भगवान शंकर ने समुद्र मंथन के पश्चात निकले विष को अपने कंठ में धारण किया था। इसलिए इस दिवस पर भगवान शिव के समक्ष अपने पापों का त्याग कर व मन की बुराइयों को भुलाकर अच्छी सोच विचार को अपनाना चाहिए।
कहा जाता कि जब इस धरती पर चारों ओर अज्ञान का अंधकार छा जाता है, तब ऐसी धर्म ग्लानि के समय शिव का दिव्य अवतरण इस धरा पर होता है। वास्तव में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा के दिव्य अवतरण की यादगार है।
माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था।
प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि भी कहा गया। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त किया जा सकता है ।