श्रावण में जलाभिषेक करते समय रखें ये 10 सावधानियां

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श्रावण मास में शिवालयों में शिवलिंग का रुद्राभिषेक किया जाता है। बहुत से लोग रुद्राभिषेक तो छोड़िये जलाभिषेक के समय भी नियमों का पालन नहीं करते हैं। विधिवत रूप से किए गए रुद्राभिषेक से ही भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं तो आओ जानते हैं कि शिवालय में जाते समय और रुद्राभिषेक करते समय कौन-कौनसी 10 सावधानियां रखना चाहिए।
 
 
1. भगवान शिव का रुद्राभिषेक या जलाभिषेक करते समय कभी भी तुलसी पत्र नहीं चढ़ाया जाता हैं। इसी तरह ऐसी कई सामग्री है जो उन पर नहीं चढ़ाई जाती है इसमें शैव परंपरा का पालन किया जाता है। विष्णु को चढ़ने वाली कई सामग्रियां निषेध हैं।
 
2. जलाभिषेक सिर्फ शिवलिंग का किया जाता है लेकिन कई लोग वहां पर शिवलिंग के साथ-साथ गणेश, कार्तिक, गौरी आदि की मूर्तियों का भी जलाभिषेक कर देते हैं जो कि अ‍नुचित है। सब मूर्तियों को सुबह स्नान कराने का अधिकार वहां नियुक्त पुजारी को ही है।
 
3. मंदिर में कभी भी पूजा या अर्चना करते वक्त उनका स्पर्श नहीं किया जाता है क्योंकि यह स्पर्श आपके लिए निषिद्ध है।
 
4. शिवजी का जलाभिषेक या रुद्राभिषेक उचित मंत्रोच्चार के साथ ही किया जाता है। आप केवल शिव का अभिषेक करें, वो भी प्रति प्रहर में विप्रदेव के मंत्रोच्चारण के साथ हो तो उत्तम है।
 
5. भगवान शिव पर चढ़ाई गई सामग्री, द्रव्य, वस्त्र आदि पर सिर्फ पूजा अनुष्ठान करवाने वाले विप्र का अधिकार होता है। अर्थात यह कि जो भी पंडित रुद्राभिषेक या अन्य पूजा अनुष्ठान करवा रहा है उस पर उसी का अधिकार होता है क्योंकि आपने तो उक्त सामग्री शिवजी को अर्पित कर दी है। अब उस पर आपका अधिकार नहीं रहा। कई लोग छोटे शिवालयों या घरों में जब रुद्राभिषेक करवाते हैं तो शिवजी को अर्पित की गई धोती दुपट्टा या अन्य सामग्री और माता पार्वती को अर्पित की गई साड़ी या श्रृंगार स्वयं ही रख लेते हैं।
 
6. शिवजी की पूर्ण परिक्रमा कभी नहीं करते हैं क्योंकि शिवजी पर जो जल चढ़ाया जाता है उसके बाहर निकलने की जो व्यवस्था है उसे गंगा माना जाता है और माता गंगा को कभी लांघा नहीं जाता है।
 
7. शिव के शिवालय में जाने से पूर्व आचमन आदि से शुद्धि करके ही जाया जाता है अन्यथा अ‍शुद्धि का पातक लगता है। मंदिर में बगैर आचमन क्रिया के नहीं जाना चाहिए। पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। कई लोग मोजे पहनकर भी चले जाते हैं। उच्छिष्ट या अपवित्र अवस्था में भगवान की वन्दना करना वर्जित है।
 
8. मंदिर में किसी भी प्रकार का वार्तालाप वर्जित माना गया है। मंदिर में कभी भी मूर्ति के ठीक सामने खड़े नहीं होते। भगवान के सामने जाकर प्रणाम न करना या एक हाथ से प्रणाम करना वर्जित है।
 
9. मंदिर में संध्यावंदन के समय जाते हैं। 12 से 4 के बीच कभी मंदिर नहीं जाते। भजन-कीर्तन आदि के दौरान किसी भी भगवान का वेश बनाकर खुद की पूजा करवाना वर्जित।
 
10. भगवान के मंदिर में खड़ाऊं या सवारी पर चढ़कर जाना, भगवान के सामने ही एक स्थान पर खड़े-खड़े प्रदक्षिणा करना, आरती के समय उठकर चले जाना, प्रसाद ग्रहण न करना, मंदिर से बाहर निकलते वक्त भगवान को पीठ दिखाकर बाहर निकलना, मंदिर में रुपये या पैसे फेंकना आदि कई बातें वर्जित है जिन्हें करने से पाप लगता है।

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