क्या कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है या अगले जन्म में?

हिंदू धर्म में कर्मों के कई प्रकार बताए गए हैं परंतु 6 प्रकार मुख्‍य है

अनिरुद्ध जोशी
शुक्रवार, 3 मई 2024 (18:12 IST)
karma ka siddhant in hindi: हिंदू धर्म कर्म प्रधान धर्म है विश्वास प्रधान नहीं। इसमें कर्मों को बहुत महत्व दिया गया है। जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा यह प्राथमिक सिद्धांत है परंतु इससे भी अलग कर्म का जो सिद्धांत है वह बहुत ही गहरा और समझने वाला है। कई लोगों के मन में यह प्रश्न होगा कि उन्हें कर्मों का फल क्या कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है या अगले जन्म में?
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हिंदू धर्म में कर्मों के कई प्रकार बताए गए हैं परंतु 6 प्रकार मुख्‍य है-
 
1. नित्य कर्म (दैनिक कार्य)।
2. नैमित्य कर्म (नियमशील कार्य)।
3. काम्य कर्म (किसी मकसद से किया हुआ कार्य)।
4. निश्काम्य कर्म (बिना किसी स्वार्थ के किया हुआ कार्य)।
5. संचित कर्म (प्रारब्ध से सहेजे हुए कर्म)।
6. निषिद्ध कर्म (नहीं करने योग्य कर्म)।
 
जिस तरह से चोर को मदद करने के जुर्म में साथी को भी सजा होती है ठीक उसी तरह काम्य कर्म और संचित कर्म में हमें अपनों के किए हुए कार्य का भी फल भोगना पड़ता है और इसीलिए कहा जाता है कि अच्छे लोगों का साथ करो ताकि अपने जीवन में सभी कुछ अच्छा ही अच्छा हो। अब सवाल को लेते हैं...
प्रारब्ध कर्म : 'प्रारब्ध' का अर्थ ही है कि पूर्व जन्म अथवा पूर्वकाल में किए हुए अच्छे और बुरे कर्म जिसका वर्तमान में फल भोगा जा रहा हो। विशेषतया इसके 2 मुख्य भेद हैं कि संचित प्रारब्ध, जो पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप होता है और क्रियमान प्रारब्ध, जो इस जन्म में किए हुए कर्मों के फलस्वरूप होता है। इसके अलावा अनिच्छा प्रारब्ध, परेच्छा प्रारब्ध और स्वेच्छा प्रारब्ध नाम के 3 गौण भेद भी हैं। प्रारब्ध कर्मों के परिणाम को ही कुछ लोग भाग्य और किस्मत का नाम दे देते हैं। पूर्व जन्म और कर्मों के सिद्धांत को समझना जरूरी है।
 
पिछले जन्म के कर्म को ही प्रारब्ध या संचित कर्म कहते हैं। इन कर्मों का बचा हिस्से का फल हमें इस जन्म में मिलता है। ये प्रारब्ध कर्म ही नए होने वाले जन्म की योनि व उसमें मिलने वाले भोग को निर्धारित करते हैं। फिर इस जन्म में किए गए नए कर्म, जिनको क्रियमाण कहा जाता है, वह भी नए संचित संस्कारों में जाकर जमा होते रहते हैं। यही कारण है कि व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फिर अगला जीवन मिलता है और वह अपने कर्मों का फल भोगता रहता है। यही कर्मफल का सिद्धांत है।
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हम जो कर्म करते हैं उसमें से कुछ कर्मों का फल हमें तत्काल भी मिलता है और कुछ कर्मों का फल हमें इसी जन्म में बाद में मिलता है। इसी प्रकार कुछ ऐसे कर्म होते हैं जिनका फल हमें अगले जन्म में मिलता। कुछ कर्मो का फल लंबे समय तक मिलता रहता है।

नोट : भक्ति, योग और ध्यान करते रहने से कर्म बंधन से व्यक्ति मुक्ति हो जाता है।
 
उदाहरण:-
1. जैसे किसी भूखे को आपने भोजन कराया तो उससे आपको खुशी मिली यह खुशी तुरंत मिली और यह कर्म आपके पुण्य कर्मों में शामिल हो गया। अब इस कर्म का फल पहला तो खुशी के रूप में मिला और दूसरा तब मिलेगा जब आपके पुण्य कर्म प्रकट होंगे। यह फल क्या होगा यह कोई नहीं जानता। 
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2. इसी प्रकार यदि आपने चोरी की तो उसी वक्त कुछ मन में खटका, भय भी लगा होगा, अपराध बोध भी हुआ होगा। यह कर्म मन को दूषित करेगा। चोरी करने का तुरंत फल मन को दूषित करने के रूप में मिला। इसके बाद यदि पकड़ा गए तो तब वह अलग से फल मिलेगा। अब यह कर्म पाप कर्म में शामिल होकर बाद में भी प्रकट होगा। 
3. अधिकतर कर्मों का फल हमें इसी जन्म में मिल जाता है। यदि पुराने पाप कर्म ज्यादा है तो वर्तमान बड़ा ही संघर्ष भरा होगा, दुखदायी होगा और यदि पुण्य कर्म ज्यादा है तो वर्तमान बहुत ही सुखद होगा।

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