महाकालेश्वर की सवारी का यह है इतिहास

Webdunia
*श्रीमती किरण बाला जोशी 
 
उज्जैन एक तीर्थ नगरी है। यहां पर्व, तीज, त्योहार, व्रत सभी आयोजन बड़ी आस्था, परंपरा और विधिपूर्वक मनाए जाते हैं। श्रावण मास में तीज-त्योहार की बहार आ जाती है। श्रावण सोमवार सवारी, नागपंचमी, रक्षाबंधन के  अवसरों पर इस धार्मिक नगरी में गांव-गांव से आस्था का सैलाब उमड़ता है। इस नगरी में सभी धर्म-संप्रदाय के लोग सामाजिक समरसता और सौहार्द्र के साथ रहते हैं। 
 
12 ज्योतिर्लिंग में भगवान महाकालेश्वर का महत्व तिल भर ज्यादा है। वे इस नगरी के राजाधिराज महाराज माने  गए हैं। यहां की शाही सवारी पूरी दुनिया में सुप्रसिद्ध है। इस शहर में जो भी कलेक्टर बन कर आते हैं उनके लिए बड़ी चुनौतियां सामने खड़ी होती हैं। उनकी महती जिम्मेदारी होती है कि जन-भावनाओं को ध्यान में रखते हुए  शहर के विकास कार्यों को गति दें और सुरक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाएं। भगवान महाकाल की शरण में  आए बिना इस नगरी का पत्ता भी नहीं हिल सकता यह बात यहां पदस्थ हर कलेक्टर जानते हैं। हिम्मत और साहस के साथ शहर को संभालते हुए धार्मिक आस्था को भी बनाए रखना बड़ी जटिल चुनौती होती है। 

ALSO READ: पौराणिक और पवित्र कथा भगवान महाकालेश्वर की
 
पिछले दिनों जब वरिष्ठ अधिकारी एमएन बुच नहीं रहे तो स्वाभाविक रूप से हर उस शख्स को उनका दबंग व्यक्तित्व याद आया जिन्होंने उन्हें उज्जैन में कलेक्टर के रूप में काम करते देखा था। लेकिन बहुत कम लोग  जानते हैं कि स्व. श्री बुच के खाते में एक अनूठा मील का पत्थर दर्ज है। दरअसल आज जो राजा महाकालेश्वर की सवारी का भव्य स्वरूप है उसका संपूर्ण श्रेय श्री बुच साहब को जाता है। यह बात बहुत कम लोगों को पता है कि शाही सवारी की यह यशस्वी परंपरा का इतिहास क्या है और कब से यह परंपरागत आकर्षक रूप में निकाली जाने लगी है। 

ALSO READ: श्रावण सोमवार और महाकालेश्वर की सवारी
स्वयं बुच साहब ने अपने करीबी मित्रों के बीच चर्चा के दौरान बड़े ही विनम्र भाव से बताया था कि कैसे यह सवारी इस स्वरूप तक पहुंची। उन्होंने बताया था कि पहले श्रावण मास के आरंभ में सवारी नहीं निकलती थी, सिर्फ सिंधिया वंशजों के सौजन्य से महाराष्ट्रीयन पंचाग के अनुसार दो या तीन सवारी ही निकलती थी। विशेषकर अमावस्या के बाद ही यह निकलती थी। 
 
एक बार उज्जयिनी के प्रकांड ज्योतिषाचार्य पद्मभूषण स्व.. पं. सूर्यनारायण व्यास के निवास पर कुछ विद्वजन के साथ कलेक्टर बुच भी बैठे थे। उनमें महाकाल में वर्तमान पुजारी सुरेन्द्र पुजारी के पिता भी शामिल थे। आपसी विमर्श में परस्पर सहमति से तय हुआ कि क्यों न इस बार श्रावण के आरंभ से ही सवारी निकाली जाए और समस्त जिम्मेदारी सहर्ष उठाई कलेक्टर बुच ने। सवारी निकाली गई और उस समय उस प्रथम सवारी का पूजन सम्मान करने वालों में तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह, राजमाता सिेंधिया व शहर के गणमान्य नागरिक प्रमु्ख थे। सभी पैदल सवारी में शामिल हुए और शहर की जनता ने रोमांचित होकर घर-घर से पुष्प वर्षा की। इस तरह एक खूबसूरत परंपरा का आगाज हुआ। 

ALSO READ: शिव को प्रसन्न करना है तो पढ़ें स्कंद-पुराण की महाकाल कथा
 
सवारी का पूजन-स्वागत-अभिनंदन शहर के बीचोंबीच स्थित गोपाल मंदिर में सिंधिया परिवार की और से किया गया। यह विनम्र तेजस्वी परंपरा सिंधिया परिवार की तरफ से आज भी जारी है। पहले महाराज स्वयं शामिल होते थे। बाद में राजमाता नियमित रूप से आती रहीं। आज भी उनका कोई ना कोई प्रतिनिधित्व सम्मिलित रहता है। महाकालेश्वर मंदिर में एक अखंड दीप भी आज भी उन्हीं के सौजन्य से प्रज्ज्वलित है। 
 
श्री बुच ने अपने यशस्वी कार्यकाल में कई साहसिक और नवोन्मेषी निर्णय लिए। महाविद्यालयों में होने वाले चुनाव हो या छात्रों की हुड़दंगबाजी, हड़ताल हो या नारेबाजी कलेक्टर बुच बड़ी ही दबंगता से शहर को नियंत्रित रखते थे।  
 
उनके बारे में यह भी प्रसिद्ध है कि उनसे बचने के लिए एक बड़े सरदार छात्र नेता ने अपने केश कटवा लिए थे और एक छात्र नेता को तो उन्होंने ट्रेन की जंजीर खींच कर उतारा था। खैर, उनके दबंग और कुशल प्रशासन के ऐसे कई किस्से हैं। फिलहाल तो जिन्हें पता है वे उज्जैनवासी उनके शाही सवारी के ऐतिहासिक निर्णय के लिए उनके सदैव ऋणी हैं और रहेंगे। बुच साहब कहते थे कि किसी शहर कलेक्टर बनना बड़ी बात है लेकिन किसी धार्मिक नगरी का कलेक्टर बनना सौभाग्य की बात है। इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए ईश्वरीय शक्ति जरूरी है।  
 
महाकालेश्वर की विशेष शाही सवारी के पूर्व उनका स्मरण हो जाना स्वाभाविक है। 

 
सावन सोमवार की पवित्र और पौराणिक कथा (देखें वीडियो) 
 
 
 
 

 
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

क्या होता है मलमास, जानें कब तक रहेगा खरमास

दत्तात्रेय जयंती कब है, क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त?

बांग्लादेश में कितने हैं शक्तिपीठ और हिंदुओं के खास मंदिर एवं तीर्थ?

Year Ender 2024: वर्ष 2024 में चर्चा में रहे हिंदुओं के ये खास मंदिर

साल 2025 में कब-कब पड़ेगा प्रदोष, जानें पूरे साल की लिस्ट

सभी देखें

धर्म संसार

Weekly Horoscope 16 To 22 December 2024: नया सप्ताह कैसा रहेगा 12 राशियों के लिए, पढ़ें साप्ताहिक राशिफल

Aaj Ka Rashifal: 15 दिसंबर, रविवार का दिन कैसा बीतेगा, पढ़ें 12 राशियों का सटीक राशिफल

महाकुंभ में साधु-संतों ने निकाली पेशवाई, विदेशी और किन्नर अखाड़े बने आकर्षण का केंद्र

15 दिसंबर 2024 : आपका जन्मदिन

15 दिसंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

अगला लेख