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पितृ पक्ष में रखें शुद्ध आचरण

विधि-विधान से करें पितरों का तर्पण

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भारतीय संस्कृति में आश्विन कृष्ण पक्ष पितरों को समर्पित है। यह कहा गया है कि श्राद्ध से प्रसन्न पितरों के आशीर्वाद से सभी प्रकार के सांसारिक भोग और सुखों की प्राप्ति होती है। आत्मा और पितरों के मुक्ति मार्ग को श्राद्ध कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि जो श्रद्धापूर्वक किया जाए, वही श्राद्ध है।

गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान अमावस्या के दिन पितृगण वायु के रूप में घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। वे अपने स्वजनों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं और उससे तृप्त होना चाहते हैं, लेकिन सूर्यास्त के बाद यदि वे निराश लौटते हैं तो श्राप देकर जाते हैं। श्रद्धापूर्वक श्राद्ध किए जाने से पितर वर्ष भर तृप्त रहते हैं और उनकी प्रसन्नता से वंशजों को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, सुख एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो श्राद्ध नहीं कर पाते, उनके कारण पितरों को कष्ट उठाने पड़ते हैं।

पितृगण भोजन नहीं बल्कि श्रद्धा के भूखे होते हैं। वे इतने दयालु होते हैं कि यदि श्राद्ध करने के लिए पास में कुछ न भी हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुख करके आँसू बहा देने भर से ही तृप्त हो जाते हैं। विधान है कि सोलह दिन के पितृ पक्ष में व्यक्ति को पूर्ण ब्रह्मचर्य, शुद्ध आचरण और पवित्र विचार रखना चाहिए।

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पितरों का कर्ज उतारने के लिए श्राद्ध करने वाले श्रद्धालुओं को विधि-विधान से पितरों को तर्पण करना चाहिए। वैसे तो पितरों का तर्पण प्रत्येक माह की पूर्णिमा या अमावस्या को किया सकता है। लेकिन इसका सबसे अधिक महत्व अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में रहता है।

पितृ पक्ष के समय सूर्य पृथ्वी के बहुत ही निकट रहता है, जिससे पितरों की कृपा आसानी से तर्पण करने वाले व्यक्ति को सहज ही मोक्ष के द्वार तक पहुँचा देती है।

इन दिनों किए गए तर्पण से ब्रह्मा से लेकर तिनका तक तृप्त हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितरों का तर्पण करने से भगवान ब्रह्मा से लेकर तिनका तक संतुष्ट हो जाता है।

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