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श्रावण मास: धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में एक सूक्ष्म विश्लेषण

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सुशील कुमार शर्मा

, सोमवार, 28 जुलाई 2025 (17:01 IST)
भारतीय संस्कृति में बारह महीनों का विशेष महत्व है, परंतु श्रावण मास (सावन) को विशेष रूप से धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अत्यंत पावन एवं पुण्यकारी माना गया है। यह मास वर्षा ऋतु के मध्य में आता है, जब धरती हरीतिमा से आच्छादित हो जाती है और प्रकृति अपने संपूर्ण सौंदर्य में खिल उठती है। इस माह का संबंध विशेष रूप से भगवान शिव से जुड़ा है, किन्तु इसके पीछे न केवल धार्मिक मान्यताएं हैं, बल्कि वैज्ञानिक एवं आयुर्विज्ञान संबंधी कारण भी छिपे हुए हैं। प्रस्तुत आलेख में हम श्रावण मास की बहुआयामी महत्ता का विस्तृत और सूक्ष्म विश्लेषण करेंगे।ALSO READ: सिर्फ धातु के ही नहीं, श्रावण में इन 10 प्रकार के शिवलिंगों के पूजन से चमकेगा आपका भाग्य
 
1. पौराणिक एवं धार्मिक संदर्भ :
श्रावण मास का नाम 'श्रवण नक्षत्र' के आधार पर पड़ा है, जो इस मास की पूर्णिमा तिथि के निकट होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह मास चातुर्मास का प्रारंभ है वह कालखंड जब भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में लीन रहते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में आ जाता है। यही कारण है कि इस मास में शिवपूजन की विशेष परंपरा विकसित हुई है।
 
शिव महिमा और श्रावण: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष को जब संपूर्ण सृष्टि संकट में डालने लगा, तब भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया और नीलकंठ कहलाए। यह घटना श्रावण मास में घटित मानी जाती है। इसी कारण श्रावण मास में शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा आदि चढ़ाने की परंपरा है, जिससे शिव के कंठ की शीतलता बनी रहे।
 
2. सांस्कृतिक पक्ष :
- श्रावण मास भारतीय जीवन के उल्लास, प्रेम, भक्ति और सौंदर्य का प्रतीक बन चुका है। यह महीना लोकगीतों, पर्वों और मेलों का भी संगम है।
- कजली, फाग, मल्हार जैसी लोकधुनें गांवों-गांवों में गुंजती हैं।
- हरियाली तीज, नागपंचमी, रक्षा बंधन, शिवरात्रि, श्रावणी उपाकर्म जैसे पर्व इसी माह में आते हैं।
- स्त्रियां इस मास में सौंदर्य और शृंगार का पर्व मनाते हुए उपवास करती हैं और सुहाग की लंबी आयु की कामना करती हैं।
 
श्रावण और लोककला: श्रावण मास में रचनात्मकता चरम पर होती है। मेंहदी लगाना, झूला झूलना, गीत गाना, पारंपरिक वस्त्र पहनना आदि इसके जीवंत उदाहरण हैं। यह महीना स्त्रियों के लिए विशेष रूप से उमंग और आस्था का प्रतीक बन चुका है।
 
3. आयुर्वेद एवं विज्ञान के दृष्टिकोण से श्रावण का महत्व: भारत के ऋषियों ने धर्म और स्वास्थ्य को कभी अलग नहीं माना। श्रावण मास का विज्ञान अत्यंत गूढ़ है और इसके नियमों का पालन व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।ALSO READ: श्रावण सोमवार व्रत कथा: पुत्र प्राप्ति और महादेव की कृपा
 
पाचन तंत्र की शिथिलता: मानसून के कारण वातावरण में आर्द्रता बढ़ जाती है, जिससे पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। आयुर्वेद अनुसार वर्षा ऋतु में अग्नि मंद हो जाती है। अतः इस मास में उपवास, फलाहार, सात्त्विक भोजन, नीम, तुलसी, त्रिफला, पंचामृत आदि का सेवन लाभकारी होता है।
 
जलजनित रोगों का समय: इस समय मलेरिया, टाइफाइड, डेंगू, पीलिया, हैजा जैसे रोग फैलने की संभावना अधिक होती है। अतः शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कई उपवास और व्रत किए जाते हैं जिससे विषाक्त तत्व (toxins) शरीर से बाहर निकलते हैं।
 
शिवलिंग पर जलाभिषेक का वैज्ञानिक आधार: शिवलिंग पर जलाभिषेक से न केवल धार्मिक आनंद की अनुभूति होती है, बल्कि यह क्रिया मन को एकाग्र करती है। इसके पीछे जल की ध्वनि, कंपन और ध्यान केंद्रित करने की प्रक्रिया अंततः मानसिक तनाव को कम करती है।
 
4. पर्यावरणीय पक्ष: श्रावण मास वर्षा का चरम होता है। यह प्रकृति के नवजीवन का काल होता है। हरियाली पर्व, वृक्षारोपण, तुलसी पूजन जैसी परंपराएं इस मास में जुड़ी हैं, जो हमें पर्यावरण-संरक्षण का पाठ पढ़ाती हैं।
 
- जल संरक्षण का भाव शिवलिंग पर जल अर्पण से उत्पन्न होता है, जो जल की पवित्रता और उपयोगिता का संकेत है।
- वृक्षों की आराधना, जैसे पीपल, वट, बेल, तुलसी आदि को पूजने से उनकी रक्षा होती है।
- नदी स्नान और तीर्थ यात्रा का चलन भी जल स्रोतों के संरक्षण से जुड़ा है।
 
5. मनोवैज्ञानिक लाभ: श्रावण मास में प्रतिदिन नियमपूर्वक ब्रह्ममुहूर्त में उठना, स्नान, जप, ध्यान, व्रत, शिवपूजन आदि क्रियाएं मन को स्थिरता, शांति और आनंद प्रदान करती हैं। यह आत्मअनुशासन का अभ्यास है। इसके अतिरिक्त उपवास रखने से आत्मसंयम, इच्छाओं पर नियंत्रण और मन की दृढ़ता विकसित होती है।
 
6. सामाजिक समरसता: श्रावण मास में धार्मिक यात्राएं, कथा-भागवत, सामूहिक पूजन, भजन-कीर्तन आदि सामाजिक समागमों का आयोजन होता है जिससे जनसामान्य में एकता, सहिष्णुता और सेवा की भावना जाग्रत होती है। कांवड़ यात्रा इसका जीवंत उदाहरण है जिसमें लाखों शिवभक्त एक भाव में बंधकर यात्रा करते हैं।
 
7. युवा वर्ग और श्रावण : आज के वैज्ञानिक युग में यदि श्रावण मास की परंपराओं को केवल आस्था के रूप में न देख कर वैज्ञानिक, सामाजिक और मानसिक विकास के उपकरण के रूप में देखा जाए, तो युवा वर्ग के लिए यह मास आत्मविकास का अवसर बन सकता है।
- आत्मानुशासन
- संयम
- प्रकृति से जुड़ाव
- योग-प्राणायाम
- शाकाहार की प्रवृत्ति
इन सबके माध्यम से श्रावण मास युवा वर्ग के लिए नवजीवन का संकल्प लेकर आता है।
 
श्रावण मास केवल एक धार्मिक मास नहीं है, बल्कि भारतीय परंपरा की वैज्ञानिकता, प्रकृति-संवेदना और आत्मशुद्धि की महान यात्रा है। यह महीना संयम का, साधना का, संवेदना का और सृष्टि के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यदि हम इस माह के पीछे छिपे गूढ़ तात्पर्यों को समझें, तो न केवल हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय चेतना भी जाग्रत होगी।
 
श्रावण हमें शांति, सहिष्णुता, साधना और समर्पण सिखाता है आइए, इस श्रावण को सिर्फ एक परंपरा न मानें, बल्कि एक पुनर्जागरण का पर्व मानकर मनाएं।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है।)ALSO READ: श्रावण मास की हरियाली तीज और हरतालिका तीज में क्या अंतर है?

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