Shri Krishna 30 August Episode 120 : भानामति आखिर तय कर लेती हैं प्रद्युम्न को अपनी विद्या से युवक बानाने का

अनिरुद्ध जोशी
रविवार, 30 अगस्त 2020 (22:07 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 30 अगस्त के 120वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 120 ) में भानाम‍मति अपनी माया से संभरासुर निर्मित करके गुरदेव के पास उनका काल बनाकर भेजती है। संभरासुर वहां पर गुरुदेव से कहता है कि आपने मेरी अनुमति के बगैर प्रद्युम्न को नष्ट किया है इसके लिए आपको दंड मिलेगा। यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं कि तुम क्या मुझे दंड दोगे मैं खुद की इस अग्निकुंड में अपने देह को अर्पित कर देता हूं। ऐसा कहकर वे अग्नि प्र‍ज्वलित करके भस्म होने वाले रहते हैं तब वहां काल प्रकट होकर बताता है कि प्रद्युम्न जीवित है और ये संभरासुर भी माया है गुरुदेव। 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
यह सुनकर गुरुदेव चौंक जाते हैं और कहते हैं- कि ये कैसे हो सकता है प्रद्युम्न और भानामति मेरी आंखों के सामने नष्ट हो चुके हैं। तब काल पुरुष कहता है- वो माया थी गुरुदेव माया, आपकी आंखों का धोखा। आपने जिस कृत्या का निर्माण किया था वो आपकी रचाई माया थी और आपकी मायावी का उत्तर किसी ने अपनी मायावी शक्ति से दिया है और प्रद्युम्न की रक्षा की है। यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं- नहीं मुझे विश्वास नहीं होता। तब कालपुरुष कहता है- विश्वास नहीं होता...हा हा हा। गुरुदेव जो संभरासुर अभी तुम्हारे पास आए हैं वो भी मायावी है। असली संभरासुर आपसे मिलने आ रहा है वो देखो। 
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यह सुनकर गुरुदेव संभरासुर की ओर देखते हैं तो नकली संभरासुर के पीछे रथ से असली संभरासुर उतरते हैं। यह देखकर नकली संभरासुर हंसने लगता है। गुरुदेव दो दो संभारासुर को देखकर अचंभित हो जाते हैं। यह देखकर कालपुरुष जोर-जोर से हंसने लगता है। तब गुरुदेव पूछते हैं कि ये दूसरा संभरासुर कौन है महाराज संभरासुर तो मेरे आश्रम में उपस्थित हैं। उन्हीं की आज्ञा से तो मैं अपने प्राण त्यागने जा रहा था। तब कालपुरुष कहता है कि गुरुदेव मैंने आपको पहले ही चेतावनी दी थी कि यदि आप प्रद्युम्न को नष्ट करने का प्रयास करेंगे तो आप इस यज्ञ से साथ ही नष्ट हो जाएंगे और इसी चेतावनी के अनुसार आप आत्मस्वाह करने ही जा रहे थे... हा..हा..हा।
 
यह सुनकर गुरुदेव कमंडल से जल निकालकर मंत्र पढ़ते हैं और उस मायावी संभरासुर की ओर फेंकते हैं तो वह हंसते हुए गायब हो जाता है। फिर पीछे से रथ से उतरकर असली संभरासुर आकर प्रणाम करते हैं तो गुरुदेव पूछते हैं संभरासुर आज अचानक आश्राम में कैसे आना हुआ? तब संभरासुर कहता है गुरुदेव मैं आपका आशीर्वाद लेने आया हूं। मैं मृत्युलोक पर आक्रमण करना चाहता हूं। यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं कि अच्छी बात है दैत्याराज। मैं ये यज्ञ तुम्हारे कल्याण के लिए ही कर रहा हूं। मैं इस यज्ञ की समाप्ति के बाद तुम्हें अभेद्य कवच पहनाऊंगा जिससे मृत्यु तुम्हें स्पर्श नहीं कर सकेगी। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम इस यज्ञ की समाप्ति तक आक्रमण करने का विचार भी न करो। यह सुनकर संभरासुर कहता है कि जैसे आपकी आज्ञा गुरुदेव। परंतु इस यज्ञ की समाप्ति कब होगी गुरुदेव? तब गुरुदेव कहते हैं कि आने वाली पूनम की रात को। यह सुनकर संभरासुर कहता है- इसका अर्थ है मुझे सात दिन और रुकना पड़ेगा। ठीक है गुरुदेव मैं पूनम की राज के बाद ही आक्रमण करूंगा। अब मुझे आज्ञा दीजिये। फिर संभरासुर वहां से चला जाता है।
 
इसके बाद कालपुरुष फिर से प्रकट होकर जोर-जोर से हंसने लगता है तो गुरुदेव कहते हैं- हे काल पुरुष! अब आप क्यों हंस रहे हैं? तब वह कहता है कि हंस रहा हूं इसलिए गुरुदेव की अब आप भी मेरा शिकार बनने वाले हैं...हा हा हा। आप ही ने अपनी आयु की लंबी रेखा छोटी कर दी है और अब आपकी आयु केवल सात दिनों की है...हा हा हा। पूनम की रात आपकी अंतिम रात होगी। यह सुनकर गुरुदेव चौंक जाते हैं।
 
उधर फिर संभरासुर को बताते हैं जो कि अपने धनुष को उठाता है और उसकी प्रत्यंचा खींचकर छोड़ देता है जिसकी टंकार से तीनों लोक गूंज जाते हैं। इंद्र का आसन हिल जाता है।.. फिर वह जोर-जोर से हंसता है और अपनी पत्नी मायावती से कहता है- सुनी आपने मेरे धनुष की टंकार मायावी! मायावती कहती है- मैंने ही क्या आपके धनुष की टंकार तो त्रिलोक ने भी अवश्य सुनी होगी। इस ध्वनि से तीनों लोक कांप गए होंगे। इस पर संभरासुर कहता है कि ये केवल ध्वनि नहीं थी मायावती ये तो त्रिलोक पर संभरासुर के आक्रमण का संकेत था। 
 
फिर संभरासुर अपने महल की गैलरी में जाकर अपनी माया से हाथ में एक बाण ले जाता है और उसे धनुष पर चढ़ाकर कहता है- हे इंद्र ये बाण उस विजय जी चेतावनी है जो उसे सात दिनों बाद मिलने वाली है।.. इंद्रदेव ये सुन और देखकर घबरा जाते हैं। तब संभरासुर ऐसा कहकर वह बाण को इंद्रलोक की ओर छोड़ देता है। वह बाण इंद्रलोक की ओर जाकर इंद्र के सामने स्थिर हो जाता है और तब उसकी नोक पर संभरासुर का हंसता हुआ चेहरा उभरता है जो इंद्र को नजर आता है जो कहता है- देवेंद्र मैं तुम्हें चेतावनी देने आया हूं कि अब तुम कुछ ही दिनों के लिए इंद्रलोक के स्वामी हो। यह सुनकर इंद्रदेव कहते हैं- दैत्याराज संभरासुर सत्ता की लालसा और अपनी शक्ति के घमंड में बड़े-बड़े असुरों ने इंद्रलोक पर आक्रमण करने की मूर्खता का प्रदर्शन किया है। ये तो समय ही दिखाएगा की मूर्खों में तुम्हारा स्थान कितना ऊंचा है।.. यह सुनकर संभरासुर कहता है कि इंद्रलोक की विजय के बाद तुम देखोगे की सूर्य भी संभरासुर की आज्ञा से ही उगेगा और उसी की आज्ञा से डूबेगा..हा हा हा।
 
इसके बाद देवराज इंद्र भगवान श्रीकृष्ण के पास जाकर बताते हैं कि संभरासुर की माया और उसकी महत्वकांक्षा देखकर मेरी चिं‍ताएं बढ़ गई हैं क्योंकि एक अनावश्यक युद्ध अनिवार्य बन गया है। तब श्रीकृष्ण कई तरह के प्रवचन देने के बाद कहते हैं कि इस दानव का वध प्रद्युम्न के हाथों होगा देवेंद्र। 
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फिर उधर, भानामति लेटी होती है और प्रद्युम्न पालने में सोया रहता है तब भानामति को याद आता है कि देवी रति ने प्रद्युम्न को शीघ्र ही बड़ा करने को कहा था। यह सोचकर उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। फिर वह प्रद्युम्न के पास जाकर दुलारते हुए कहती हैं कि मैं कैसे तुम्हें बड़ा कर दूं। बड़ा कर दूंगी तो मेरी ममता का क्या होगा? नहीं नहीं मैं तुम्हें बड़ा नहीं कर सकती। 
 
तभी वहां पर देवी रति प्रकट होकर कहती है- आप तो जानती है कि राजगुरु प्रद्युम्न की हत्या के लिए और संभरासुर को त्रिलोकपति बनाने के लिए यज्ञ कर रहे हैं। मुझे डर है कि कहीं संभारासुर अपने उद्दयेश्य में सफल नहीं हो जाए। वे मायावी विद्या जानते हैं। इस पर भानामति कहती हैं कि मायावी विद्या तो मैं भी जानती हूं। यदि राजगुरु ने मेरे पुत्र की हात्या की कोशिश की तो मैं अपने पुत्र की रक्षा अपनी माया के बल पर करूंगी। मैं अपने पुत्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों को भी त्याग सकती हूं।
 
इस पर देवी रति कहती हैं कि अच्छा तो ये है कि न आपके प्राणों को खतरा हो और न प्रद्युम्न के, जब आप रसायन विद्या के प्रयोग से अपने पुत्र प्रद्युम्न को तुरंत ही एक युवक बना करके उसे भी मायावी विद्या सीखा दें और प्रद्युम्न न केवल अपने प्राणों की रक्षा करे बल्कि अपने शत्रुओं का नाश भी करे जो धर्म के शत्रु भी है।..फिर आपकी मायावी शक्ति और गुरुदेव की मायावी शक्ति में आकाश पाताल का फर्क है। वो एक हाथी के बराबर है और आप एक ‍चींटी के बराबर। यह सुनकर भानामति कहती है कि चींटी हाथी के पैरों तले भी जिंदा रह सकती है और यदि वह चाहे तो उसके कान में घुसकर उसकी मृत्यु का कारण भी बन सकती है।... यह सुनकर रति चली जाती है।
 
उधर, रुक्मिणी श्रीकृष्‍ण से कहती है कि देवी रति के समझाने के बाद भी भानामति प्रद्युम्न को युवक बनाने में संकोच से काम ले रही है भगवन। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि भानामति इस समय मानव है और ममता की मारी है। इसलिए पुत्र मोह को त्यागने में उसका संकोच केवल उचित ही नहीं आदरणीय भी है। यह सुनकर रुक्मिणी कहती है- परंतु भानामति को अब पुत्र मोह त्यागना ही होगा भगवन क्योंकि संभारसुर के गुरु सात दिनों के अंदर यज्ञ संपन्न करने की प्रतिज्ञा कर चुके हैं और उन्हें मृत्यु का जरा-सा भी भय नहीं है।.. फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि इसके लिए भानामति को अंगुली पकड़कर उसे धीरे-धीरे पुत्र मोह से बाहर निकालना होगा। उसे याद दिलाना है कि वो मायावी और रसायन विद्या का प्रयोग त्रिलोक के कल्याण के लिए ही करेगी और अब वो समय आ गया है।
 
फिर भानामति को विष्णु की प्रार्थना करते हुए बताया जाता है तो भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी सहित वहां प्रकट हो जाते हैं जिनके दर्शन करके भानामति अति प्रसन्न हो जाती है। तब भगवान कहते हैं- भानामति ये मंत्रोच्चार सुन रही हो ना? तब भानामति कहती हैं- हां प्रभु मुझे सबकुछ स्पष्ट सुनाई दे रहा है। फिर भगवान कहते हैं- गुरुदेव संभरासुर को पूनम की रात अमृत प्रदान करने के लिए ही यज्ञ कर रहे हैं। संभरासुर के अमृत्व का अर्थ जानती हो ना भानामति? यह सुनकर भानामति सोच में पड़ जाती है तब श्रीकृष्ण कहते हैं- संभरासुर के अमृत्व प्राप्त करने का अर्थ है प्रद्युम्न की मृत्यु। यह सुनकर वह घबरा जाती है और कहती है- नहीं नहीं प्रभु। तब भगवान उसे श्रीहरि को दिया उसका वचन याद दिलाते हैं और यह भी बताते हैं कि यह हमारा पुत्र है देवी रुक्मिणी भी इसकी बाल लीलाओं से और ममता से वंचित रह गई है।...फिर भानामति सबकुछ समझ जाती है।
 
फिर भानामति प्रद्युम्न को एक मनोरम स्थान पर ले जाकर सभी देवी-देवताओं का आह्‍वान करके उनसे आशीर्वाद और अनुमति लेकर अपनी रसायन विद्या से उसे युवक बनाने के लिए मंत्र जाप करने लगती है तो उधर यज्ञ कर रहे गुरुदेव को यज्ञ की अग्नि में भानामति नजर आती है। यह देखकर वे चौंक जाते हैं और फिर अपने सूक्ष्म शरीर से वे वायुमार्ग से उस स्थान की ओर निकल पड़ते हैं।.. यह देखकर रुक्मिणी और श्रीकृष्ण अचंभित हो जाते हैं। नारदमुनि और देवी रति भी यह देखकर आशंकित हो जाते हैं।
 
उधर भानामति का मंत्रजाप चालू रहता है तो वहां पर गुरुदेव पहुंचकर क्रोधित होकर कहते हैं- बंद करो ये सब भानामति। यह सुनकर भानामति की आंखें खुल जाती है और वह गुरुदेव को देखकर कहती है- गुरुदेव आप! प्रणाम गुरुदेव। तब वे क्रोधित होकर कहते हैं- मैं तुम्हारे प्रणाम को स्वीकार नहीं कर सकता क्योंकि तुम विद्रोही हो। तुमने मेरी अवज्ञा की है और असुर साम्राज्य का विरोध किया है। तुम असुर जाति के विरुद्ध कार्य कर रही हो।
 
यह सुनकर भानामति के चेहरे पर भी क्रोध नजर आने लगता है और वह कहती है- मैं तो त्रिलोक का कल्याण करने जा रही हूं गुरुदेव। एक असुर समाज के लिए तीनों लोकों को नष्ट नहीं कर सकती और मैं आपसे भी यही विनति करती हूं गुरुदेव। आप भी संभरासुर जैसे अधर्मी का साथ छोड़कर सत्य और धर्म का रास्ता अपनाएं।.. इसलिए मैं अपने पुत्र को कदापि नष्ट नहीं करूंगी। यह सुनकर गुरुदेव भड़क कर कहते हैं- यदि तुम इसे नष्ट नहीं करोगी तो मैं इसे नष्ट कर दूंगा। यही मेरा उद्देश्य है और यही मेरा धर्म है।
 
यह सुनकर भानामति भड़क जाती है और कहती है मैं आपको भी इसे नष्ट नहीं करने दूंगी गुरुदेव। यदि आप अपना धर्म निभाएंगे तो मैं भी अपना ममता धर्म अवश्य निभाऊंगी। 
 
यह सुनकर गुरुदेव कहते हैं कि भानामति यदि तुम मुझसे टकराना ही चाहती हो तो ये अंतिम इच्छा भी पूरी कर लो पर ये याद रखना की इसमें घाटा तुम्हारा ही है। तब भानामति कहती है कि गुरुदेव हानि या लाभ की चिंता ममता कभी नहीं करती।.. फिर गुरुदेव कहते हैं कि मैं तुम्हारे पुत्र को नष्ट करने जा रहा हूं देखता हूं कि तुम मुझ पर कैसे प्रतिबंध लगाती हो।... यह सुनकर श्रीकृष्ण, रुक्मिणी, नारद और रति देखने लगते हैं। 
 
फिर गुरुदेव मंत्र पढ़कर एक आग का गोला प्रद्युम्न की ओर फेंकते हैं जिसे भानामति अपनी माया से रोक देती है। इस तरह वह दूसरा प्रहार भी रोक देती है तब गुरुदेव कमंडल से जल निकालकर अपने हाथ में रखककर मंत्र बुदबुदाते हैं और भानामति भी ऐसा ही करके अपने पुत्र के आसपास सुरक्षा कवच निर्मित कर देती है जिससे गुरुदेव का मायावी प्रहार विफल हो जाता है। फिर गुरुदेव झल्लाकर वहां से चले जाते हैं और पुन: अपने शरीर में स्थित हो जाते हैं। 
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वहां पर गुरुदेव यज्ञ में घी डालकर मंत्र पढ़ते हैं तभी वहां पर कालपुरुष प्रकट होकर जोर-जोर से हंसने लगता है और कहता है कि मैंने तो पहले ही कहा था कि आप मृत्यु को टालने में सफल नहीं होंगे। तब गुरुदेव कहते हैं कि इस समय सफल नहीं हुआ तो क्या हुआ अगले समय हो जाऊंगा। तब कालपुरुष कहता है- गुरुदेव मृत्यु से बड़ा कोई नहीं जब जिसका काल आ जाता है तब उसे कोई नहीं रोक सकता। यहां हर कोई मरने के लिए ही जी रहा है और जब आप स्वयं अमर नहीं हैं तो आप कैसे संभरासुर को अमृत्व प्रदान कर सकते हो.. हा हा हा। 
 
उधर, संभरासुर अपनी पत्नी पर क्रोधित होकर कहता है मायावती तुम बार-बार क्यों मुझे मृत्यु का भय दिखाकर डराना चाहती हो। मृत्यु से भय कैसा? जो डरता है वही मरता, संभरासुर मृत्यु से नहीं डरता, मृत्यु मेरे अधीन है।...फिर उधर, श्रीकृष्ण रुक्मिणी को मृत्यु का रहस्य बताकर कहते हैं कि मृत्यु जैसी कोई सुंदर वस्तु नहीं है।
 
फिर उधर, भानामति यक्षदेव, नागदेव और गंधर्वदेव से प्रद्युम्न को युवा बनाने में सहायता करने हेतु उनकी लोककल्याण हेतु स्तुति करती है। सभी देवता एक एक करके उसे आशीर्वाद देते हैं।.. उधर, गुरुदेव का यज्ञ चलता रहता है और इधर भानामति सभी देवताओं से आशीर्वाद और अनुमति लेती हैं। फिर नागदेव, गंधर्वदेव और यक्षदेव एक साथ प्रकट होकर कहते हैं कहा भानामति हम तुम्हारी क्या सहायता कर सकते हैं। यह सुनकर भानामति कहती है प्रभु मैं भगवान विष्णु की आज्ञा तथा रसायन विद्या से मैं प्रद्युम्न को बड़ा करना चाहती हूं। तब वे देवता कहते हैं कि परंतु इससे पहले प्रद्युम्न को सात पवित्र ‍नदियों गोदावरी, नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, यमुना, सरस्वती और सबसे बढ़कर गंगाजल से इसको स्नान कराए बिना प्रद्युम्न को बढ़ा करने का कार्य संपन्न नहीं हो सकता। फिर भानामति कहती है जो आज्ञा प्रभु। जय श्रीकृष्णा। 

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