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सोमवार व्रत की आरती

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आरती करत जनक कर जोरे।
बड़े भाग्य रामजी घर आए मोरे॥
 
जीत स्वयंवर धनुष चढ़ाए।
सब भूपन के गर्व मिटाए॥
 
तोरि पिनाक किए दुइ खंडा।
रघुकुल हर्ष रावण मन शंका॥
 
आई सिय लिए संग सहेली।
हरषि निरख वरमाला मेली॥
 
गज मोतियन के चौक पुराए।
कनक कलश भरि मंगल गाए॥
 
कंचन थार कपूर की बाती।
सुर नर मुनि जन आए बराती॥
 
फिरत भांवरी बाजा बाजे।
सिया सहित रघुबीर विराजे॥
 
धनि-धनि राम लखन दोउ भाई।
धनि दशरथ कौशल्या माई॥
 
राजा दशरथ जनक विदेही।
भरत शत्रुघन परम सनेही॥
 
मिथिलापुर में बजत बधाई।
दास मुरारी स्वामी आरती गाई॥

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