मंदिरों में भजन-कीर्तन या आरती के समय इन 8 वाद्य यंत्रों का करते हैं उपयोग

अनिरुद्ध जोशी
हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू देवी और देवताओं के पार अपना खुद का एक वाद्य यंत्र रहा है जिसे वे समय समय पर बजाकर संगीत के सुर उत्पन्न करते रहते हैं। आओ जानते हैं कि ऐसे कौनसे 8 वाद्य यंत्र का संगीत भगवान को पसंद है।
 
 
1. घंटी : घंटी से निकलने वाला स्वर नाद का प्रतीक है जो भगवान को अति प्रिय है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब प्रलय काल आएगा, तब भी इसी प्रकार का नाद यानी आवाज प्रकट होगी।
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2. शंख : शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्र की संज्ञा दी गई है। शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त 14 अनमोल रत्नों में से एक है। शंख कई प्रकार के होते हैं। इसका स्वर भी भगवान को अति प्रिय है।
 
 
3. मंजीरा : इसे झांझ, तला, मंजीरा, कफी आदि नामों से भी जाना जाता है। भजन-कीर्तन के समय इसका उपयोग किया जाता है।
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4. करतल : इसे खड़ताल भी कहते हैं। इस वाद्य यंत्र को आपने नारद मुनि के चित्र में उनके हाथों में देखा होगा। यह भी भजन और कीर्तन में उपयोग किया जाना वाला यंत्र है।
 
 
5. ढोल : ढोलक कई प्रकार के होते हैं। अक्सर इन्हें मांगलिक कार्यों के दौरान बजाया जाता है। यह भी भजन और कीर्तन में उपयोग किया जाना वाला यंत्र है।
 
6. नगाड़ा : नगाड़ा प्राचीन समय से ही प्रमुख वाद्य यंत्र रहा है। इसे बजाने के लिए लकड़ी की डंडियों से पीटकर ध्वनि निकाली जाती है। इसका उपयोग लोक उत्सवों, भजन-कीर्तन आरती आदि के अवसर पर भी किया जाना लगा। इसे दुंदुभी भी कहा जाता है। 
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7. मृदंग : यह दक्षिण भारत का एक थाप यंत्र है। बहुत ही मधुर आवाज के इस यंत्र का इस्तेमाल गांवों में कीर्तन गीत गाने के दौरान किया जाता है। अधिकतर आदिवासी इलाके में ढोल के साथ मृदंग का उपयोग भी होता है।
 
8. डमरू : डमरू या डुगडुगी एक छोटा संगीत वाद्य यंत्र होता है। डमरू का हिन्दू, तिब्बती व बौद्ध धर्म में बहुत महत्व माना गया है। भगवान शंकर के हाथों में डमरू को दर्शाया गया है। भजन-कीर्तन में इसका उपयोग होता है।
 
कई जगहों पर वंसी, वीणा, पुंगी, चिमटा, तुनतुना, घाटम, दोतार, तबला आदि का उपयोग भी किया जाता है।

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