जेंडर डिस्फोरिया यानी एक लिंग से दूसरे लिंग की चा ह। अक्सर देखा गया है कि कुछ लोगों क े स्त्री देह में पुरुष मन या पुरुष देह में स्त्री मन होता है। यह जैविक या प्राकृतिक त्रुटि के अलावा हार्मोनल बदलाव का नतीजा है। प्रस्तुत है जेंडर डिस्फोरिया के लक्ष ण, कारण और विश्लेषण -
जेंडर डिस्फोरिया के लक्षण
* अपने लिंग से परेशान होकर दूसरे लिंग में जाने की कोशिश करना।
* लड़कों का अधिकतर लड़कियों की-सी हरकतें करना।
* उनके कपड़े पहनकर सहज महसूस करना।
* चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ देखकर परेशान हो जाना जबकि लड़कियां अपने स्तन और मासिक धर्म से परेशान हो जाती हैं।
जेंडर डिस्फोरिया' में व्यक्ति को खुद की शारीरिक और मानसिक बनावट में अंतर दिखाई पड़ता है। व्यक्ति लड़की या लड़का पूरी तरह से बनना नहीं चाहता। उसे अपनी शारीरिक संरचना पसंद है। अधिकतर किन्नर इसी के शिकार होते हैं, जो शारीरिक रूप से लड़के होते हैं, पर वे मानसिक रूप से लड़कियों जैसा व्यवहार करते हैं।
एक अध्ययन में पाया गया कि अगर कोई व्यक्ति 'जेंडर आईडेंटिटी डिसऑर्डर' का शिकार हो तो वह किन्नर ही बने, यह सोचना ठीक नहीं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति अपना सेक्स बदलने के लिए सर्जरी करवा सकता है। तकरीबन 50 किन्नरों से बात करने पर पता चला कि 84 प्रतिशत किन्नर 'जेंडर आईडेंटिटी डिसऑर्डर' के शिकार हैं। उनकी इस मनोदशा को शुरुआती अवस्था में ही इलाज द्वारा सुधारा जा सकता है। असल में किन्नर 'थर्ड जेंडर' में आते हैं जबकि 'जेंडर डिस्फोरिया' में व्यक्ति 'सिंगल जेंडर' का होता है।
न करें मारपीट
इस तरह की अव्यवस्था या गड़बड़ी बच्चे को ढाई या 3 साल की अवस्था से शुरू हो जाती है। जब बच्चा अपने लिंग की पहचान कर पाता है। ऐसे बच्चे समलैंगिक नहीं होते। ये अधिकतर लड़कियों के बीच में खेलते या फिर लड़कियां लड़कों के बीच में खेलना, उनकी जैसी हरकतें वगैरह करते हैं। ऐसे में समाज उनकी हंसी उड़ाया करता है। परेशान होकर माता-पिता उससे मारपीट करते हैं, जो ठीक नहीं है।
यह अव्यवस्था बच्चे को जन्म से ही होती है। लेकिन कई बार कुछ विडंबना या घटना भी इसे जन्म दे सकती है, जैसे कि पिता का घर से दूर रहना, पिता का मर जाना आदि। इस तरह के बच्चे बहुत कम डॉक्टर तक पहुंच पाते हैं।
बचपन से ही बच्चे की आदत को सुधारना जरूरी है। कई बार माता-पिता लड़की को लड़कों के कपड़े पहना देते हैं, क्योंकि घर में लड़का नहीं है। ऐसे में बच्चे के कुछ हावभाव लड़कों जैसे हो जाते हैं, जैसा कि उनके पास आई एक लड़की का हुआ, जो अपने पिता की मौत के बाद अपने आपको लड़का समझने लगी और बाद में अपना 'सेक्स' भी चेंज करवा डाला। यह सर्जरी हमारे देश में काफी लंबी है और उम्रभर हार्मोन देना पड़ता है, क्योंकि उनमें स्वाभाविक तौर पर हार्मोन नहीं होता।
मजाक न उड़ाएं
जब लड़की या लड़का अपने आपको विपरीत लिंग के समझने लगते हैं तो सबसे पहले पड़ोसी, दोस्त वगैरह उसका मजाक उड़ाते हैं जिससे बच्चे को तनाव, उदासीनता, घबराहट आदि होने लगती है इसलिए बड़े होकर वे बच्चे 'सेक्स चेंज' की लंबी प्रक्रिया को भी अपनाने के लिए तैयार हो जाते हैं। समय रहते अगर माता-पिता मनोरोग चिकित्सक के पास जाएं तो बच्चे को इस समस्या से निकालने का प्रयास किया जा सकता है।
इसमें यह देखना होता है कि कहीं यह अव्यवस्था उस में पागलपन की वजह से तो नहीं है। अगर ऐसा नहीं है तो यह बीमारी नहीं है। इसका इलाज किया जा सकता है। माता-पिता समाज या परिवार से डरें नहीं, बल्कि आगे आकर बच्चे को इस समस्या से निजात दिलाने का प्रयास करें।
न करें
* ऐसी अव्यवस्था होने पर माता-पिता बच्चों से मारपीट या जबरदस्ती न करें।
* उसका मजाक न उड़ाएं।
* उसे समझाने की कोशिश करें।
* झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र, साधु-संत, ओझा आदि का सहारा कभी न लें। उसकी शादी करवाने के बारे में भी न सोचें।
* लक्षण पाए जाने पर मनोरोग चिकित्सक से तुरंत मिलें।