श्राद्ध कर्म के लिए पुत्र आवश्यक नहीं

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- हेमराज प्रजापति 'अकेला'
मान्यता है कि मरने के बाद मोक्ष पाने के लिए पुत्र द्वारा पिंडदान करना जरूरी है और हर बात का सार यही है कि पुत्र न हो तो नरक में जाना तय है।

श्राद्ध से मनुष्य स्वर्ग को जाता है। इतना ही नहीं, पुराणों में तो यह भी कहा गया है कि जिनका पिंडदान नहीं होता, वे युगों तक प्रेत योनि में रहकर निर्जन वन में दुःखपूर्वक भ्रमण करते हैं।

बिना भोगे कर्म का क्षय करोड़ों कल्प तक भी नहीं होता और बिना यम की यातना भोगे जीवों को मनुष्य का जन्म नहीं मिलता। इसलिए पुत्र को दस दिन तक पिंडदान करना चाहिए।

पुत्र द्वारा दिए हुए पिंडों से फिर उस जीव को देह मिलती है। बल्कि पुराणों के अनुसार बेटे को पुत्र ही इसलिए कहा गया, क्योंकि बेटा पुम्‌ नामक नरक से पिता का त्राण करता है। भले ही पुत्र जीते-जी माता-पिता के जीवन को नरक बना दे, पर फिर भी मरने के बाद नरक से बचने के लिए वे पुत्र उत्पन्ना कर खुशी-खुशी नारकीय जीवन बिताते हैं।

मतलब यह नहीं है कि बस एक पुत्र हो जाए तो फिर चाहे जीवन भर पाप-अन्याय करो, मौत के बाद पुत्र से पिंडदान करवा लो, बस मोक्ष मिल जाएगा। वहीं पुराणों में यह भी उल्लेख मिलता है कि यदि संतान सुसंतान है तभी कुल का उद्धार होता है, लेकिन कुसंतान कुल परंपरा को नष्ट करके नरक में ले जाने वाली होती है।

हमारी पौराणिक परंपरा में पुत्र प्राप्ति को बिलकुल भी जरूरी नहीं माना गया है। ब्रह्माजी के चार पुत्र थे- सनत, सनंदन, सनत्कुमार और सनातन। इनमें से किसी ने भी पुत्र उत्पन्ना नहीं किया, लेकिन उन्हें नरक नहीं भुगतना पड़ा। ये चारों ही बैकुंठ को प्राप्त हुए। नारद और भीष्म पितामह तो ब्रह्मचारी थे। उनके कोई संतान नहींथी। फिर भी उन्हें स्वर्ग में स्थान मिला। अगर मोक्ष पाने के लिए पुत्र होना जरूरी होता तो क्या ऐसा होता?

नरक तो ईश्वर का न्याय है और ईश्वर पाप-पुण्य के आधार पर न्याय करता है, न कि पुत्र-पुत्री के आधार पर। वाल्मीकि रामायण के अनुसार लोगों के अधिक पुत्र हों तो समझो कलयुग आ गया है। राजस्थानी लोकोक्ति में तो कहा जाता है कि 'घणी बरखा कण हाण, घणापूत कुल हाण' अर्थात अधिक बरसात से फसल नष्ट हो जाती है और पुत्र अधिक हो तो वंश नष्ट हो जाता है।

आखिर ऐसे पुत्रों का क्या लाभ, जो वंश का ही नाश कर डालें। पुत्र द्वारा पिंडदान से ही मोक्ष नहीं मिलता। दत्तक पुत्र या फिर पौत्र पिंडदान कर सकते हैं, ऐसा विधान भी है। लेकिन जब यह साबित हो चुका है कि पुत्र द्वारा पिंडदान करना मोक्ष या स्वर्ग प्राप्ति की गारंटी नहीं है, तो पुत्र की इतनी लालसा क्यों? जब दत्तक पुत्र या पौत्र को पिंडदान करने का अधिकार है तो क्यों न यह अधिकार पुत्री को दिया जाए।

पुत्री को भी अंतिम क्रियाकर्म में शामिल किया जाए ताकि उसके भी पुत्रों के बराबर हक हो जाएँ। मोक्ष मिले न मिले, पर जिंदगी स्वर्ग-सी खूबसूरत बन जाएगी आपकी भी और लड़कियों की भी।

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