देवों के देव महादेव

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- ज्योत्स्ना भोंडवे
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भारत शिवपूजकों का देश माना जाता है। जिस गाँव में शिव मंदिर नहीं हो, ऐसा गाँव भारतभर में ढूँढे से भी नहीं मिलेगा। लगभग सभी जगह शिव पूजन का विधान है। शिव जिन्हें सदाशिव, सांब, महेश, मंगेश, गिरिजापति, पार्वतीपति, भूतनाथ, कर्पूरगौर, नीलकंठ, चंद्रमौली, आशुतोष और महादेव न जाने कितने ही नामों से पुकारा जाता है। शिव यानी मंगलमय, कल्याण करने वाला, सदाशिव तत्व। इसे परमात्मा भी कहते हैं।

शिव जन्म-मृत्यु के परे हैं, किसी भी दुःख का उन्हें जरा भी स्पर्श नहीं होता। शिव संहारक हैं। ब्रह्मा सृष्टि (मानव) का निर्माण करते हैं, तो विष्णु उस सृष्टि के पालनहार हैं और शिव संहारक। यही वजह है कि मरने वाले का जिक्र 'कैलाशवासी' ही किया जाता है। शिव का निवास कैलाश पर जो है।

आशुतोष यानी जल्द संतुष्ट होने वाले। दानवों के तप से प्रसन्ना होकर उन्होंने दानवों को मनचाहा वर दे दिया था। समुद्र मंथन में निकले विष को जग के कल्याण हेतु विषपान करने वाले जग के नाथ को नीलकंठ भी कहते हैं। शिव के मस्तक पर गंगा और चंद्र को स्थान मिला है, त्रिनेत्री होने से 'त्र्यंबक' भी कहलाते हैं। 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र सभी दुःखों से तारने वाला है।

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शिव यानी पापों का नाश करने वाले, जिसके आगे का नमः मोक्ष पद देने वाला है। ऐसे उमामहेश्वर देवों के देव महादेव हैं। इस पाँच अक्षरों के छोटे से मंत्र में अद्भुत सामर्थ्य है, जो विश्व कल्याण का महामंत्र है। पंच महाभूतों की शक्ति, पंचभौतिक शरीर में संचारित मानसिक शांति देने वाली जागृत शक्ति का केंद्र है।

शिव को प्रिय हैं बेलपत्र : एक कथा के अनुसार श्रीविष्णु पत्नी लक्ष्मी ने शंकर के प्रिय श्रावण माह में शिवलिंग पर प्रतिदिन 1001 सफेद कमल अर्पण करने का निश्चय किया। स्वर्ण तश्तरी में उन्होंने गिनती के कमल रखे, लेकिन मंदिर पहुँचने पर तीन कमल अपने आप कम हो जाते थे। सो मंदिर पहुँचकर उन्होंने उन कमलों पर जल छींटा, तब उसमें से एक पौधे का निर्माण हुआ। इस पर त्रिदल ऐसे हजारों पत्ते थे, जिन्हें तोड़कर लक्ष्मी शिवलिंग पर चढ़ाने लगीं, सो त्रिदल के कम होने का तो सवाल ही खत्म हो गया।

और लक्ष्मी ने भक्ति के सामर्थ्य पर निर्माण किए बिल्वपत्र शिव को प्रिय हो गए। लक्ष्मी यानी धन-वैभव, जो कभी बासी नहीं होता। यही वजह है कि लक्ष्मी द्वारा पैदा किया गया बिल्वपत्र भी वैसा ही है। ताजा बिल्वपत्र न मिलने की दशा में शिव को अर्पित बिल्वपत्र पुनः चढ़ाया जा सकता है। बिल्वपत्र का वृक्ष प्रकृति का मनुष्य को दिया वरदान है।

नर्मदा के शिवलिंग का पूजन प्रभाव‍ी : सामान्य शिवलिंग के दर्शन से मिलने वाले पुण्य से हजार गुना पुण्य नर्मदा शिवलिंग के दर्शन और पूजन से मिलता है। नर्मदा शिवलिंग कई रंगों व आकारों में उपलब्ध हैं। ये सफेद, काले, हरे और गहरे कत्थई रंग के होते हैं, जो जामुन या हंस के अंडों के आकार में बेहद चमकदार होते हैं जो बेहद उच्च ऊर्जा धारण किए होते हैं।

शिवोपासना में कड़क सोळे (पवित्रता) में की जाती है। लेकिन नर्मदा के शिवलिंग ही मात्र ऐसे हैं जिनकी स्थापना और पूजन में किसी विशिष्ट संस्कार या कर्मकांड की जरूरत नहीं। इनके पूजन से ज्ञानार्जन होता है व बिल्वपत्र के चढ़ाने से अधिक यशस्वी व प्रभावी हुआ जा सकता है। इसके पूजन को संसार-सुख की दृष्टि से प्रभावी माना जाता है।
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