निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 16 जुलाई के 75वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 75 ) में शकुनि के षड्यंत्र के तहत कुंती सहित पांचों पांडवों को वारणावत भेज दिया जाता है, जहां लाक्षागृह में उन्हें जलाकर मारने के योजना रहती है। इस बीच महामंत्री विदुर को एक गुप्त पत्र मिलता है जिसमें गुप्तचर उन्हें संकेत से एक गुप्त स्थान पर मिलने को कहता है।
सेवक के जाने के बाद महामंत्री विदुर देखते हैं कि उस पपीता के फल में लाल कंकू लगा है। वे उसे हटाते हैं तो उस पपीता का कुछ भाग कटा हुआ नजर आता है। कटे हुए टूकड़े को निकालते हैं तो उसमें एक पत्र रखा होता है जिसे देखकर वे चौंक जाते हैं। उस पत्र को निकाल कर पढ़ते हैं जिस पर लिखा होता है- 'शिव मंदिर के पीछे वट वृक्ष के नीचे।'
विदुर शिव मंदिर के पास एक वृक्ष के नीचे बैठे साधु से गुप्त रूप से कंपल ओढ़कर मिलते हैं और कहते हैं क्या बात है वज्रदत्त, ऐसी क्या भीषण समस्या आन पड़ी की तुम्हें इस भेष में आना पड़ा। गुप्तचार व्रजदत्त कहते हैं कि समस्या नहीं प्रभु महान संकट आ पड़ा है। बहुत बड़ा षड्यंत्र है। विदुर कहते हैं परंतु वह षड्यंत्र क्या है? तब वज्रदत्त कहता है- पांचों पांडवों की एक साथ हत्या। यह सुनकर विदुर चौंक जाते हैं। फिर वज्रदत्त शकुनि की चाल बताता है कि वारणावत में पुराने महल की मरम्मत के बहाने संपूर्ण घर लाख का बना दिया गया है और पहली रात ही उस लाक्षागृह को आग लगा दी जाएगी और यदि आप इस बात की सूचना देने के लिए भीष्म पितामह के यहां गए तो उन्हें इसका पता चल जाएगा कि आपको पता चल गया है।
तब विदुर बताता है कि तुम्हें अपने चार विश्वस्त आदमियों के साथ गुप्त रूप से पहाड़ी मार्ग से पांडवों से पहले वारणावत पहुंचना है और उन्हें बचाना है। फिर विदुर उन्हें एक गुप्त योजना बताते हैं। विदुर की आज्ञा पाकर वज्रदत्त निकल पड़ता है।
उधर, पांचों पांडव रास्ते में पड़ाव डालते हैं। रात्रि में अर्जुन भीम से कहता है कि भैया इस तरह हम पांचों का वारणावत जाना कहां तक उचित है? तब भीम पूछता है कि मैं समझा नहीं? तब अर्जुन कहता है कि वैसे तो हम पांचों भाई एकसाथ वारणावत जाना चाहते थे लेकिन ये प्रस्ताव उन्हीं की ओर से आया है। अर्जुन को इस पर शक होता है। दोनों इस संबंध में चर्चा करते हैं और यह शंका व्यक्त करते हैं कि हो सकता है कि दुर्योधन इस बीच महाराज को हटाकर खुद राजा बन जाए और हमारे वापस आने का रास्ता बंद कर दे? तब भीम कहता है कि ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि पितामह भीष्म, गुरु द्रोण और विदुर काका ऐसा होने नहीं देंगे जब तक युवराज जीवित हैं। यह सुनकर अर्जुन कहता है कि ये कहकर आपने मेरी आंखे खोल दी है कि 'जब तक युवराज जीवित है।' इसलिए अब हमें युवराज के जीवन की चिंता करनी चाहिए। आज हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम कहीं भी, कभी भी बड़े भैया को अकेला नहीं जाने देंगे। उनकी सुरक्षा का भार आज से हम दोनों पर होगा। भीम कहता है अवश्य।
फिर वज्रदत्त और उसके साथियों को तेज गति से घौड़े पर जाते हुए दिखाया जाता है तो दूसरी ओर पांडवों को रथ पर सवार वारणावत की ओर जाते हुए दिखाया जाता है।
उधर, वारणावत में एक प्रधान सैनिक पांच अन्य सैनिकों और एक सेविका को वारणावत के महल का अवलोकन कराते वक्त बताता है कि कौनसा कक्ष किसका है। फिर वह कहता है कि युवराज युधिष्ठिर और महारानी कुंती के कक्ष को विशेष रूप से सजा दिया जाए। फिर वह महिला से कहता है कि तुम सैरंधी के भेष में महारानी की सेविका बनकर उनके साथ रहोगी और तुम पांचों एक-एक राजकुमार की सेवा में रहोगे। सभी कहते हैं जी। फिर वह सैनिक कहता है और हां सोने से पहले रात को दूध में बेहोशी की बूटी मिलाकर पिला देना ताकि आग लगने तक वो लोग होश में ही ना आ सके और याद रखना ये सारा काम पहली रात को ही पूरा हो जाना चाहिए। वह महिला कहती है जी हम भी याद रखेंगे और वो लोग भी याद रखेंगे। फिर वे सभी हंसने लगते हैं।
उधर, दुर्योधन कहता है- मामाजी यदि विदुर को इस षड्यंत्र का पता चल जाए तो क्या होगा?
तब शकुनि कहता है भांजे जब किसी बड़े काम की तरफ आगे बढ़ो तो उसकी असफलता के बारे में कहना तो क्या सोचना भी नहीं चाहिये। षड्यंत्र भी एक प्रकार का युद्ध होता है जो बुद्धि से लड़ा जाता है। इसलिए किसी डर या संशय के कारण आधे रास्ते ने मत लौटो, अब केवल सफलता की बाते सोचो। सोचो कि इस चाल की सफलता के बाद तुम्हारा राज्याभिषेक किस शान से होगा। फिर शकुनि बताता है कि मैंने किस तरह गुप्तचरों का जाल बिछा रखा है। मेरे गुप्तचरों ने पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और महामंत्री विदुर के निवास स्थानों को चारों ओर से घेर रखा है। कौन वहां से आता है, कौन वहां से जाता और कहां जाता है उस पर प्रतिक्षण नजर रखी जा रही है। यदि विदुर को यह पता चल जाता तो क्या वह शांति से अपने घर में विश्राम कर रहा होता? नहीं, इस वक्त वह मूर्ख अपने घर में भगवान की मूर्ति के सामने बैठा पूजा कर रहा है।
उधर, विदुर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने उनसे कुंती और पांडवों की रक्षा की प्रार्थना करते हैं।...उधर श्रीकृष्ण हंसते हैं तो बलराम पूछते हैं क्या हुआ? किस पर हंस रहे हो? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि हंस रहा हूं ये देखकर की एक परम ज्ञानी भी कितनी जल्दी विचलित हो जाता है जबकि वह ये अच्छी तरह जानता है कि जिसके साथ मैं हूं उसे भला किस बात का भय? तब बलरामजी कहते हैं ये सब तुम्हारी माया की लीला है।
उधर, वज्रदत्त साधु भेष में वारणावत में पांडवों के रुकने के स्थान लाक्षागृह के नजदीक नदी के किनारे पहुंच जाता है। फिर वह इशारे से अपने साथियों को बुलाता है। उनके हाथों में कुदाली, तगारी आदि खुदाई के सामान रहते हैं। फिर वह सभी से कहता है कि ये सुरंग यहां से उस लाक्षागृह तक होनी चाहिए। वे लोग जब उस घर को आग लगाएंगे तो शकुनि दुर्योधन के सैनिक महल को घेरकर खड़े रहेंगे ताकि यदि पांडव वहां से भागने की कोशिश करे तो वे उन्हें वहीं मारकर आग में फेंक दें। इसलिए मैं कहता हूं कि हमें इस सुरंग को उस घर से यहां तक बनाना चाहिए ताकि यहां नदी के किनारे वे तत्काल बाहर निकले और तुम उन्हें नाव से नदी के उस पार ले जाओ। तुम इसी क्षण खुदाई आरंभ कर दो। उधर जब युवराज जब अपने साथियों के संग वहां पहुंचेंगे तो ताकि मैं और मेरे साथ 2-3 साथी देहाती मजदूरों के भेष में वहां पहुंचकर उनका सामान अंदर ले जाने के बहाने महल के अंदर पहुंचकर महल के किसी अंधेरे कोने में छिपकर यदि मौका मिला तो हम भी अंदर से सुरंग खोदने की कोशिश करेंगे।
फिर दूसरी ओर पांडवों को वारणावत के महल की ओर आते हुए बताया जाता है। महल पर आकर उनका रथ रुकता है तो वहीं शकुनि के पांच सेवक और एक सेविका उनका स्वागत करते हैं और उन्हें महल के अंदर ले जाते हैं। उसी दौरान वज्रदत्त और उसके साथी देहाती के भेष में पांडवों का सामान उठाने वालों के साथ हो लेते हैं और महल के अंदर प्रवेश कर जाते हैं।
अंदर एक सैनिक युवराज युधिष्ठिर और महारानी कुंती सहित सभी को महल में ले जाता है। सभी महल का मुआइना करते हैं। फिर सैनिक युधिष्ठिर को उनका कक्ष बताकर कहता है कि ये आपका कक्ष और ये सेवक आपके साथ हमेशा रहेगा। महारानी का कक्ष आपके साथ वाला कक्ष है और यह विश्वस्त दासी सैरंध्री बनकर आपकी हर प्रकार की सेवा करेगी। इस बीच वज्रदत्त महल के अंदर अपने साथियों सहित वहां पहुंच जाते हैं तो सैनिक कहता है कि युवराज का सामान इधर रखना और महारानी का सामान उधर रखना। सभी सामान लेकर अंदर चले जाते हैं। फिर सभी अपना-अपना गुप्त स्थान देखकर छुप जाते हैं।
कुंती सहित सभी पांडव एक जगह सभागृह में एकत्रित्र होकर उस सैनिक से पूछते हैं कि हमारा कार्यक्रम क्या निश्चित किया गया है, पूजा के लिए कब जाना होगा?...तब सैनिक कहता है कल संध्याकाल में युवराज। युवराज पूछते हैं- प्रजाजनों से कब मिलना होगा? तब सैनिक कहता है कि कल जब भी आपकी आज्ञा होगी प्रजाजनों को आपसे मिलने की आज्ञा दे दी जाएगी। तब युवराज युधिष्ठिर कहते हैं प्रात: संध्यावंदन के पश्चात।
फिर उधर, वज्रदत्त और उसके साथी एक स्थान ढूंढकर खुद की सुरंग खोदने का कार्य करने लगते हैं। दूसरी और नदी के किनारे भी सुरंग खोदते हुए लगभग आधे रास्ते तक पहुंच जाते हैं।
इधर, सेविका महारानी कुंती के पांव दबाने के बाद जब वह लेट जाती हैं तो वह सेविका वहां से चली जाती हैं और उन सभी पांचों सेवकों के पास पहुंचती हैं तो वे पूछते है क्या बात है बड़ी देर कर दी आने में? तब वह सेविका कहती हैं वो बूढ़िया सो ही नहीं रही थी। मेरे तो हाथ थक गए उसके पैर दबाते-दबाते। यह सुनकर सभी हंसने लगते हैं। जय श्रीकृष्णा।