भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी को ही बलदाऊ, भलभद्र और संकर्षण कहते हैं। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को उनकी जयंती मनाई जाती है जिसे हलछठ भी कतहे हैं। इस बार यह पर्व 28 अगस्त 2021 शनिवार को रहेगा। कहते हैं कि श्री बलदाऊ के क्रोध से मच जाता था हाहाकार, कान्हा भी डरते थे अपने भाई से।
1. श्रीराम अवतार के समय शेषनागरी ने लक्ष्मण रूप में जन्म लेकर श्रीराम के छोटे भाई बने थे बाद में जब कृष्णातार होने वाला था तो शेषनाग जी की विनती पर श्रीहरि विष्णु ने अपने कृष्णावतार के समय उन्हें अपना बड़ा भाई बनाया।
2. बलराम की श्रीकृष्ण के बड़े भाई बनकर उन्हें हर बात में सीख, सलाह देते रहते थे परंतु श्रीकृष्ण तो अपने मन की ही करते थे। बलरामजी ने बड़ा भाई बनकर भी श्रीकृष्ण की हर कदम पर सहायता की और उन्हें कई सारी मुसीबतों से बाहर निकाला। बलरामजी का स्वभाव गंभीर, शांत परंतु क्रोध लिए हुए था। वह हर छोटी बात पर भी क्रोधित हो जाते थे। उनके क्रोध को शांत करने के लिए श्रीकृष्णजी को बहुत मशक्कत करना पड़ती थी।
3. कहते हैं कि एक बार कौरव और बलराम के बीच किसी प्रकार का कोई खेल हुआ। इस खेल में बलरामजी जीत गए थे लेकिन कौरव यह मानने को ही नहीं तैयार थे। ऐसे में क्रोधित होकर बलरामजी ने अपने हल से हस्तिनापुर की संपूर्ण भूमि को खींचकर गंगा में डुबोने का प्रयास किया। तभी आकाशवाणी हुई की बलराम ही विजेता है। सभी ने सुना और इसे माना। इससे संतुष्ट होकर बलरामजी ने अपना हल रख दिया। तभी से वे हलधर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
4. दूसरी कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवती का पुत्र साम्ब का दिल दुर्योधन और भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा पर आ गया था और वे दोनों प्रेम करने लगे थे। इसलिए एक दिन साम्ब ने लक्ष्मणा से गंधर्व विवाह कर लिया और लक्ष्मणा को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगा। जब यह बात कौरवों को पता चली तो कौरव अपनी पूरी सेना लेकर साम्ब से युद्ध करने आ पहुंचे। कौरवों ने साम्ब को बंदी बना लिया। इसके बाद जब श्रीकृष्ण और बलराम को पता चला, तब बलराम हस्तिनापुर पहुंच गए और बलराम ने अपना रौद्र रूप प्रकट कर दिया। वे अपने हल से ही हस्तिनापुर की संपूर्ण धरती को खींचकर गंगा में डुबोने चल पड़े। यह देखकर कौरव भयभीत हो गए। संपूर्ण हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया। सभी ने बलराम से माफी मांगी और तब साम्ब को लक्ष्मणा के साथ विदा कर दिया।
5. रासलीला के समय वरुणदेव ने अपनी पुत्री वारुणी को तरल शहद के रूप में वहां भेजा। जिसकी सुगंध और स्वाद से बलरामजी एवं सभी गोपियां को मन प्रफुल्लित हो उठा। बलराम रासलीला का आनंद यमुना नदी के पानी में लेना चाहते थे। जैसे ही बलराम ने यमुना को उन सबके समीप बुलाया। यमुना ने आने से मना कर दिया। तब क्रोध में बलराम ने कहा कि मैं तुझे अपने हल से बलपूर्वक यहां खींचता हूं और तुझे सैंकड़ों टुकड़ो में बंटने का श्राप देता हूं। यह सुनकर यमुना घबरा गई और क्षमा मांगने लगी। तब बलराम ने यमुना को क्षमा किया। परन्तु हल से खींचने के कारण यमुना आज तक छोटे-छोटे अनेक टुकड़ों में बहती है।
6. युद्ध के अंत में बलराम युद्ध भूमि पर आ गए थे और अंतिम समय जब उन्होंने अपने शिष्य दुर्योधन को अकेले पांडवों से घिरा देखा तो उन्हें बहुत क्रोध आया था और उन्होंने पांडव और श्रीकृष्ण के खिलाफ अपना हल उठा लिया था। परंतु श्रीकृष्ण ने जैसे तैसे उनका क्रोध शांत किया। तब बलरामजी के अनुशंसा पर ही भीम और दुर्योधन का का द्वंद युद्ध कराया जिसमें दुर्योधन मारा गया।