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Shani Jayanti 2024 : शनिदेव के जन्म की रोचक पौराणिक कथा

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WD Feature Desk

, बुधवार, 5 जून 2024 (17:07 IST)
Shani birth story Katha : ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनिदेव का जन्म हुआ था। हालांकि कुछेक ग्रंथों में शनिदेव का जन्म भाद्रपद मास की शनि अमावस्या को माना गया है। इस बार 6 जून 2024 गुरुवार के दिन उनकी जयंती मनाई जा रही है। इसी दिन वट सावित्री का व्रत भी रखा जाता है। आओ जानते हैं कि शनिदेव का जन्म कैसे हुआ था। उनके माता, पिता, भाई और बननों के नाम किया है। शनि महाराज के जन्म की रोचक पौराणिक कथा।
 
नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। 
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌॥
 
शनिदेव के जन्म की कथा: एक कथा के अनुसार भगवान शनिदेव का जन्म ऋषि कश्यप के अभिभावकत्व यज्ञ से हुआ माना जाता है। लेकिन स्कंदपुराण के काशीखंड अनुसार शनि भगवान के पिता सूर्य और माता का नाम छाया है। उनकी माता को संवर्णा भी कहते हैं। ALSO READ: shani jayanti 2024 : शनि जयंती पर कैसे करें पूजा, पूजन का शुभ मुहूर्त और मंत्र
 
सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ और फिर संज्ञा ने ही सूर्यदेव के ताप से बचने के लिए संज्ञा ने अपने तप से अपना प्रतिरूप संवर्णा को पैदा किया और संज्ञा ने संवर्णा से कहा कि अब से मेरे बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिए। संज्ञा उसे सूर्यदेव के महल में छोड़कर चली गई। सूर्यदेव ने उसे ही संज्ञा समझा और सूर्यदेव और संवर्णा के संयोग से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।। संज्ञा का प्रतिरूप होंने के कारण संवर्णा का एक नाम छाया भी हुआ।ALSO READ: शनि जयंती का महत्वपूर्ण अवसर, करें सुबह से लेकर रात तक ये 25 कार्य, हमेशा के लिए शनिदेव होंगे प्रसन्न
 
छाया के तप से शनिदेव हुए काले : कहते हैं कि जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव का कठोर तपस्या किया था। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान यानि शनिदेव पर भी पड़ा। फिर जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला निकला। यह रंग देखकर सूर्यदेव को लगा कि यह तो मेरा पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।
 
पिता और पुत्र में हुआ मनमुटाव : मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव उनकी शक्ति से काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी तब कहीं उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन इस घटना के चलते पिता और पुत्र का संबंध हमेशा के लिए खराब हो गया।ALSO READ: शनि जयंती 2024 : शनि महाराज के प्रकोप से बचने के 10 अचूक उपाय
 
शनिदेव का स्वरूप : शनिदेव के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। कहीं-कहीं इन्हें कौवे या भैंसे पर सवार भी बताया गया है। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं। इन्हें यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि नामों से जाना जाता है।
 

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