्या रावण के दस सिर थे, जानिए इसका रहस्य...

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कहते हैं रावण के दस सिर थे। क्या सचमुच यह सही है? कुछ विद्वान मानते हैं कि रावण के दस सिर नहीं थे किंतु वह दस सिर होने का भ्रम पैदा कर देता था इसी कारण लोग उसे दशानन कहते थे। कुछ विद्वानों अनुसार रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था इसीलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता था। दसकंठी कहे जाने के कारण प्रचलन में उसके दस सिर मान लिए गए।
जैन शास्त्रों में उल्लेख है कि रावण के गले में बड़ी-बड़ी गोलाकार नौ मणियां होती थीं। उक्त नौ मणियों में उसका सिर दिखाई देता था जिसके कारण उसके दस सिर होने का भ्रम होता था।
 
हालांकि ज्यादातर विद्वान और पुराणों अनुसार तो यही सही है कि रावण एक मायावी व्यक्ति था, जो अपनी माया के द्वारा दस सिर के होने का भ्रम पैदा कर सकता था। उसकी मायावी शक्ति और जादू के चर्चे जग प्रसिद्ध थे।
 
मारीच का चांदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के दस सिर और बीस हाथों को भी मायावी या कृत्रिम माना जा सकता है।
 
अगले पन्ने पर दशमी के ही दिन क्यों हुआ रावण का वध, जानिए रहस्य...
 
 

रावण के दस सिर होने की चर्चा रामचरितमानस में आती है। वह कृष्णपक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिए चला था तथा एक-एक दिन क्रमशः एक-एक सिर कटते थे। इस तरह दसवें दिन अर्थात् शुक्लपक्ष की दशमी को रावण का वध हुआ। इसीलिए दशमी के दिन रावण दहन किया जाता है।
 
रामचरितमानस में वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते थे पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहां पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुए।

अंत में पढ़िये वाल्मीकि रामायण में क्या लिखा है दस सिर का रहस्य...

रामायण में वाल्मीकिजी ने रावण के लिए अनेक शब्दों का प्रयोग किया है- रावण, लंकेश, लंकेश्वर, दशानन, दशग्रीव, शकंधर, राक्षससिंह, रक्षपति, राक्षसाधिपम्, राक्षसशार्दूलम्, राक्षसेन्द्र; राक्षसाधिकम्, राक्षसेश्वरः, लंकेश, लंकेश्वर। कुछ गिनती के स्थानों पर ही वाल्मीकी ने रावण के लिए दस-सिर सूचक दशानन, दशग्रीव या दशकंधर जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। जहां यह प्रयोग किया है वहां पाते हैं कि रावण अपने प्रमुख 9 मंत्रियों से घिरा हुआ बैठा है।

प्रायः अन्य स्थानों पर रावण के लिए राजन, रावण, राक्षसेंद्र, लंकेश, लंकेश्वर शब्दों का प्रयोग हुआ है। वाल्मीकि रामायण में अनेक प्रसंगों में रावण के मंत्रियों के नाम मिलते हैं। आश्चर्य है कि रावण की मंत्रिपरिषद् में नौ मंत्री है और ये सभी मंत्री रावण के भाई, भतीजे, मामा, नाना आदि सगे रिश्तेदार है। इसके मतलब यह की नौरत्न परंपरा रावण से शुरू होती है। सम्राट अशोक तक चलती है और बाद में तुर्क बादशाह अकबर इसे अपनाता है। 
 
रावण के मंत्री : 1.कुंभकर्ण (भाई), 2.विभीषण (भाई), 3.महापार्श्व (भाई), 4.महोदर (भाई), 5.इंद्रजित (बेटा), 6.अक्षयकुमार (बेटा), 7.माल्यवान (नाना का भाई), 8.विरूपाक्ष (माल्यवान का बेटा, रावण का सचिव), और 9.प्रहस्त (मामा, प्रधान मंत्री)।  
 
हालांकि रावण के बारे में एक अन्य प्रसंगानुसार जब रावण की घायल बहन शूर्पनखा रावण की राज्य सभा में जाती है, तो वाल्मीकि लिखते हैं कि रावण मंत्रियों से घिरा बैठा था। "उसके बीस भुजाएं और दस मस्तक थे।" विंशद्भुजं दशग्रीवं दर्शनीयपरिच्छदम् (वा.रा।
 
इसी तरह जब हनुमान को बंदी बनाकर रावण की मंत्री परिषद के सामने पेश किया जाता है, तब हनुमान देखते हैं कि रावण के दस सिर हैं- शिरोभिर्दशभिर्वीरं भ्राजमानं महौजसम्  (वा. रा. 5/49/6)। किन्तु, यह बताना महत्वपूर्ण है कि इससे ठीक पहली रात को जब सीता की खोज कर रहे हनुमान रावण के अन्तःपुर में घुसते हैं, और रावण को पहली बार देखते हैं, तो वहां स्पष्ट रूप में, बिना किसी भ्रम के, शयन कक्ष में सो रहे रावण का एक सिर और दो हाथ ही देखते हैं (वा. रा. 5/10/15)।...अब यह शोध का विषय हो सकता है कि रावण के सचमुच में दस सिर थे या नहीं।
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