चमत्कारिक है ये शिवलिंग, महमूद गजनवी नहीं तोड़ पाया तो गोद दिया अरबी लिपि में ये

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गोरखपुर गोरखपुर से 25 किमी दूर खजनी कस्‍बे के पास के गांव सरया तिवारी में स्थित झारखंडी नीलकंठ महादेव के शिवलिंग की अजब कहानी सुनकर आप भी आश्चर्य करेंगे। इस शिवलिंग को इस्लामिक आक्रांता महमूद गजनवी ने तोड़ने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह हार गया।
 
 
लुटेरा और आक्रांत गजनवी:
महमूद गजनवी यमनी वंश का तुर्क सरदार गजनी के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था। महमूद गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करना शुरू किए। उसने भारत पर 1001 से 1026 ई. के बीच 17 बार आक्रमण किए। हर बार के आक्रमण में उसने यहां के हिन्दू, बौद्ध और जैन मंदिरों को ध्वस्त कर उनको लुटा था।
 
 
उसने मुल्तान, लाहौर, नगरकोट और थानेश्वर तक के विशाल भू-भाग में खूब मार-काट की तथा बौद्ध और हिन्दुओं को जबर्दस्ती इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया। उसको आदेश था कि हिन्दुओं को सभी प्रमुख धर्मस्थलों को ध्वस्त करना है और जहां भी सोना मिले, उसे लाना है। गजनवी ने ही सोमनाथ के मंदिर को ध्वस्त किया था। गजनवी जहां से भी गुजरा और उसे पता चलता कि अमुक जगह या मंदिर में धन, स्वर्ण आदि है तो उसको लूटता भी और तोड़ता भी था। जब वह उत्तरप्रदेश में दाखिल हुआ तो यहां के मंदिरों को देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं।
 
 
लीलाधर कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में बने भव्य मंदिर को देखकर लुटेरा महमूद गजनवी भी आश्चर्यचकित रह गया था। उसके मीर मुंशी अल उत्वी ने अपनी पुस्तक तारीखे यामिनी में लिखा है कि गजनवी ने मंदिर की भव्यता देखकर कहा था कि इस मंदिर के बारे में शब्दों या चित्रों से बखान करना नामुमकिन है। उसका अनुमान था कि वैसा भव्य मंदिर बनाने में 10 करोड़ दीनार खर्च करने होंगे और इसमें 200 साल लगेंगे।
 
 
गजनवी ने किया तोड़ने का प्रयास :
मंदिर तोड़ने और लूटने के इस क्रम में उसे कई जगहों पर चमत्कार का भी सामना करना पड़ा। ऐसी ही एक जगह थी सरया तिवारी। गोरखपुर से 25 किमी दूर खजनी कस्‍बे के पास के गांव सरया तिवारी में स्थित झारखंडी महादेव के शिवलिंग पर जब उसकी नजर पड़ी और उसे पता चला कि यह बहुत ही प्राचीन है, तो उसने मंदिर को ध्वस्त कर शिवलिंग को भी तोड़ने का प्रयास किया।
 
 
कहते हैं कि शिवलिंग पर जहां भी कुदाल आदि चलाई गई, तो वहां से खून की धार फूट पड़ी। फिर उसने उस शिवलिंग को भूमि पर से उखाड़ने का प्रयास किया लेकिन वह शिवलिंग भूमि में अंदर तक न मालूम कहां तक था। वह उस प्रयास में भी असफल हो गया। तब उसने उस शिवलिंग पर अरबी में कलमा लिखवाया दिया ताकि हिन्दू इस शिवलिंग की पूजा करना छोड़ दें। लेकिन वर्तमान में इस शिवलिंग की हिन्दू सहित मुस्लिम भी पूजा करते हैं, क्योंकि इस पर कलमा लिखा हुआ है।
 
 
मंदिर की खासियत :
स्‍थानीय लोगों के अनुसार इस पर अरबी या उर्दू में 'लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह' लिखा हुआ है। वर्तमान में यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बना हुआ है। यहां के स्थानीय मुस्लिमों के लिए अब यह शिवलिंग पवित्र है। रमजान में मुस्लिम भाई भी यहां पर आकर अल्लाह की इबादत करते हैं।
 
 
इस मंदिर के शिवलिंग को नीलकंठ महादेव कहते हैं। इसका एक नाम झारखंडी शिवलिंग भी है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह शिवलिंग हजारों वर्षों पुराना है और यह स्वयंभू है। स्वयंभू अर्थात इसे किसी ने स्थापित नहीं किया है और यह स्वयं ही प्रकट हुआ है। यहां दूर-दूर से लोग मन्नत मांगने आते हैं। इस मंदिर की एक खासियत यह है कि यहां मंदिर की छत नहीं है। कई बार छत बनाने का प्रयास किया गया लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया।
 
 
पवित्र पोखर
यहां एक पवित्र जलाशय भी है जिसे 'पोखर' कहा जाता है। मान्‍यता है कि इस मंदिर के बगल में स्थित पोखरे के जल को छूने से एक कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा ठीक हो गए थे। तभी से अपने चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिए लोग यहां पर 5 मंगलवार और रविवार को स्नान करते हैं।

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