पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग

- रजनीश बाजपेई

Webdunia
ND

पौराणिक मान्यताएँ : पितृपक्ष वस्तुतः आत्मा के परमात्मा में एकीकरण तथा जीव और ब्रह्म के एकीकृत स्वरूप का संगम पर्व है। मान्यता है कि दिवंगत आत्मा की शांति तथा वैतरणी पार कराने के लिए पिंडदान करना आवश्यक है। इसी मान्यता के तहत लाखों लोग पितृपक्ष के मौके पर अपने पूर्वजों के पिंडदान के लिए गया आते हैं। पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है।

इस कर्म के लिए गया वह स्थान है, जहाँ पिंडदान करके लोग अपने पितरों की आत्मा को शांति दे सकते हैं। भगवान राम और सीताजी ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।

गया में ही क्यों? : श्राद्ध के संदर्भ में गया में ही पिंडदान के मुद्दे पर पंडों का कहना है कि फल्गू नदी में स्नान किए बिना कोई कैसे पिंडदान कर सकता है? इस विषय में हिन्दू शास्त्रों में कई कथाएँ हैं, जिनमें से एक है कि भस्मासुर के वंशज गयासुर नामक राक्षस ने कोलाहल पर्वत पर अँगूठे के बल पर एक हजार वर्षों तक तप किया। इससे इन्द्र का सिंहासन डोलने लगा। वे चिंतित हुए और ब्रह्माजी से गुहार लगाई।

इसके बाद गयासुर ने ब्रह्माजी से वरदान माँगा कि उसका शरीर देवताओं से भी पवित्र हो जाए तथा लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएँ। ब्रह्माजी ने 'तथास्तु' कह दिया। वरदान का असर हुआ। लोग गयासुर के दर्शन कर पाप मुक्त होने लगे।

स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी तथा धरती पर अनाचार बढ़ने लगा। लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन मात्र से पवित्र होने लगे। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए देवता ब्रह्माजी के पास गए। उन्होंने युक्ति भिड़ाई और गयासुर के पास जाकर बोले, 'मुझे यज्ञ के लिए पवित्र जगह चाहिए।

तुम्हारा शरीर देवताओं से भी पवित्र है। अतः तुम लेट जाओ, ताकि यह स्थान पवित्र हो जाए।' गयासुर लेट गया। उसका शरीर पाँच कोस में फैल गया। यही पाँच कोस की जगह आगे चलकर गया बनी, पर गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की चाह गई नहीं और उसने वरदान माँगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। जो भी यहाँ पर किसी के तर्पण की इच्छा से पिंडदान करे, वह तर जाए।

हालाँकि इन मिथकों की सचाई का वैज्ञानिक प्रमाण लाना संभव नहीं है, पर आत्मा-परमात्मा के नियमों को समझने के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देना ही तो इस भारत भूमि की विशेषता है! यही इसकी सुगंध भी है और यही इसकी संस्कृति। यही इसका अंदाज है। अब इसे श्रद्धा कहें, अंधविश्वास कहें या फिर रहस्य। यह तो व्यक्ति की पृष्ठभूमि और प्रज्ञा पर निर्भर करता है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि यही सब बातें भारत को अभी भी भारत बनाए हुए हैं।

क्या है पिंडदान : ' पिंड' शब्द का अर्थ होता है 'किसी वस्तु का गोलाकार रूप'। प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड कहा जाता है। मृतक कर्म के संदर्भ में ये दोनों ही अर्थ संगत होते हैं, अर्थात इसमें मृतक के निमित्त अर्पित किए जाने वाले पदार्थ, जिसमें जौ या चावल के आटे को गूँथकर अथवा पके हुए चावलों को मसलकर तैयार किया गया गोलाकृतिक 'पिंड' होता है।

' दान' का अर्थ है मृतक के पाथेयार्थ एवं भस्मीभूत शरीरांगों का पुनर्निर्माण।बिहार सरकार ने इस बार पितृपक्ष मेले पर ऑनलाइन श्राद्ध की व्यवस्था की थी, ताकि देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु जो विभिन्न कारणों से गया तक नहीं आ पाते, वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए श्राद्ध कर सकें, लेकिन पंडों और विभिन्न धार्मिक संगठनों के विरोध के चलते सरकार को यह फैसला वापस लेना पड़ा।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

महाशिवरात्रि विशेष : शिव पूजा विधि, जानें 16 चरणों में

महाकुम्भ में अघोरी बाबा को मिली रशियन, अनोखी प्रेम कहानी को देख क्या कह रहे हैं लोग

प्रयागराज कुंभ मेले में स्नान करने जा रहे हैं तो इन 5 जगहों के दर्शन अवश्य करें

Shukra Gochar 2025: शुक्र का मीन राशि में 123 दिन के लिए गोचर, जानिए 12 राशियों का राशिफल

Mahashivratri 2025 Date: महाशिवरात्रि कब है, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

सभी देखें

धर्म संसार

Magh purnima 2025: पितृदोष से मुक्ति का सबसे बड़ा दिन माघ पूर्णिमा, मात्र 2 उपाय करें

शनि का मीन राशि में गोचर: क्या होगा देश दुनिया एवं 12 राशियों पर प्रभाव

Ravidas jayanti 2025: गुरु रविदास जयन्ती कब है, जानिए उनके बारे में 5 रोचक बातें

भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर जानें महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त और मंत्र

केदारनाथ से रामेश्वरम तक एक सरल रेखा में हैं ये सभी शिव मंदिर, चमत्कार या विज्ञान क्या है रहस्य