हम आपको बताते हैं कि शनि से डरना नहीं बल्कि उन्हें समझने से ही हम उनकी मार से बच कसते हैं। देवता और भगवान सभी को शनि की वक्र दृष्टि को सहना पड़ा है तो मनुष्य की बिसात क्या। अत: शनि से बचने का एक मात्र तरीका आप जान लीजिए।
शनिदेव का का परिचय : इन्हें यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि कहा जाता है। इनके सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं।
शनि ग्रह की शक्ति : इस ग्रह के देवता लाल किताब के अनुसार भैरवजी और परंपरागत ज्योतिष के अनुसार शनिदेव हैं। इनका गोत्र कश्यप, जाति क्षत्रिय, रंग श्याम, नीला, वाहन गीद्ध, भैंसा, कौवा, दिशा वायव, वस्तु लोहा, फौलाद, पोशाक जुराब, जूता, पशु भैंस या भैंसा, वृक्ष कीकर, आक और खजूर का वृक्ष, राशि: बुध, शुक्र, राहु मित्र। सूर्य, चंद्र और मंगल शत्रु और बृहस्पति समय। भ्रमण काल एक राशि में अढ़ाई वर्ष। नक्षत्र पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, शरीर के अंगों में दृष्टि, बाल, भवें, कनपटी, पेशा लुहार, तरखान और मोची, सिफत: मूर्ख, अक्खड़, कारिगर, गुण देखना, भालना, चालाकी, मौत और बीमारी, शक्ति जादूमंत्र देखने दिखाने की शक्ति, मंगल के साथ होतो सर्वाधिक बलशाली
शनि देव मकर और कुम्भ राशी के स्वामी है। तुला में उच्च का और मेष में नीच का माना गया है। ग्यारहवां भाव पक्का घर। दसवें और अष्टम पर भी आधिपत्य।
कर्म होता संचालित : शनि से ही हमारा कर्म जीवन संचालित होता है। दशम भाव को कर्म, पिता तथा राज्य का भाव माना गया है। एकादश भाव को आय का भाव माना गया है। अतः कर्म, सत्ता तथा आय का प्रतिनिधि ग्रह होने के कारण कुंडली में शनि का स्थान महत्वपूर्ण माना गया है।
न्यायाधीश है शनि : मान्यता है कि कुंडली में सूर्य है राजा, बुध है मंत्री, मंगल है सेनापति, शनि है न्यायाधीश, राहु-केतु है प्रशासक, गुरु है अच्छे मार्ग का प्रदर्शक, चंद्र है माता और मन का प्रदर्शक, शुक्र है- पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति तथा वीर्य बल। जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है तो शनि के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की कोर्ट में दंड पहले दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल कर दिया जाए या नहीं।
शनि को यह पसंद नहीं : भगवान शनि को पसंद नहीं है जुआ-सट्टा खेलना, शराब पीना, ब्याजखोरी करना, परस्त्री गमन करना, अप्राकृतिक रूप से संभोग करना, झूठी गवाही देना, निर्दोष लोगों को सताना, किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई कार्य करना, चाचा-चाची, माता-पिता, सेवकों और गुरु का अपमान करना, ईश्वर के खिलाफ होना, दांतों को गंदा रखना, तहखाने की कैद हवा को मुक्त करना, भैंस या भैसों को मारना, सांप, कुत्ते और कौवों को सताना। सफाईकर्मी और अपंगों का अपमान करना आदि। शनि के मूल मंदिर जाने से पूर्व उक्त बातों पर प्रतिबंध लगाएं।
अशुभ की निशानी : शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी। झूठे इल्जाम लगने लगते हैं। यदि व्यक्ति अपना चाल चलन ठीक नहीं रखता है जेल या फांसी तक हो सकती है।
फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं और तब सांस लेने में तकलीफ होती है। हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, तब जोड़ों का दर्द भी पैदा हो जाता है। रक्त की कमी और रक्त में बदबू बढ़ जाती है। पेट संबंधी रोग या पेट का फूलना। सिर की नसों में तनाव। अनावश्यक चिंता और घबराहट बढ़ जाती है।
शुभ की निशानी : शनि की स्थिति यदि शुभ है तो व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। बाल और नाखून मजबूत होते हैं। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और समाज में मान-सम्मान खूब रहता हैं। उस व्यक्ति के कोई शत्रु नहीं होते हैं और वह सभी से सहयोग प्राप्त करता है।
उपाय : सर्वप्रथम भगवान भैरव की उपासना करें। शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलावे। छायादान करें, अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसो का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा मांगते हुए रख आएं। दांत साफ रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें। अत: में कहते हैं कि जो व्यक्ति प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़कर शनि देव को जो पसंद नहीं है उसका पालन करता रहता है तो भगवान शनिदेव उसको किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं देते हैं।
सावधानी : कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में हो तो भिखारी को तांबा या तांबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट होगा। यदि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं। अष्टम भाव में हो तो मकान न बनाएं, न खरीदें। उपरोक्त उपाय भी लाल किताब के जानकार व्यक्ति से पूछकर ही करें।