महाशिवरात्रि पर जानिए शिव पार्वती विवाह की रोचक बातें

अनिरुद्ध जोशी
महाशिवरात्रि मनाने के दो कारण बताए जाते हैं। पहला यह कि इस दिन भगवान शंकर की शादी हुई थी। दूसरा यह कि ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। जहां तक विवाह की बात है तो पुराणों में विष्णु-लक्ष्मी विवाह, गणेशजी का रिद्धि-सिद्धि विवाह, राम-सीता विवाह और रुक्मणी-कृष्ण विवाह के साथ ही शिव-पार्वती के विवाह की भी खूब चर्चा होती है।
 
 
1. इस विवाह की चर्चा हर पुराण में मिलेगी। भगवान शंकर ने सबसे पहले सती से विवाह किया था। यह विवाह बड़ी कठिन परिस्थितियों में हुआ था क्योंकि सती के पिता दक्ष इस विवाह के पक्ष में नहीं थे। हालांकि उन्होंने अपने पिता ब्रह्मा के कहने पर सती का विवाह भगवान शंकर से कर दिया। राजा दक्ष द्वारा शंकरजी का अपमान करने के चलते सती माता ने यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया था।
 
2. इसके बाद शिवजी घोर तपस्या में चले गए। सती ने बाद में हिमवान के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। उस दौरान तारकासुर का आतंक था। उसका वध शिवजी का पुत्र ही कर सकता था ऐसा उसे वरदान था लेकिन शिवजी तो तपस्या में लीन थे। ऐसे में देवताओं ने शिवजी का विवाह पार्वतीजी से करने के लिए एक योजना बनाई। उसके तहत कामदेव को तपस्या भंग करने के लिए भेजा गया। कामदेव ने तपस्या तो भंग कर दी लेकिन वे खुद भस्म हो गए। 
 
3. देवताओं के अनुरोध और माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर बाद में शिवजी ने पार्वतीजी से विवाह किया। 
 
4. इस विवाह में शिवजी बरात लेकर पार्वतीजी के यहां पहुंचे। कहते हैं कि शिवजी की बारात में हर तरह के लोग, गण, देवता, दानव, दैत्यादि कई थे। शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए। यहां तक कि भूत-पिशाच और विक्षिप्त लोग भी उनके विवाह में मेहमान बन कर पहुंचे।
 
5. इस बारात को देखकर मता पार्वती की मां बहुत डर गई और कहा कि वह अपनी बेटी का हाथ ऐसे दुल्हे के हाथ में नहीं सौंपेगी। माता पार्वती ने स्थिति को बिगड़ते देखकर शिवजी से कहा कि वे हमारे रीति रिवाजों के अनुसार तैयार होकर आएं। इसके बाद शिवजी को दैवीय जल से नहलाकर पुष्पों से तैयार किया गया और उसके बाद ही उनकी शादी हुई।
 
6. विवाह के दौरान वर-वधू दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। एक राजा के लिए उसकी वंशावली सबसे अहम चीज होती है जो उसके जीवन का गौरव होता है। तो पार्वती की वंशावली का बखान खूब धूमधाम से किया गया परंतु जब शिवजी की वंशावली के बखान करने की बारी आई तो सभी चुप हो गए। बाद में नारदजी ने बात को संभाला और शिवजी के गुणों का बखान किया।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

शुक्र का कुंभ राशि में गोचर, इन 2 राशियों के लोगों को होगा नुकसान

जनवरी माह 2025 के प्रमुख व्रत एवं त्योहारों की लिस्ट

मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल और उत्तरायण का त्योहार कब रहेगा?

टैरो कार्ड्स का ज्योतिष कितना सही है, जानिए रहस्यमयी दुनिया का इतिहास

जय श्री हनुमान चालीसा | Shree Hanuman Chalisa Hindi

सभी देखें

धर्म संसार

21 दिसंबर 2024 : आपका जन्मदिन

21 दिसंबर 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

janm dinak se jane bhavishya 2025 : जन्म दिनांक से जानिए कि कैसा रहेगा नया साल 2025

Merry Christmas 2024: क्रिसमस ट्री का रोचक इतिहास, जानें कैसे सजाते थे Christmas Tree

भानु सप्तमी के दिन क्या करते हैं?

अगला लेख