पितृ पक्ष : क्या पितर सचमुच अतृप्त होते हैं जो हम उनके लिए तर्पण करें?

अनिरुद्ध जोशी
पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। कर्मों के अनुसार किसी भी आत्मा को गति मिलती है। देह छोड़ गए लोगों में से बहुत से अतृप्त होते हैं। कहते हैं कि अतृप्त आत्मा को सद्गति नहीं मिलती है और वह भटकता रहता है इसलिए श्राद्ध कर्म करके उसके वंशज उसके लिए सद्गति का मार्ग खोलते हैं।
 
 
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अतृप्ति का कारण ( Shraddha Pitri Paksha )
 
1. पहला : व्यक्ति किसी भी उम्र या अवस्था में मरा हो उसकी इच्छाएं यदि बलवती है तो वह अपनी इच्छाओं को लेकर मृत्यु के बाद भी दुखी ही रहेगा और मुक्त नहीं हो पाएगा। यही अतृप्तता है। जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह अतृप्त होकर भटकता रहेगा। सभी को गीता का छठा व सातवां अध्याय पढ़ना चाहिए।
 
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2. दूसरा : अकाल का अर्थ होता है असमय मर जाना। पूर्ण उम्र जिए बगैर मर जाना। अर्थात जिन्होंने आत्महत्या की है या जो किसी बीमारी या दुर्घटना में मारा गया है। वेदों के अनुसार आत्मघाती मनुष्य मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार से परिपूर्ण, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को गमन कहते हैं और तब तक अतृत होकर भटकते हैं जब तक की उनके जीवन का चक्र पूर्ण नहीं हो जाता।
 
3. तीसरा : धर्म को नहीं जानना ही सबसे बड़ा अधर्म व अतृप्तता का कारण है। जिन्होंने उपनिषद और गीता का अध्ययन अच्छे से नहीं किया वे ज्ञान शून्य और बेहोशी में जीने वाले लोग अतृप्त होकर ही मरते हैं क्योंकि वे अपने मन से आत्मा, ईश्‍वर या ब्रह्मांड के संबंध में धारणाएं बना लेते हैं। ऐसे लोगों की भी कर्म गति तय करती है कि वे किस तरह का जन्म लेंगे। लेकिन इनमें जो अज्ञानी भक्त हैं वे बचे रहते हैं।
 
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4. चौथा : शास्त्र कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप क्या सोचते, क्या समझते, क्या बोलते और क्या सुनते हैं। फर्क इससे पड़ता है कि आप क्या करते, क्या मानते और क्या धारणा पालते हैं। क्योंकि यह चित्त का हिस्सा बन जाती है जो कि आपकी गति तय करती है। यदि आपने यह पक्का मान रखा है कि मरने के बाद व्यक्ति को चीरनिंद्रा में सोना है तो आपके साथ ऐसा ही होगा। हमारी चित्त की गति प्रारब्ध और वर्तमान के कर्मों पर आधारित होती है।
 
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5. पांचवां : हर कोई अपनी जिंदगी में अनजाने में अपराध या बुरे कर्म करता रहता है। लेकिन वे लोग सचमुच ही बुरे हैं जो जानबुझकर किसी की हत्या करते, बलात्कार करते, हर समय किसी न किसी का अहित करते रहते हैं या किसी भी निर्दोष मनुष्‍य या प्राणियों को सताते रहते हैं। चोर, डकैत, अपराधी, धूर्त, क्रोधी, नशेड़ी और कामी आदि लोग मरने के बाद बहुत ज्यादा दुख और संकट में रहते हैं। 

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