शिव तुम्हें बुलाते हैं...

महाशिवरात्रि पर्व विशेष

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तुम भटक गए हो मनमाने नियमों, भिन्न मतों के भ्रम के जाल और खुद के मानसिक द्वंद्व में, क्योंकि तुम्हें भटकाया गया है। शिव को छोड़कर तुम्हारा दिमाग कहीं ओर लगाया गया है तभी तो तुम्हें रास्ता समझ में नहीं आता। किसने लगाया तुम्हारा दिमाग कहीं ओर? तुम खुद हो इसके जिम्मेदार।

हिंदुओं के मात्र दो संप्रदाय हैं। पहला शैव और दूसरा वैष्णव। अन्य सारे संप्रदाय उक्त दो संप्रदायों के अंतर्गत ही माने जाते हैं। हालाँकि वैदिक दर्शक के कारण अनेकों अन्य संप्रदाय का जिक्र भी किया जा सकता है। यहाँ शैव संप्रदाय को सबसे प्राचीन संप्रदाय माना जाता है।

नाथपंथी, शाक्तपंथी या आदि गुरु शंकराचार्य के दशनामी संप्रदाय सभी शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही माने जाते हैं। भारत में शैव संप्रदाय की सैकड़ों शाखाएँ हैं। यह विशाल वटवृक्ष की तरह संपूर्ण भारत में फैला हुआ है। कुंभ के मेले में इसकी विभिन्नता के दर्शन होते हैं, किंतु सभी एक मामले में एकमत है वह यह कि शिव ही परम सत्य और तत्व है।

ऐसा माना जाता है कि शैव पंथ में रात्रियों का महत्व अधिक है तो वैष्णव पंथ दिन के क्रिया-कर्म को ही शास्त्र सम्मत मानता है। शैव 'चंद्र' पर तो वैष्णव 'सूर्य' पर आधारित पंथ है। वर्षभर में बहुत सारी रात्रियाँ होती हैं उनमें से कुछ चुनिंदा रात्रियों का ही महत्व है। उन ‍चुनिंदा रात्रियों में भी महाशिवरात्रि का महत्व और भी ज्यादा है।

इस महाशिवरात्रि से जुड़ी अनेकों मान्यता है। माना जाता है कि प्रलय काल और सृष्टि रचना काल के बीच जो महारात्रि थी उसे ही शिवरात्रि कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि इसी रात्रि में भगवान शंकर का रुद्र के रूप में अवतार हुआ था। महाशिवरात्रि की रात्रि से संबंधित कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं।

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महाशिवरात्रि का संदेश : उपवास का आमतौर पर अर्थ होता है ऊपर वाले का मन में वास। उपवास का अर्थ भूखा रहना या निराहार नहीं होता। शिव की भक्ति करना ही उपवास है तो इस दिन पवित्र रहकर भगवान शंकर को अपने मन में बसाएँ रखने का महत्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर जल्दी ही प्रसन्न हो सकते हैं।

कुछ लोग इस रात्रि को जागरण करते हैं, लेकिन कुछ संतों का मानना है कि जागरण का सही अर्थ है पाँचों इंद्रियों द्वारा आत्मा पर जो बेहोशी या विकार छा गया है उसके प्रति जाग्रत हो जाना ही जागरण है। यंत्रवत जीने को छोड़कर अर्थात तंद्रा को तोड़कर चेतना को शिव के एक तंत्र में लाना ही महाशिवरात्रि का संदेश है।

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शिव तुम्हें बुलाते हैं : आकाश में शिव की अखंड ज्योत जल रही है। सारे साधु-संत और ज्ञानीजन उस अवधूत की ही शरण में रहकर सुखी और निरोगी है। उस परम योगी का ध्यान छोड़कर जो व्यक्ति कहीं ओर चला जाता है तो वह योगी जीवन के हर मोर्चे पर उस व्यक्ति का साथ देने के लिए उसे पुकारता है, लेकिन उसने अपने कान बंद कर रखें हैं इसीलिए दुख बार-बार उसका ही दरवाजा खटखटाता है।

रात का अंधेरा उसे डरावना लगता है। अंधेरा शाश्वत होता है इस अंधेरे को शिव भक्त ही चीर सकता है, इसलिए कहते हैं-

अकाल मृत्यु वह मरे, जो कर्म करें चांडाल का, काल उसका क्या बिगाड़े जो भक्त है महाकाल का ।
( वेबदुनिया डेस्क)

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