Shri Krishna 20 August Episode 110 : प्रद्युम्न जन्म कथा, शिवजी की तपस्या भंग करने हेतु माता पार्वती नहीं देती हैं आज्ञा

अनिरुद्ध जोशी
गुरुवार, 20 अगस्त 2020 (22:05 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 20 अगस्त के 110वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 110 ) में नए राजमहल में सुदामा और वसुंधरा प्रवेश करते हैं तो वे श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हैं कि हममें कभी धन-दौलत के प्रति कभी आसक्ति नहीं रहे। तभी वहां श्रीकृष्ण चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर दोनों को दर्शन देते हैं और कहते हैं सुदामा मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि जीवन में तुम कभी भी माया के दास नहीं बनोगे बल्की हमेशा माया तुम्हारी दासी बनकर रहेगी। तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की सेवा करेगी। यह देख और सुनकर सुदामा और वसुंधरा धन्य हो जाते हैं।
 
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इसके बाद रामानंद सागर जी आकर श्रीकृष्ण के इस अवतार के चमत्कार की बातें करते हैं और कहते हैं कि हमने भगवान श्रीकृष्ण के कई पहलुओं को बताया और अब देखें भगवान श्रीकृष्ण की संतति अर्थात उनके संतान की कहानी। श्रीकृष्ण का सबसे बड़ा पुत्र था प्रद्युम्न जिसने रुक्मिणी के गर्भ से जन्म लिया था।
 
प्रद्युम्न कामदेव का अवतार था। कामदेव को एक बार भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर भस्म कर दिया था। देवताओं की प्रार्थना और रति के विलाप से द्रवित होकर कामदेव को जीवनदान तो दे दिया परंतु उसे उसका शरीर नहीं दे सके, तब कामदेव कुछ काल तक बगैर शरीर के ही जीवित रहा। 
 
तारकासुर को वरदान था कि शिव का पुत्र ही उसका वध कर सकता है, क्योंकि तारकासुर यह जानता था कि भगवान शिव की तपस्या तो लाखों युगों तक चलती रहेगी और जब तपस्या से जागेंगे तभी किसी से विवाह करेंगे और फिर तभी उनका पुत्र होगा। सती के भस्म हो जाने के बाद शिवजी तो समाधि में लीन हो गए थे। विष्णुजी ने जब देवताओं को तारकासुर के वध का रहस्य बताया तब विष्णुजी के कहने पर ही इंद्रदेव नारदजी के साथ मिलकर शिवजी की तपस्या भंग करने का प्रयास करते हैं परंतु वह ऐसा करने में असफल हो जाते हैं।
 
फिर इंद्रदेव विष्णु का आह्‍वान करते हैं तो विष्णुजी प्रकट होकर बताते हैं कि उनकी तपस्या को भंग करने का उपाय तो ब्रह्माजी ही बताएंगे। फिर नारदमुनि के साथ इंद्रदेव ब्रह्माजी के पास जाते हैं तो ब्रह्माजी कहते हैं कि उनकी तपस्या भंग करना कठिन है यदि उनका क्रोध जागृत हो गया तो भयंकर होगा। फिर ब्रह्माजी देवताओं को शिवजी की तपस्या भंग करने के लिए बताते हैं कि उनमें प्रेम की भावना जागृत करने के लिए तुम कामदेव और रति की सहायता लो।
 
रति इस कार्य के लिए शिवजी के डर से कामदेव को मना कर देती है और कहती है कि मैं तो केवल अपने सुहाग के प्राणों की सुरक्षा चाहती हूं। परंतु कामदेव उन्हें लोककल्याण का वास्ता देकर मना लेते हैं। तब कामदेव इंद्र से कहते हैं कि हमारी सुरक्षा का आश्वासन कौन देगा? इस पर सभी देवता चुप रह जाते हैं तब यह सुनकर रति कहती है कि सुरक्षा का आश्‍वासन केवल माता पार्वती ही हमें दे सकती हैं। 
 
तब कामदेव पूछते हैं- वो कैसे देवी? रति कहती हैं कि हम शिवजी के मन में प्रेम की भावना जगाना चाहते हैं ना। आप तो सभी जानते हैं कि हिमालय पर्वत की कन्या देवी पार्वती पूर्व जन्म में शिवजी की पत्नी थीं। इस जन्म में वे शिवजी को प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रही हैं। शिवजी का विवाह आदिमाता पार्वती से ही होगा ये विधान तो सभी जानते हैं तो हम शिवजी के मन में प्रेमभाव जगाने से पहले माता पार्वती से आज्ञा लें तो हम शिवजी की तपस्या भंग करने के आरोप से बच जाएंगे।... यह सुनकर इंद्रदेव कहते हैं कि वाह देवी आपने अति उत्तम सुझाव दिया और नारदजी कहते हैं नारायण नारायण। 
 
फिर सभी तपस्यारत माता पार्वती के पास जाते हैं। वे सभी तारकासुर के आतंक की बात करके कहते हैं कि महादेव को उनकी तपस्या से आप ही जागृत कर सकती हैं माता। माता पार्वती कहती हैं कि यह मेरे लिए संभव नहीं है। तब इंद्रदेव कहते हैं कि माता यदि आपकी आज्ञा हो तो हम शिवजी की तपस्या भंग करने का प्रयास करें?
 
यह सुनकर माता पार्वती कहती हैं कि बुद्धि भ्रष्ट हो गई है आपकी क्या? महाप्रलय को निमंत्रण देना चाहते हैं और ये भी चाहते हैं कि आत्महत्या के इस कार्य में मैं आपकी सहायता करूं? इतना भी नहीं जानते कि भोलेनाथ की तपस्या भंग करते ही उनके क्रोध का ज्वालामुखी फट पड़ेगा और ना जाने कौन-कौन शिवजी के क्रोध के लावे में भस्म हो जाएगा। यह सुनकर सभी चौंक जाते हैं। जय श्रीकृष्‍णा।
 
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