श्रीकृष्ण के शारंग धनुष की रोचक कहानी की 8 खास बातें

अनिरुद्ध जोशी
शनिवार, 26 जून 2021 (18:12 IST)
श्रीराम के पास कोदंड, शिवजी के पास पिनाक और अर्जुन के पास गाण्डिव धनुष था। प्रभु श्रीकृष्‍ण को आपने धनुष धारण करते हुए नहीं देखा होगा परंतु उनके पास था सारंग या शारंग नाम का धनुष। आओ जानते हैं इसके बारे में कुछ खास।
 
 
शारंग (sarang) : 
1. भगवान श्रीकृष्ण सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर भी थे यह बात तब पता चली, जब उन्होंने लक्ष्मणा को प्राप्त करने के लिए स्वयंवर की धनुष प्रतियोगिता में भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में कर्ण, अर्जुन और अन्य कई सर्वश्रेष्ठ धनुर्धरों ने भाग लिया था। द्रौपदी स्वयंवर से कहीं अधिक कठिन थी लक्ष्मणा स्वयंवर की प्रतियोगिता। भगवान श्रीकृष्ण ने सभी धनुर्धरों को पछाड़कर लक्ष्मणा से विवाह किया था। हालांकि लक्ष्मणा पहले से ही श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी थी इसीलिए श्रीकृष्ण को इस प्रतियोगिता में भाग लेना पड़ा।
 
2. शारंग का अर्थ होता है रंगा हुआ, रंगदार, सभी रंगोंवाला और सुंदर। 
 
3. कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का यह धनुष सींग से बना हुआ था। 
 
4. कुछ मानते हैं कि यह वही शारंग है जिसे कण्व की तपस्यास्थली के बांस से बनाया गया था। ब्रह्माजी के आदेश से विश्वकर्माजी ने इन बांसों से 1. गांडीव, 2. पिनाक और 3. सारंग नाम के तीन धनुष बनाए थे।
 
5. यह भी कहा जाता है कि वत्तासुर नाम का एक दैत्य था जिसका संपूर्ण धरती पर आतंक था। उसके आतंक का सामना करने के लिए दधीचि ऋषि ने देशहित में अपनी हड्डियों का दान कर दिया था। उनकी हड्डियों से 3 धनुष बने- 1. गांडीव, 2. पिनाक और 3. सारंग। इसके अलावा उनकी छाती की हड्डियों से इन्द्र का वज्र बनाया गया। इसी सभी दिव्यास्त्रों को लेकर वत्तासुर के साथ युद्ध किया और उसका वध कर दिया गया था।
 
6. एक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण और राक्षस शल्व के बीच एक युद्ध के दौरान शारंग धनुष प्रकट होता है। शल्व ने कृष्ण के बाएं हाथ पर हमला किया जिससे कृष्ण के हाथों से शारंग छूट गया। बाद में, भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शल्व के सिर को धड़ से अलग कर दिया।
 
7. कहेत है कि भगवान विश्वकर्मा ने तीन धनुष बनाए थे। पहला पिनाक, दूसरा गांडिव और तीसरा शारंग। ब्रह्मा ने विष्णुजी और शिवजी के बीच झगड़ा पैदा कर दिया कि तुम दोनों में से बेहतर तीरंदाज कौन है। फिर दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। शिवजी के पास पिनाक था और विष्णुजी के नास शारंग। अंत में ब्रह्माजी ने दोनों के क्रोध को शांत किया तब शिवजी ने क्रोधित होकर पिनाक देवरात को सौंप दिया। देवराज से यह धनुष राजा जनक के पास चला गया। इसी तरह विष्णुजी ने भी क्रोधित होकर अपना धनुष ऋषि ऋचिक को सौंप दिया।
 
8. शारंग धनुष सबसे पहले भगवान विष्णु के पास था। विष्णुजी ने इसे ऋषि ऋचिक को दे दिया था। ऋषि ऋचिक ने अपने पौत्र परशुराम को दिया और परशुरामजी ने श्रीराम को दिया। श्रीराम ने यह धनुष जल के देवता वरुण को दे दिया और भगवान वरुणदेव ने खांडवदहन के दौरान इस धनुष को श्रीकृष्ण को सौंप दिया। मृत्यु से ठीक पहले, कृष्ण ने इस धनुष को महासागर में फेंककर वरुण को वापस लौटा दिया।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

हरियाली तीज का व्रत कब रखा जाएगा, पूजा का समय क्या है?

सिंधारा दूज कब है, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

सावन माह में सामान्य शिवलिंग या ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने में सबसे ज्यादा किसका है महत्व?

मनोकामना पूरी होने पर कितनी बार करनी चाहिए कावड़ यात्रा?

सप्ताहवार राशिफल: करियर, प्यार और स्वास्थ्य पर असर

सभी देखें

धर्म संसार

25 जुलाई 2025 : आपका जन्मदिन

25 जुलाई 2025, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

ये 3 राशियां हमेशा क्यों रहती हैं प्यासी और असंतुष्ट?

क्या फिर लौटेगी महामारी! नास्त्रेदमस और बाबा वेंगा की भविष्यवाणी में छुपे 2025 में तबाही के संकेत

सिंधारा दोज क्यों मनाई जाती है, क्या करते हैं इस दिन? पूजा का शुभ मुहूर्त और 3 उपाय

अगला लेख