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आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को क्यों मनाते हैं शीतलाष्टमी, जानें इस दिन बसौरा मनाने का महत्व

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WD Feature Desk

, सोमवार, 16 जून 2025 (09:50 IST)
Ashadh Ashtami Vrat 2025 : आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। हालांकि, शीतलाष्टमी का मुख्य पर्व चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे 'बसौड़ा' या 'शीतला सप्तमी/अष्टमी' के नाम से जाना जाता है। वर्ष 2025 में आषाढ़ का शीतलाष्टमी व्रत 19 जून, गुरुवार को पड़ रहा है।
 
धार्मिक मान्यता के अनुसार जो शीतला माता की पूजा के लिए समर्पित चार प्रमुख अष्टमी तिथियों (चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी) में से एक है। यद्यपि चैत्र की शीतलाष्टमी सर्वाधिक प्रचलित है, आषाढ़ की अष्टमी भी शीतला माता की पूजा के लिए शुभ मानी जाती है। आइए, आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को शीतलाष्टमी क्यों मनाते हैं और इस दिन 'बसौरा' मनाने का महत्व जानते हैं:
 
आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को क्यों मनाते हैं शीतलाष्टमी: शीतला माता को आरोग्य और स्वच्छता की देवी माना जाता है, जो चेचक (स्मॉल पॉक्स), खसरा, फोड़े-फुंसी और अन्य शीतजन्य व त्वचा संबंधी रोगों से रक्षा करती हैं। स्कंद पुराण में माता शीतला का उल्लेख है, जहां उन्हें दुर्गा और पार्वती का अवतार भी माना गया है।
 
• स्वास्थ्य और रोग मुक्ति: शीतला माता की पूजा का मुख्य उद्देश्य संक्रामक बीमारियों, विशेषकर चेचक (जिसे 'माता' निकलना भी कहा जाता है) से बचाव और उपचार है। ग्रीष्म ऋतु के अंत और वर्षा ऋतु के आगमन के समय भी कुछ संक्रमणों का खतरा होता है, ऐसे में शीतला माता की पूजा से आरोग्य की कामना की जाती है।
 
• शीतलता प्रदान करना: माता शीतला को शीतलता की देवी कहा जाता है। उनकी पूजा से शरीर को शीतलता मिलती है और ज्वर (बुखार) तथा गर्मी से संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है।
 
• स्वच्छता का प्रतीक: माता शीतला के हाथों में कलश (पवित्र जल), सूप (सफाई के लिए), झाड़ू (स्वच्छता के लिए) और नीम के पत्ते (औषधीय गुण) होते हैं। यह सब स्वच्छता और रोगों से मुक्ति का प्रतीक है। उनकी पूजा स्वच्छता के महत्व पर भी जोर देती है।
 
'बसौरा' (बासी भोजन) मनाने का महत्व: 'बसौरा' या 'बासोड़ा' शब्द 'बासी भोजन' से लिया गया है। यह शीतलाष्टमी पर्व का एक अभिन्न अंग है, खासकर चैत्र मास की शीतलाष्टमी पर इसकी प्रधानता होती है। आषाढ़ की शीतलाष्टमी पर भी कुछ जगहों पर यह परंपरा निभाई जाती है।
 
• धार्मिक महत्व:
- देवी को शीतलता: ऐसी मान्यता है कि माता शीतला को ठंडी चीजें और बासी भोजन अत्यंत प्रिय है। उन्हें यह अर्पित करने से वे प्रसन्न होती हैं। इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता, ताकि देवी को शीतलता प्रदान की जा सके।
 
- प्रकोप से बचाव: यह माना जाता है कि इस दिन गर्म भोजन बनाने और खाने से माता शीतला क्रोधित हो सकती हैं, जिससे शारीरिक कष्ट (जैसे चेचक, फोड़े) हो सकते हैं। इसलिए बासी भोजन खाया जाता है।
 
• वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व:
- मौसम परिवर्तन: शीतलाष्टमी शीत और ग्रीष्म ऋतु के संधिकाल में आती है। इस समय मौसम में बदलाव होता है और गर्म भोजन खाने से शरीर में पित्त बढ़ता है, जिससे त्वचा रोग और अन्य बीमारियां हो सकती हैं। बासी (ठंडा) भोजन खाने की परंपरा शरीर को मौसम के अनुकूल ढालने में मदद करती है।
 
- आहार की आदतें: यह परंपरा लोगों को ग्रीष्म ऋतु में ठंडी चीजों का अधिक सेवन करने के लिए प्रेरित करती है, जो शरीर को हाइड्रेटेड और स्वस्थ रखने में सहायक है।
 
- स्वच्छता की प्रेरणा:  चूंकि बसौरा पर बासी भोजन खाया जाता है, इसलिए एक दिन पहले भोजन को बहुत साफ-सुथरे तरीके से तैयार किया जाता है और यह स्वच्छता के महत्व को भी दर्शाता है। अत: शीतलाष्टमी पर बासी भोजन या बसौड़ा पर्व माता शीतला के आशीर्वाद का प्रतीक है।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

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