Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पूर्वज प्रसन्न तो वंशज संपन्न, पितृ नाराज तो ....

हमें फॉलो करें पूर्वज प्रसन्न तो वंशज संपन्न, पितृ नाराज तो ....
webdunia

आचार्य राजेश कुमार

प्रति वर्ष भाद्रपद, शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष कहते हैं।  शास्त्रों में मनुष्य के लिए तीन ऋण बताए गए हैं।
 
  1-देव-ऋण
  
  2-ऋषि ऋण और 
  
  3,- पितृ ऋण- 
 
श्राद्ध द्वारा पितृ ऋण उतारना आवश्यक माना जाता है क्योंकि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य और सुख-सौभाग्यादि की वृद्धि के अनेक यत्न या प्रयास किए उनके ऋण से मुक्त न होने पर मनुष्य जन्म ग्रहण करना निरर्थक माना जाता है। श्राद्ध से तात्पर्य हमारे मृत पूर्वजों व संबंधियों के प्रति श्रद्धा व सम्मान प्रकट करना है। 
 
दिवंगत व्यक्तियों की मृत्युतिथियों के अनुसार इस पक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन तिथियों में हमारे पितृगण इस पृथ्वी पर अपने अपने परिवार के बीच आते हैं। 
 
  श्राद्ध करने से हमारे पितृगण प्रसन्न होते हैं और हमारा सौभाग्य बढ़ता है। 
 
श्राद्ध के दो भेद माने गए हैं- 
 
1. पार्वण और 2. एकोद्दिष्ट
 
पार्वण श्राद्ध अपराह्न व्यापिनी में (*सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बाहरवें मुहूर्त तक का काल अपराह्न काल होता है।) मृत्यु तिथि के दिन किया जाता है, जबकि एकोद्दिष्ट श्राद्ध मध्याह्न व्यापिनी में (*सूर्योदय के बाद सातवें मुहूर्त से लेकर नवें मुहूर्त तक का काल मध्याह्न काल कहलाता है।) मृत्यु तिथि में किया जाता है। 
 
पार्वण श्राद्ध में पिता, दादा, परदादा, नाना, परनाना तथा इनकी पत्नियों का श्राद्ध किया जाता है। गुरु, ससुर, चाचा, मामा, भाई, बहनोई, भतीजा, शिष्य, फूफा, पुत्र, मित्र व इन सभी की पत्नियों श्राद्ध एकोद्दिष्ट श्राद्ध में किया जाता है। 
 
 
पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथियां-
 
5 सितंबर (मंगलवार) - पूर्णिमा श्राद्ध
 
6 सितंबर (बुधवार) प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध
 
7 सितंबर (गुरुवार) द्वितीया तिथि का श्राद्ध
 
8 सितंबर (शुक्रवार) तृतीया तिथि का श्राद्ध
 
9 सितंबर (शनिवार) चतुर्थी तिथि का श्राद्ध
 
10 सितंबर (रविवार) पंचमी तिथि का श्राद्ध
 
11 सितंबर (सोमवार) छठ तिथि का श्राद्ध
 
12 सितंबर (मंगलवार) सप्तमी तिथि का श्राद्ध
 
13 सितंबर (बुधवार) अष्टमी तिथि का श्राद्ध
 
14 सितंबर (गुरुवार) नवमी तिथि का श्राद्ध
 
15 सितंबर (शुक्रवार) दशमी तिथि का श्राद्ध
 
16 सितंबर (शनिवार) एकादशी तिथि का श्राद्ध
 
17 सितंबर (रविवार) बारस, तेरस तिथि का श्राद्ध 
 
18 सितंबर (सोमवार) चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध
 
19 सितंबर (मंगलवार) अमावस्या व सर्व पितृ श्राद्ध 
 
जिस संबंधी की मृत्यु जिस चंद्र तिथि को हुई हो उसका श्राद्ध आश्विन कृष्णपक्ष की उसी तिथि के दुबारा आने पर किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी तिथि को किया जाता है। विमान दुर्घटना, सर्प के काटने, जहर, शस्त्र प्रहार आदि से मृत्यु को प्राप्त हुए संबंधियों का श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए। जिन संबंधियों की मृत्यु तिथि पता न हो उनका श्राद्ध आश्विन अमावस्या को किया जाता है। जिन लोगों की मृत्यु तिथि पूर्णिमा हो उनका श्राद्ध भाद्रपद पूर्णिमा अथवा आश्विन अमावस्या को किया जाता है। नाना, नानी का श्राद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को किया जाता है। 


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

श्राद्धपक्ष 16 दिन ही क्यों : महत्वपूर्ण जानकारी