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अष्टमी का श्राद्ध क्यों करते हैं, कैसे करते हैं, कब है, जानिए नियम

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, शुक्रवार, 16 सितम्बर 2022 (12:40 IST)
16 श्राद्ध चल रहे हैं। जिनका भी देहांत जिस भी तिथि को हुआ है उनका श्राद्ध उन तिथि में करता है, परंतु कुछ तिथियां महत्वपूर्ण होती है। अष्टमी का श्राद्ध कुछ लोग 17 सितंबर 202 और कुछ लोग 18 सितंबर को रखेंगे। लेकिन कब श्राद्ध रखना चाहिए यह तिथि अनुसार जाना जा सकता है। अष्टमी का श्राद्ध बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन का क्या है महत्व और क्या है इसके नियम जानते हैं संक्षिप्त में।
 
 
अष्‍टमी तिथि श्राद्ध कब है 2022 । Ashtami tithi shraddha kab hai
कृष्ण पक्ष सप्तमी- 16 सितंबर दोपहर 12:19 से 17 सितंबर दोपहर 02:14 तक रहेगी।
कृष्ण पक्ष अष्टमी- 17 सितंबर दोपहर 02:14 से 18 सितंबर दोपहर बाद 04:33 तक।
 
चूंकि 17 सितंबर शनिवार को अष्टमी तिथि आंशिक रुप से व्याप्त होगी जिसके कारण 17 को तिथि श्राद्ध नहीं बन रहा है। श्राद्ध काल मध्यान्ह काल में ही किया जाता है। 
 
अष्टमी के श्राद्ध का महत्व | Significance of Ashtami Shradh
 
1. श्राद्ध पक्ष की अष्‍टमी को कालाष्‍टमी और भैरव अष्टमी भी कहते हैं।
 
2. अष्टमी को गजलक्ष्मी का व्रत भी रखा जाता है जो कि दिवाली की लक्ष्मी पूजा से ज्यादा महत्वपूर्ण है। 
 
3. अष्टमी के श्राद्ध पर खरीदारी की जा सकती है।
अष्टमी श्राद्ध के नियम | Ashtami Shraddha ke Niyam
 
1. अष्टमी को जिनका देहांत हुआ है उनका श्राद्ध इस दिन करना चाहिए।
 
2. जो अष्टमी को श्राद्ध करता है वह सम्पूर्ण समृद्धियां प्राप्त करता है।
 
3. यदि निधन पूर्णिमा तिथि को हुई हो तो उनका श्राद्ध अष्टमी, द्वादशी या पितृमोक्ष अमावस्या को किया जा सकता है।
 
4. अष्टमी के श्राद्ध के दिन महिलाएं अपने परिवार और बच्चों के लिए व्रत रखती है।
 
5. अष्टमी के श्राद्ध के दिन विधिवत श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता।

अष्टमी का श्राद्ध कैसे करते हैं | How to do Ashtami Shradh
 
- कुश आसन पर पूर्वमुखी होकर बैठें। देव, ऋषि और पितरों के लिएद धूप-दीप जलाएं, फूल माला चढ़ाएं और सुपारी रखें।
 
- एक थाली में जल में तिल, कच्चा दूध, जौ, तुलसी मिलाकर रख लें। पास में ही खाली तरभाणा या थाली रखें।
 
- कुशे की अंगूठी बनाकर अनामिका अंगुली में पहनकर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर तर्पण का संकल्प लें।
 
- इसके बाद जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें। 
 
- अब मंत्र उच्चारण करते हुए पहली थाली से जल लेकर दूसरी में अंगुलियों से ऋषि एवं देवता और अंगूठे से पितरों को अर्पित करें।
 
- ध्यान रखें कि पूर्व की ओर देवता, उत्तर की ओर ऋषि और दक्षिण की ओर मुख करके पितरों को जल अर्पित करें।
 
- कुश के आसन पर बैठकर पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें।
 
- इसके बाद गाय, कुत्ता, कौवा और अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालकर अलग रखें।
 
- अंत में ब्राह्मण, दामाद या भांजे को भोजन कराएं और तब खुद भोजन करें।

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