Hanuman Chalisa

पर्वों का पर्व है महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि विशेष

Webdunia
- पंडित बृजेश कुमार राय
ND
शिवरात्रि मात्र एक हिन्दू त्योहार नहीं जिस दिन विविध पकवान पकाकर ग्रहण कर लिए जाए। यह न तो मात्र एक पर्व ही है जिस मौके पर किसी शिवलिंग अथवा शिवालय पर जाकर धूप-अगरबत्ती जलाकर इसकी इतिश्री कर दी जाय। न तो यह एक उत्सव ही है जिस दिन भगवान शिव की बारात के उपलक्ष्य में खोखली खुशी का इजहार कर दिया जाय। यह एक अति पावन महान उपहार है जो पारब्रह्म परमेश्वर के तीन रूपों में से एक रूप की पूर्ण उपासना के द्वारा वरदान के रूप में जीव मात्र को प्राप्त है।

यह पर् व परम पावन उपलब्धि है जो जीव मात्र को प्राप्त होकर उसके परम भाग्यशाली होने का संकेत देता है। यह परम सिद्धिदायक उस महान स्वरूप की उपासना का क्षण है जिसके बारे में संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने त्रिलोकपति मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के मुखारविन्द से कहलवाया है-

' शिवद्रोही मम दास कहावा। सो नर सपनेहु मोहि नहिं भावा।'

किन्तु इसकी उत्कट गुरुता एवं महत्ता को शिवसागर में और ज्यादा विषद रूप में देखा जा सकता है-
' धारयत्यखिलं दैवत्यं विष्णु विरंचि शक्तिसंयुतम्‌। जगदस्तित्वं यंत्रमंत्रं नमामि तंत्रात्मकं शिवम्‌।'

अर्थात् विविध शक्तियाँ, विष्णु एवं ब्रह्मा जिसके कारण देवी एवं देवता के रूप में विराजमान हैं, जिसके कारण जगत का अस्तित्व है, जो यंत्र हैं, मंत्र हैं। ऐसे तंत्र के रूप में विराजमान भगवान शिव को नमस्कार है।

ND
' त्रिपथगामिनी गंगा जिनकी जटा में शरण एवं विश्राम पाती हैं, त्रिलोक (आकाश, पाताल एवं मृत्यु ) वासियों के त्रिकाल (भूत, भविष्य एवं वर्तमान) को जिनके त्रिनेत्र त्रिगुणात्मक (सतोगुणी, रजोगुणी एवं तमोगुणी) बनाते हैं, जिनके तीनों नेत्रों से उत्सर्जित होने वाली ती न अग्नि (जठराग्नि, बड़वाग्नि एवं दावाग्नि) जीव मात्र का शरीर पोषण करती हैं, जिनके त्रैराशिक तत्वों से जगत को त्रिरूप (आकार, प्रकार एवं विकार) प्राप्त होता है, जिनका त्रिविग्रह (शेषशायी विष्णु, शेषनागधारी शंकर तथा शेषावतार रुद्र) त्रिलोक के त्रिताप (दैहिक, दैविक एवं भौतिक) को त्रिविध रूप (यंत्र, मंत्र एवं तंत्र) के द्वारा नष्ट करता है ऐसे त्रिवेद (ऋग्, साम तथा यजुः अथवा मतान्तर से भग-रेती, भगवान-लिंग तथा अर्द्धनारीश्वर) रूप भगवान शिव आज मधुमास पूर्वा प्रदोषपरा त्रयोदशी तिथि को प्रसन्न हो।'

दक्षिण भारत का प्रसिद्ध एवं परमादरणीय ग्रन्थ 'नटराजम्‌' अपने इन उपरोक्त वाक्यों में भगवान शिव का सम्पूर्ण आलोक प्रस्तुत कर देता है। उपरोक्त वाक्यों पर ध्यान देने से यह बात विल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि मधुमास अर्थात् चैत्र माह के पूर्व अर्थात् फाल्गुन मास की प्रदोषपरा अर्थात त्रयोदशी या शिवरात्रि को प्रपूजित भगवान शिव कुछ भी देना शेष नहीं रखते हैं। शिवरात्रि की प्रत्यक्ष महिमा से ओत-प्रोत एक परदेसी जो स्वयं अमेरिका में प्राच्य शोध संस्थान के विभागाध्यक्ष हैं अपनी स्मृति गाथा में लिखते हैं-

' Shivratri is not merely a Hindu festival but a natural boon best endowed by Supreme power to the world as mechanical technique implementation of which provides the practical or sublunary disenthralment - a word beyond the books' .

Budh vakri gochar 2025: बुध ग्रह ने चली वक्री चाल, जानिए क्या होगा 12 राशियों का राशिफल

Vivah Panchami upaay : विवाह पंचमी पर किए जाने वाले 5 मुख्य उपाय

Dreams and Destiny: सपने में मिलने वाले ये 5 अद्‍भुत संकेत, बदल देंगे आपकी किस्मत

Sun Transit 2025: सूर्य के वृश्‍चिक राशि में जाने से 5 राशियों की चमक जाएगी किस्मत

Margashirsha Month 2025: आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो मार्गशीर्ष माह में करें ये 6 उपाय

19 November Birthday: आपको 19 नवंबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 19 नवंबर, 2025: बुधवार का पंचांग और शुभ समय

Mokshada Ekadashi: मोक्षदा एकादशी: मोह का नाश, मुक्ति का मार्ग और गीता का ज्ञान

Guru Tegh Bahadur Shahidi Diwas: 2025 में गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस कब मनाया जाएगा?

Margashirsha Amavasya 2025: आपका जीवन बदल देंगे मार्गशीर्ष अमावस्या के ये 8 कार्य, हर समस्या का होगा समाधान