Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Sarvapitri amavasya 2023 : सर्वपितृ अमावस्या पर तर्पण और भोजन कैसे पहुंचता है पितरों तक?

हमें फॉलो करें Sarvapitri amavasya 2023 : सर्वपितृ अमावस्या पर तर्पण और भोजन कैसे पहुंचता है पितरों तक?
Shradha pitru paksha: 14 अक्टूबर 2023 शनिवार को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या रहेगी। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी तिथि ज्ञात नहीं है या जिनकी तिथि पर श्राद्ध नहीं कर पाए थे। इसके अलावा सभी पितरों का एक साथ इस दिन श्राद्ध किया जाता है, परंतु सवाल यह है कि हम जो तर्पण या अन्न पितरों को अर्पण करते हैं वह उन तक कैसे पहुंचता है? आपके द्वारा किए गए श्राद्ध से क्या आपके पितृ सचमुच तृप्त होते हैं और यदि होते हैं तो कैसे होते हैं? किस तरह पितरों तक पहुंच जाता है श्राद्ध का भोजन पितरों के पास? किया गया दान कैसे पहुंचता है पितरों तक?
 
इस तरह धरती पर आते हैं पितर:-
  • जो पितर यम, स्वर्ग या देव लोक में स्थिति है या जो धरती पर प्रेतयोनी में हैं वे किस तरह आते हैं।
  • कहते हैं कि सूर्य की सहस्र किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम 'अमा' है। 
  • उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से सूर्य त्रैलोक्य को प्रकाशमान करते हैं। 
  • उसी अमा में तिथि विशेष को वस्य अर्थात चन्द्र का भ्रमण होता है तब उक्त किरण के माध्यम से चन्द्रमा के उर्ध्वभाग से पितर धरती पर उतर आते हैं। तब उन्हें पंचाबलि कर्म, गो ग्रास, ब्राह्मण भोज, तर्पण, पिंडदान और धूप-दीप के माध्यम से तृप्त किया जाता है।
 
पितरों का क्या है भोजन?
  1. अन्न से भौतिक शरीर तृप्त होता है। अग्नि को दान किए गए अन्न से सूक्ष्म शरीर (आत्मा का शरीर) और मन तृप्त होता है।
  2. इसी अग्निहोत्र से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं।
  3. जल से जो उष्ण निकलती है उससे पितर तृप्त होते हैं। तर्पण में जल ही अर्पण किया जाता है। 
  4. जैसे पशुओं का भोजन तृण और मनुष्यों का भोजन अन्न कहलाता है, वैसे ही देवता और पितरों का भोजन अन्न का 'सार तत्व' है।
  5. सार तत्व अर्थात गंध, रस और उष्मा। देवता और पितर गंध तथा रस तत्व से तृप्त होते हैं। 
  6. दोनों के लिए अलग अलग तरह के गंध और रस तत्वों का निर्माण किया जाता है। 
  7. विशेष वैदिक मंत्रों द्वारा विशेष प्रकार की गंध और रस तत्व ही पितरों तक पहुंच जाता है।
 
इस तरह ग्रहण करते हैं भोजन:-
  • पितरों के अन्न को 'सोम' कहते हैं जिसका एक नाम रेतस भी है। यह चावल, जौ आदि से मिलकर बनता है। 
  • एक जलते हुए कंडे पर गुड़ और घी डालकर गंध निर्मित की जाती है। उसी पर विशेष अन्न अर्पित किया जाते हैं। 
  • तिल, अक्षत, कुश और जल के साथ तर्पण और पिंडदान किया जाता है। 
  • अंगुलियों से देवता और अंगुठे से पितरों को अन्न जल अर्पण किया जाता है।
  • अर्पण किए गए अन्न और जल के सार तत्व को पितृ ग्रहण करते हैं।
webdunia
कैसे पहुंचता है पितरों तक भोजन:- 
  1. पुराणों अनुसार पितरों और देवताओं की योनि ही ऐसी होती है कि वे दूर की कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा-अन्न भी ग्रहण कर लेते हैं और दूर की स्तुति से भी संतुष्ट होते हैं।
  2. मृत्युलोक में किया हुआ श्राद्ध उन्हीं मानव पितरों को तृप्त करता है, जो पितृलोक की यात्रा पर हैं। वे तृप्त होकर श्राद्धकर्ता के पूर्वजों को जहां कहीं भी उनकी स्थिति हो, जाकर तृप्त करते हैं। 
  3. 'नाम गोत्र के आश्रय से विश्वदेव एवं अग्निमुख हवन किए गए पदार्थ आदि दिव्य पितर ग्रास को पितरों को प्राप्त कराते हैं। 
  4. यदि पूर्वज देव योनि को प्राप्त हो गए हों तो अर्पित किया गया अन्न-जल वहां अमृत कण के रूप में प्राप्त होगा क्योंकि देवता केवल अमृत पान करते हैं।
  5. पूर्वज मनुष्य योनि में गए हों तो उन्हें अन्न के रूप में तथा पशु योनि में घास-तृण के रूप में पदार्थ की प्राप्ति होगी। 
  6. सर्प आदि योनियों में वायु रूप में, यक्ष योनियों में जल आदि पेय पदार्थों के रूप में उन्हें श्राद्ध पर्व पर अर्पित पदार्थों का तत्व प्राप्त होगा।
  7. श्राद्ध पर अर्पण किए गए भोजन एवं तर्पण का जल उन्हें उसी रूप में प्राप्त होगा जिस योनि में जो उनके लिए तृप्ति कर वस्तु पदार्थ परमात्मा ने बनाए हैं। साथ ही वेद मंत्रों की इतनी शक्ति होती है कि जिस प्रकार गायों के झुंड में अपनी माता को बछड़ा खोज लेता है उसी प्रकार वेद मंत्रों की शक्ति के प्रभाव से श्रद्धा से अर्पण की गई वस्तु या पदार्थ पितरों को प्राप्त हो जाते हैं।
जय श्री पितृदेवाय नम:।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नवरात्रि की चतुर्थी की देवी मां कूष्मांडा की पौराणिक कथा