नदी स्नान के नियम और प्रकार, जानिए

Webdunia
WD
हिन्दू धर्म अनुसार स्नान और ध्यान का बहुत महत्व है। स्नान के पश्चात ध्यान, पूजा या जप आदि कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। हमारे शरीर में 9 छिद्र होते हैं उन छिद्रों को साफ-सुधरा बनाने रखने से जहां मन पवित्र रहता है वहीं शरीर पूर्णत: शुद्ध बना रहकर निरोगी रहता है।

स्नान योग का महत्व
संध्यावंदन या पूजा नियम

प्रात: काल स्नान : तीर्थ में प्रात: काल स्नान करने का महत्व है। प्रात: काल स्नान करने से दुष्ट विचार और आत्मा पास नहीं आते। मलपूर्ण शरीर शुद्ध तीर्थ मे स्नान करने से शुद्ध होता है। इस प्रकार दृष्टफल-शरीर की स्वच्छता, अदृष्टफल-पापनाश तथा पुण्य की प्राप्ति, यह दोनों प्रकार के फल मिलते हैं, अतः प्रातः स्नान करना चाहिए।

रूप, तेज, बल पवित्रता, आयु, आरोग्य, निर्लोभता, दुःस्वप्न का नाश, तप और मेधा यह दस गुण प्रातः स्नान करने वाले को प्राप्त होते हैं। अतएव लक्ष्मी, पुष्टी व आरोग्य की वृद्धि चाहने वाले मनुष्य को सदेव स्नान करना चाहिए ।

अगले पन्ने पर स्नान के प्रकार..



स्नान के प्रकार :
1. मंत्र स्नान- आपो हि ष्ठा 'इत्यादि मंत्रो से मार्जन करना
2. भोम स्नान- समस्त शरीर मे मिट्टी लगाना
3. अग्नि स्नान -भस्म लगाना
4. वायव्य स्नान- गाय के खुर की धुली लगाना
5. दिव्य स्नान- सूर्य किरण मे वर्षा के जल से स्नान
6. वरुण स्नान- जल मे डुबकी लगाकर स्नान करना
7. मानसिक स्नान -आत्म चिंतन करना

यह सात प्रकार के स्नान हैं। अशक्तजनों को असमर्थ होने पर सिर के नीचे ही स्नान करना चाहिए अथवा गीले कपड़े से शरीर को पोछना भी एक प्रकार का स्नान है।

अगले पन्ने पर स्नान में कौन सा जल श्रेष्ठ, जानिए..


कहां का जल श्रेष्ठ: कुए से निकले जल से झरने का जल, झरने के जल से सरोवर का जल, सरोवर के जल से नदी का जल, नदी के जल से तीर्थ का जल और तीर्थ के जल से गंगाजी का जल अधिक श्रेष्ठ है। जहां धोबी का पाट रखा हो और कपड़ा धोते समय जहां तक छींटे पड़ते हो वहां तक का जलस्थान अपवित्र माना गया है। इसी तरह जहां शोचादि कर्म किया जाता हो उसके आसपास स्नान का जल अपवि‍त्र माना गया है।

अगले पन्ने पर नदी स्नान विधि, जानिए


नदी स्नान की विधी: उषा की लाली से पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है। इससे प्रजापत्य का फल प्राप्त होता है। नदी से दूर तट पर ही देह पर हाथ मलमलकर नहा ले, तब नदी में गोता लगाए। शास्त्रों में इसे मलापकर्षण स्नान कहा गया है। यह अमंत्रक होता है। यह स्नान स्वास्थ और शुचिता दोनों के लिए आवश्यक है। देह मे मल रह जाने से शुचिता में कमी आ जाती है और रोम छिद्रों के न खुलने से स्वास्थ में भी अवरोध होता है। इसलिए मोटे कपड़े से प्रत्येक अंग को रगड़-रगड़ कर स्नान करना चाहिए।

निवीत होकर बेसन आदी से यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर लें। इसके बाद शिखा बांधकर दोनों हाथों में पवित्री पहनकर आचमन आदी से शुद्ध होकर दाहिने हाथ मे जल लेकर शास्त्रानुसार संकल्प करे। संकल्प के पश्चात मंत्र पड़कर शरीर पर मिट्टी लगाएं। इसके पश्चात गंगाजी की उन उक्तियों को बोलें।

इसके पश्चात नाभी पर्यंत जल मे जाकर ,जल की ऊपरी सतह हटाकर ,कान औए नाक बंद कर प्रवाह की और या सूर्य की और मुख करके स्नान करें। तीन, पांच ,सात या बारह डुबकियां लगाए। डुबकी लगाने स पहले शिखा खोल लें।

स्नान में निषिद्ध कार्य : नदी के जल में वस्त्र नही निचोड़ना चाहिए। जल में मल-मूत्र त्यागना और थूकना नदी का पाप माना गया है। शोचकाल वस्त्र पहनकर तीर्थ में स्नान करना निषिद्ध है। तेल लगाकर तथा देह को मलमलकर नदी में नहाना मना है।
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Falgun month: फाल्गुन मास के व्रत त्योहारों की लिस्ट

हवन द्वारा कैसे कर सकते हैं भाग्य परिवर्तन? जानिए किस हवन से होगा क्या फायदा

क्यों चित्रकूट को माना जाता है तीर्थों का तीर्थ, जानिए क्यों कहलाता है श्री राम की तपोभूमि

मीन राशि पर सूर्य, शनि, राहु की युति: क्या देश दुनिया के लिए खतरे का है संकेत?

महाकुंभ से लौटने के बाद क्यों सीधे जाना चाहिए घर, तुरंत ना जाएं इन जगहों पर

सभी देखें

धर्म संसार

17 फरवरी 2025 : आपका जन्मदिन

17 फरवरी 2025, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Weekly Horoscope: फरवरी का तीसरा सप्ताह 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा, पढ़ें अपना साप्ताहिक भविष्यफल

Aaj Ka Rashifal: आज इन 3 राशियों को मिलेगी हर कार्य में सफलता, पढ़ें 16 फरवरी का दैनिक राशिफल

कौन है देश का सबसे अमीर अखाड़ा, जानिए कहां से आती है अखाड़ों के पास अकूत संपत्ति