भगवान शंकर क्यों कहलाए नीलकंठ?

Webdunia
समुद्र मंथन के दौरान जब देवतागण एवं असुर पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं और देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गर्मी से जलने लगे।

FILE


देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने भयंकर विष को अपने शं ख में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोक कर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलंकठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

जिस समय भगवान शिव विषपान कर रहे थे, उस समय विष की कुछ बूंदें नीचे गिर गईं। जिन्हें बिच्छू, सांप आदि जीवों और कुछ वनस्पतियों ने ग्रहण कर लिया। इसी विष के कारण वे विषैले हो गए। विष का प्रभाव समाप्त होने पर सभी देवगण भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे।

वेबदुनिया पर पढ़ें

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

वास्तु के अनुसार कैसे घर की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदलें?

हनुमान जी के पान के बीड़े में क्या क्या होता है, क्यों करते हैं बीड़ा अर्पित?

मीन राशि में 5 ग्रहों के योग से 5 राशियों को होगा फायदा

महावीर जयंती 2025 शुभकामनाएं: अपने प्रियजनों को भेजें ये सुंदर और प्रेरणादायक विशेज

मंगल के राशि परिवर्तन से क्या होगा देश और दुनिया का हाल

सभी देखें

धर्म संसार

08 अप्रैल 2025 : आपका जन्मदिन

08 अप्रैल 2025, मंगलवार के शुभ मुहूर्त

मंगलवार को करें ये अचूक उपाय, बजरंगबली की कृपा से शादी से लेकर नौकरी और व्यापार में अड़चने होंगी दूर

श्री महावीर जी: भगवान महावीर के अतिशय क्षेत्र की आध्यात्मिक यात्रा

सत्य, अहिंसा और ज्ञान का उत्सव: 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती, जानें महत्व और कैसे मनाएं?