संस्कृत के पौराणिक मंत्र : नवग्रहों के वैदिक मंत्र

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संस्कृत को देव भाषा कहा जाता है। वेबदुनिया का टीम का यह विनम्र प्रयास है कि इस अति प्राचीन भाषा संस्कृत में रचे श्लोक-सुभाषित-व्याकरण को एक साथ एक स्थान पर प्रस्तुत किया जाए। संस्कृत भाषा के प्रशंसक, विद्वान और विशेषज्ञों से निवेदन है कि भाषा को सहेजने और संवारने के इस प्रयास में हमारे साथ जुड़ें। जो भी संस्कृत संबंधी विशिष्ट और दुर्लभ ज्ञान हमारे साथ बांटना चाहे उनका स्वागत है। प्रस्तुत है नवग्रहों के वैदिक मंत्र

सूर्य - ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् (यजु. 33। 43, 34। 31)
 
चन्द्र - ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।
(यजु. 10। 18)
 
मंगल - ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। (यजु. 3।12)
 
बुध - ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च। अस्मिन्त्सधस्‍थे अध्‍युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यशमानश्च सीदत।। (यजु. 15।54)
 
गुरु - ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।। (यजु. 26।3)
 
शुक्र - ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।। (यजु. 19।75)
 
शनि - ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।। (यजु. 36।12)
 
राहु - ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता।। (यजु. 36।4)
 
केतु - ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। (यजु. 29।37) 

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