सर्वमंगल के लिए महाशिवरात्रि पर अवश्य करें शिव पूजा

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
मंगलकारी है शिव का अमंगल रूप भी, जानिए क्यों 
 
महाशिवरात्रि की महिमा का शिवपुराण में बहुत ही सुन्दर वर्णन मिलता। भगवान शंकर की कृपा प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले भक्तों के लिए भगवान भोलेनाथ के निमित्त शिवरात्रि का व्रत अत्यंत उत्तम और मंगलकारी है। 


 
 
 
महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है। शिवरात्रि न केवल व्रत है, बल्कि त्योहार और उत्सव भी है। इस दिन भगवान भोलेनाथ का कालेश्वर रूप प्रकट हुआ था। महाकालेश्वर शिव की वह शक्ति है, जो सृष्टि के अंत के समय प्रदोष काल में अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से सृष्टि का अंत करती है।
 
महादेव चिता की भस्म लगाते हैं, गले में रुद्राक्ष धारण करते हैं और नंदी बैल की सवारी करते हैं। भूत, प्रेत, पिशाच शिव के अनुचर हैं। ऐसा अमंगल रूप धारण करने पर भी महादेव अत्यंत भोले और कृपालु हैं जिन्हें भक्ति सहित एक बार पुकारा जाए तो वे भक्त के हर संकट को दूर कर देते हैं।
 

महाशिवरात्रि व्रत कथा 
 
महाशिवरात्रि की कथा में शिव के इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का परिचय मिलता है। एक शिकारी था तथा वह शिकार करके अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। एक दिन की बात है। शिकारी पूरे दिन भूखा-प्यासा शिकार की तलाश में भटकता रहा, परंतु कोई शिकार हाथ न लगा। शाम होने को आई तो वह एक बेल के पेड़ पर चढ़कर बैठा।


 
वह जिस पेड़ पर बैठा था उस वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था। रात्रि में अपना धनुष-बाण लिए वह शिकार की तलाश में बैठा था और उसे शिकार भी मिला, परंतु निरीह जीव की बातें सुनकर वह उन्हें जाने देता। चिंतित अवस्था में वह बेल की पत्तियां तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जाता। जब सुबह होने आई तभी शिवजी माता पार्वती के साथ उस शिवलिंग से प्रकट होकर शिकारी से बोले- आज शिवरात्रि का व्रत था और तुमने पूरी रात जागकर बिल्वपत्र अर्पण करते हुए व्रत का पालन किया है इसलिए आज तक तुमने जो भी शिकार किए हैं और निर्दोष जीवों की हत्या की है, मैं उन पापों से तुम्हें मुक्त करता हूं और शिवलोक में तुम्हें स्थान देता हूं। इस तरह भोलेनाथ की कृपा से उसका परिवार सहित कल्याण हो गया। 
 
अगले पेज पर : महाशिवरात्रि महात्म्य एवं व्रत विधान : 


महाशिवरात्रि महात्म्य एवं व्रत विधान  : शिवरात्रि की बड़ी ही अनुपम महिमा है। जो शिवभक्त इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें चाहिए कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी यानी शिवरात्रि के दिन प्रात: उठकर स्नान करें फिर माथे पर भस्म अथवा श्रीखंड चंदन का तिलक लगाएं। हाथ में अक्षत, फूल, मुद्रा और जल लेकर शिवरात्रि व्रत का संकल्प करें। गले में रुद्राक्ष धारण करके शिवलिंग के समीप ध्यान की मुद्रा में बैठकर भगवान शिव का ध्यान करें। शांत चित्त होकर भोलेनाथ का गंगा जल से जलाभिषेक करें।
 

 
महादेव को दुग्ध स्नान बहुत ही पसंद है अत: दूध से अभिषेक करें। महादेव को फूल, अक्षत, दुर्वा, धतूरा, बेलपत्र अर्पण करें। शिवजी को उक्त पदार्थ अर्पित करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। 
 
शिवरात्रि के दिन रुद्राष्टक और शिवपुराण का पाठ सुनें और सुनाएं। रात्रि में जागरण करके नीलकंठ कैलाशपति का भजन और गुणगान करना चाहिए। अगले दिन भोलेशंकर की पूजा करने के बाद पारण कर अन्न-जल ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार महाशिवरात्रि का व्रत करने से शिव सान्निध्य प्राप्त होता है। 

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