बहुत कम लोग जानते हैं कि जब सवारी मंदिर में आ जाती है उसके बाद राजा रूप धारण किए महाकालेश्वर भगवान कहां जाते हैं।
दरअसल मंदिर वापिस आने के बाद यहां एक बहुत ही खूबसूरत परंपरा निभाई जाती है। भगवान महाकाल अपना व्रत खोलते हैं। उन्हें सुस्वादु व्यंजन से बनी पारंपरिक मालवा थाली परोसी जाती है।
महाकालेश्वर देव को यह भोग लगाने के बाद उनका यह विशेष प्रसाद उनकी पालकी उठाने वाले कहारों को ससम्मान परोस कर खिलाया जाता है।
फिर कलेक्टर, कमिश्नर और शहर के गणमान्य नागरिक तथा वरिष्ठ पुजारियों की उपस्थिति में महाकाल बाबा की जलती मशालों से आरती की जाती है।
क्षण भर के लिए रेशमी पर्दा बंद होता है और भगवान महाकाल अपने विशेष कक्ष में गोपनीय रूप से सम्मान के साथ पंहुचा दिए जाते हैं।
देखने वाले स्तब्ध रह जाते हैं कि अभी तो पालकी में भगवान थे अब कहां गायब हो गए लेकिन यह एक विशेष प्रकार की पूजा होती है जिसे देखने की अनुमति हर किसी को नहीं होती।
आजकल कैमरे के माध्यम से जन जन तक इस पूजा को पंहुचाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन भगवान जिस कक्ष में विश्राम करते हैं वह देखने की अनुमति किसी को नहीं है।