rashifal-2026

रुद्र और शिव में क्या है अंतर?

WD Feature Desk
शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025 (15:33 IST)
Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि, शिवरात्रि या सोमवार के दिन भगवान शिव के कई स्वरूपों की पूजा की जाती है। क्या शिवजी को ही रुद्र, शंकर या महेष कहा जाता है या कि इन सभी में कोई अंतर है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 26 फरवरी 2025 बुधवार के दिन मनाया जाएगा। आओ जानते हैं कि रुद्र और शिव में क्या अंतर है या कि नहीं।
 
रुद्र और शिव वास्तव में एक ही सत्ता के दो अलग-अलग पहलू हैं। रुद्र उनके उग्र और संहारक रूप को दर्शाता है, जबकि शिव उनके शांत, ध्यानमय और कल्याणकारी रूप को। समय के साथ, रुद्र और शिव एक ही परम सत्ता के रूप में पूजे जाने लगे, जिन्हें आज भगवान शिव के रूप में जाना जाता है।
 
रुद्र:-
कहते हैं कि वेदों के रुद्रदेव ही आगे चलकर शिव में परिवर्तित हो गए। बाद में शिव के ही रूप को रुद्र रूप माना जाने लगा। ऋग्वेद में रुद्र एक प्राचीन वैदिक देवता हैं, जिन्हें प्रलयकारी, भयंकर, रोदन करने वाला और उग्र रूप में वर्णित किया गया है। इन्हें प्रकृति में तूफान, आकाशीय बिजली, युद्ध और विनाश से भी जोड़ा जाता है। ऋग्वेद में रुद्र का वर्णन एक प्रचंड, उग्र और विनाशकारी देवता के रूप में किया गया है, जो आंधी-तूफान और महामारी लाने की शक्ति रखते हैं। इन्हें औषधियों और चिकित्सा के देवता के रूप में भी माना जाता है। गर्जना करने वाले, रुदन कराने वाले देवता हैं, जिनका संबंध आकाशीय बिजली, तूफान और प्रलय से है।
 
ऋग्वेद और यजुरवेद में रूद्र भगवान को पृथ्वी और स्वर्ग के बीच बसी दुनिया के ईष्टदेव के रूप में बताया गया है। दरअसल इस सृष्टि में जैसे जीवित रहने के लिए प्राणवायु का महत्व है, उसी प्रकार रूद्र रूप का भी अस्तित्व सर्वोपरि है। उपनिषदों में भगवान रूद्र के ग्यारह रूपों को शरीर के 10 महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत मानने के साथ ही 11 वें को आत्म स्वरूप माना गया है। सृष्टि में जो भी जीवित है, इन्हीं की बदौलत है। मृत्यु पश्चात् आपके सगे-संबंधियों को रोना आता है। इसीलिए रूद्र को पवित्र अर्थों में रुलानेवाला भी कहा जाता है। 
 
यजुर्वेद में "श्री रुद्रम" या "शतरुद्रीय" मंत्र मिलता है, जिसमें रुद्र को 1008 नामों से संबोधित किया गया है और उनमें शिव के गुणों को देखा जा सकता है। इसमें रुद्र से क्रोध को शांत करने और कल्याणकारी बनने की प्रार्थना की गई है।
 
"नमो रुद्राय विष्णवे मृडा मेऽस्मै"
हे रुद्र, जो विष्णु रूप में भी हैं, कृपया हम पर कृपा करें। यहां रुद्र को शांत कर शिव के रूप में प्रकट करने की भावना देखी जा सकती है।
 
11 रुद्रों के नाम: 1. शंभु, 2. पिनाकी, 3.गिरीश, 4. स्थाणु, 5. भर्ग, 6. भव, 7. सदाशिव, 8. शिव, 9. हर, 10. शर्व, 11. कपाली। 
 
अन्य जगह 11 रुद्रों के नाम इस प्रकार है- 1. महाकाल, 2. तारा, 3. बाल भुवनेश, 4. षोडश श्रीविद्येश, 5. भैरव, 6. छिन्नमस्तक, 7. द्यूमवान, 8. बगलामुख, 9. मातंग, 10. कमल, 11. शंभू। 
 
अन्य जगह 11 रुद्रों के नाम इस प्रकार है- कपाली, पिंगल, भीम, विरूपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शंभु, चण्ड, भव। ALSO READ: यह हैं रुद्र के 11 विलक्षण रूप
 
शिव:-
बाद में पुराणों में रुद्र को भगवान शिव के एक रूप के रूप में देखा जाने लगा। शिव को निराकार और उनके साकार रूप को शंकर कहते हैं। माना जाता है कि सबसे पहले रुद्र हुए। उन्हीं रुद्र का एक अवतार महेश का है। उन्हीं महेश को महादेव और शंकर कहते हैं। वे शिव अर्थात ब्रह्म के समान होने के कारण शिव कहलाए।
 
शिव को त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में 'संहारकर्ता के रूप में माना जाता है। शिव का रूप शांत, ध्यानमग्न और कल्याणकारी होता है। वे योग, ध्यान और मोक्ष के प्रतीक माने जाते हैं। रुद्र की उग्रता के विपरीत, शिव करुणा, प्रेम और संतुलन का प्रतीक हैं। ऋग्वेद में रुद्र को 'शिवतम' (अर्थात् सबसे शुभ और कल्याणकारी) भी कहा गया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि बाद में रुद्र ही शिव के रूप में विकसित हुए।
 
भगवान शिव हिंदू धर्म के त्रिदेवों में से एक हैं- ब्रह्मा (सृजनकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता), और महेश/शिव (संहारकर्ता)। हालांकि, शिव केवल संहार ही नहीं करते, बल्कि वे सृष्टि की अनंत ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिव को पौराणिक ग्रंथों में आदियोगी (प्रथम योगी), महादेव (महानतम देव) और भोलेनाथ (सरल, दयालु रूप) के रूप में चित्रित किया गया है।
 
गंगा उनकी जटा से प्रवाहित होती है, जो जीवन और पवित्रता का प्रतीक है। त्रिनेत्रधारी हैं, जो भूत, भविष्य और वर्तमान पर उनकी दृष्टि को दर्शाता है। नंदी (बैल) उनका वाहन है, जो शक्ति और धर्म का प्रतीक है। सर्पों की माला पहने हुए हैं, जो भय पर विजय को दर्शाता है। डमरू बजाते हैं, जिससे ओंकार (सृष्टि की ध्वनि) उत्पन्न होती है।
 
1.योगेश्वर शिव: शिव योग के स्वामी हैं, जो ध्यान और समाधि की अवस्था में रहते हैं।
2.पंचतत्वों के शिव: शिव ही पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) के स्वामी हैं, जिनसे सृष्टि बनी है।
3.नटराज शिव: शिव नृत्य के देवता हैं, जो तांडव नृत्य द्वारा ब्रह्मांड की लय को बनाए रखते हैं।
4.अर्धनारीश्वर शिव: शिव पार्वती के साथ आधे-आधे शरीर में विराजमान हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि वे पुरुष और प्रकृति का संतुलन बनाए रखते हैं।
5.योग और मोक्ष के स्वामी: भगवान शिव को एक तत्व (सिद्धांत) भी देते हैं जो मोक्ष को प्रदान करता है।
6.महादेव: देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी, ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए। इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं।
7.पशुपतिनाथ : पशुओं के स्वामी और रखवाले शिव।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Gita Jayanti Wishes: गीता जयंती पर अपनों को भेजें ये 5 प्रेरणरदायी शुभकामना संदेश

Shani Margi 2025: 28 नवंबर 2025 को शनि चलेंगे मार्गी चाल, 3 राशियों को कर देंगे मालामाल

Vivah Panchami 2025: विवाह पंचमी कब है, क्यों नहीं करते हैं इस दिन विवाह?

Sun Transit In Scorpio: सूर्य का वृश्‍चिक राशि में गोचर, 12 राशियों का राशिफल और भविष्‍यफल

बुध का तुला राशि में गोचर, 12 राशियों का राशिफल, किसे मिलेगा लाभ किसको होगा नुकसान

सभी देखें

धर्म संसार

Lal Kitab Tula Rashifal 2026: तुला राशि (Libra)- राहु से रहना होगा बचकर तो पूरा साल रहेगा शानदार, जान लें उपाय

Quotes of Guru Tegh Bahadur: गुरु तेग बहादुर जी के शहादत दिवस पर अपनों को भेजें ये खास 7 भावपूर्ण संदेश

Mokshada Ekadashi 2025: कब है मोक्षदा एकादशी, 30 नवंबर या 01 दिसंबर, जानें सामग्री और पूजा विधि

Guru Tegh Bahadur: गुरु तेग बहादुर का 350वां शहीदी दिवस, जानें उनके 6 खास कार्य

Guru Tegh Bahadur Shahidi Diwas: गुरु तेग बहादुरजी का शहीदी दिवस आज

अगला लेख