जानिए पितृ पर्व पर कैसे करें तर्पण और कब करें श्राद्ध...

श्री रामानुज
काशी के विद्वान पंडितों के मुताबिक तर्पण योग्य ब्राह्मण के मार्गदर्शन में करना चाहिए। तालाब, नदी व अपने घर में व्यवस्था अनुसार जव, तिल, कुशा, पवित्री, वस्त्र आदि सामग्री द्वारा पितरों की शांति, ऋषियों एवं सूर्य को प्रसन्न करने के लिए तर्पण किया जाता है। 


 

 
इसमें ऋषि तर्पण, देव तर्पण एवं सूर्य अर्घ्य होता है। सबसे आखिर में वस्त्र के जल को निचोड़ने से सभी जीवों को शांति मिलती है। श्राद्घ कर्म पितरों की शांति, प्रसन्नता के निमित्त किए जाते हैं। तिथि के अनुसार किया जाना चाहिए श्राद्ध। जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि में श्राद्घ करना चाहिए। 
 
यदि कोई व्यक्ति संन्यासी का श्राद्ध करता है तो वह द्वादशी के दिन करना चाहिए। कुत्ता, सर्प आदि के काटने से हुई अकाल मृत्यु या ब्रह्मघाती व्यक्ति का श्राद्ध चौदस तिथि में करना चाहिए। यदि किसी को अपने पूर्वजों की मृत्यु-तिथि याद नहीं है तो ऐसे लोग अमावस्या पर श्राद्ध कर सकते हैं।
 

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