Shri Krishna 17 July Episode 76 : पांडव सोये रहते हैं तब आग लगा दी जाती है लाक्षागृह में
, शुक्रवार, 17 जुलाई 2020 (22:10 IST)
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 17 जुलाई के 76वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 76 ) में शकुनि के षड्यंत्र के तहत कुंती सहित पांचों पांडवों को वारणावत भेज दिया जाता है, जहां लाक्षागृह में उन्हें जलाकर मारने के योजना रहती है। इस बीच महामंत्री विदुर अपने आदमियों को भोजकर गुप्त रूप से लाक्षागृह से नदी के किनारे तक एक सुरंग खुदवा देते हैं जिसके पता पांडवों को भी नहीं चलता है। इस सुरंग से पांडवों को अग्निकांड के दौरान बचाने की योजना रहती है।
महल में महारानी कुंती के पांव दबाने के बाद जब वह लेट जाती हैं तो वह सेविका वहां से चली जाती हैं और उन सभी पांचों सेवकों के पास पहुंचती हैं तो वे पूछते है क्या बात है बड़ी देर कर दी आने में? तब वह सेविका कहती हैं वो बूढ़िया सो ही नहीं रही थी। मेरे तो हाथ थक गए उसके पैर दबाते-दबाते। यह सुनकर सभी हंसने लगते हैं।
उन सभी की ये बातें महल में छिपे विदुर का गुप्तचर मटकों के पीछे छुपकर सुन रहा था। तब सैन्य प्रमुख कहता है अच्छा अब बातों का समय नहीं है। सारा कार्यक्रम ध्यान से सुना, अभी मैं जाता हूं और बाहर जाकर दूसरे साथियों के साथ तैयारी करता हूं। मेरे जाने के पश्चात तुम अंदर से किवाड़ बंदकर लेना और अपने-अपने कक्ष के बाहर खड़े हो जाना, क्योंकि किसी भी राजकुमार को किसी भी समय किसी भी सेवा की आवश्यकता पड़ सकती है। उस समय तुम्हें तुरंत उपस्थित होना चाहिए जिससे कि उन्हें किसी भी प्रकार का शक ना हो। और सुनो! आधी रात को तुम कोयल पंछी की आवाज तुम तीन बार सुनो तो समझ लेना आग लगने ही वाली है। सो तत्काल बाहर निकलकर जितनी दूर भाग सको भाग जाना। अच्छा अब मैं जाता हूं तुम अंदर से किवाड़ बंद कर लो।...यह सारी बात विदुर का गुप्तचर वज्रदत्त सुन लेता है।
पांचों सेवक वहां से पांडवों के कक्ष के पास चले जाते हैं लेकिन सेविका वहीं भोजन करने के लिए रुक जाती है तब मटकों के पीछे छुपा वज्रदत्त वहां से निकलने का प्रयास करता है तो उसके धक्के से एक मटका गिरकर फूट जाता है। इस घटना से सेविका सतर्क हो जाती है और अपने पैरों में छुपी कटार निकाल लेती है। दोनों एक दूसरे को देख लेते हैं तो सेविका वज्रदत्त पर प्रहार करती है फिर अंत में सेविका को खुद की ही कटार लग जाती है जिसके चलते वह मर जाती है। वज्रदत्त उसके शव को छुपा ही रहा होता है कि दो सेवक वहां पहुंच जाते हैं। तब वज्रदत्त की उनसे लड़ाई होने लगती है। तभी एक वज्रदत्त का एक साथी चीखता है वीरसेन..वीरसेन शत्रु आ गया। यह सुनकर वज्रदत्त के छुपे सभी साथी बाहर निकाल आते हैं। सभी में लड़ाई होती है।
इस लड़ाई के शोर के कारण सबसे पहले भीम की नींद खुलती है। वह अपने कक्ष के बाहर निकलकर देखता है कि दो लोग आपस में लड़ होते हैं उनमें से एक उसका सेवक और दूसरा जिसे वह नहीं जानता वह वज्रदत्त होता है। भीम क्रोधित होकर वज्रदत्त को पकड़कर उठा लेता है। तभी अर्जुन की नींद भी खुल जाती है। युधिष्ठि, नकुल, सहदेव और कुंती भी जाग जाते हैं। सभी कक्ष से बाहर आकर देखते हैं कि भीम ने किसी को उठाकर भूमि पर पटक दिया है और उसका गला पकड़कर कह रहा है हत्यारे तुने हमारे सेवक की हत्या कर दी अब तू भी जीवित नहीं रहेगा।
तब वज्रदत्त कहता है राजकुमार ये आपका सेवक नहीं शत्रु था। भीम कहता है अपने प्राण बचाने के लिए तू झूठ बोल रहा है। इस पर वज्रदत्त कहता है- नहीं राजकुमार, मैं सच कह रहा हूं वो लोग धोखे से आप सबकी हत्या करना चाहते थे। राजकुमार ये एक बहाना नहीं सत्य है। ये एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है। ये घर लाख से बनाया गया है जिसे अभी आग लगा दी जाएगी।...यह सुनकर युधिष्ठिर कहता है भीम छोड़ दे इसे। भीम उसे छोड़ देता है तब युधिष्ठिर पूछता है- जो बात तुमने अभी कही उसका क्या प्रमाण है तुम्हारे पास?
तब वज्रदत्त कहता है प्रमाण? तो आइये मारे साथ। वज्रदत्त एक खंबे के पास जाकर अपनी कटार निकालता है और लोहे जैसे दिखने वाले खंभे में कटार से टूकड़े निकालकर बताता है ये देखिये ये लाख। फिर वह उस खंबे से और भी कई टूकड़े निकालकर बताता है सभी के हाथ में एक एक टूकड़ा पकड़ाकर कहता है ये देखिये। ये सारे का सारा महल लाख से बना है। यह देखकर पांचों पांडव चौंक जाते हैं और फिर वे संपूर्ण महल को चारों ओर से देखते हैं। फिर वज्रदत्त एक कपड़ा निकालकर कहता है और ये लीजिये महामंत्री विदुर का पत्र। युधिष्ठिर वह पत्र पढ़ता है।
वज्रदत्त कहता है कि महामंत्री विदुरजी ने कहा है कि आप जितनी जल्दी हो सके ब्राह्मणों का वेश धारण करके राज्य की सीमा से निकल जाइये। यदि दुर्योधन को पता चल गया कि आप इस लाक्षागृह से बच गए हैं तो वह नगर-नगर गांव-गांव अपने सैनिक भेजकर आपनी हत्या का प्रयास करेगा। ठीक समय आने पर विदुरजी आपको प्रकट होने का संदेश भेजेंगे। अब आप कृपा करके ये वस्त्र धारण कीजिये। इतनी देर में हम इधर से सुरंग खोदते हैं और उतनी देर में हमारे आदमी उधर से सुरंग खोदते हुए बस पहुंचने ही वाले हैं।
उधर, महल के बाहर महल को आग लगाने की तैयारी की जा रही होती है। इधर, महल के अंदर वज्रदत्त, उसके साथियों सहित पांचों पांडव भी वस्त्र बदलकर सुरंग खोदने लगते हैं। कुछ समय बाद उधर दूसरी ओर से सुरंग खोदने वालों को वज्रदत्त व पांडवों के द्वारा सुरंग खोदने की आवाज आने लगती है। दोनों ओर से सुरंग खोदते हुए आगे बढ़ते हैं।
महल के बाहर सभी सैनिक जलती मशालों से महल को चारों ओर से घेर लेते हैं। यह घटना श्रीकृष्ण भी देख रहे होते हैं। तब एक सैनिक कहता है कि अपने आदमियों को महल से बाहर निकालने का इशारा दे दो। तब एक सैनिक तीन बार कोयल की आवाज निकालता है लेकिन कोई भी बाहर नहीं निकलता है तो सैन्य प्रधान कहता है आक्रमण और सभी अपनी-अपनी मशालों से आग लगा देते हैं।
उधर, जैसे ही भीम आखिरी कुदाली मारता है तो दोनों ओर से खोदी जा रही सुरंग मिल जाती है। दूसरी ओर सुरंग खोदने वालों को देखकर कुंती सहित सभी पांडव प्रसन्न हो जाते हैं। फिर सभी लोग सुरंग के उस पार चले जाते हैं।
इधर महल में भयानक आग लग जाती है तो यह देखकर सभी नगरवासी एकत्रित हो जाते हैं। सुरंग के दूसरे छोर पर निकलकर वज्रदत्त, कुंती और पांचों पाडव भी महल की उस भयानक आग को दूर से खड़े होकर देखते हैं। फिर पांडव उस सुरंग का मुंह बड़े-बड़े पत्थर से बंद करके उसके ऊपर मिट्टी डाल देते हैं जिससे वह सुरंग ढंक जाती है। वज्रदत्त कहता है कि अब किसी को सुरंग का पता नहीं चलेगा। युवराज अब शीघ्र चलिये नाव वाला प्रतीक्षा कर रहा है।
उधर, वह आग लगाने वाला सैन्य प्रधान कहता है अरे! कैसे नागरिक हो, पांचों पांडव वहां आग में जल रहे हैं और तुम सब खड़े-खड़े तमाश देख रहे हो। अरे, कोई तो आग बुझाने का प्रयास करो। चलो सभी पानी के घड़ा लेकर आओ और आग बुझाओ। सभी पानी का एक-एक घड़ा लाकर आग बुझाने का प्रयास करने लगते हैं लेकिन कुछ नहीं होता है।
एक सैनिक उस प्रधान सैनिक के पास आकर कहा है बधाई हो सरदार, बधाई हो। क्या खूब अग्निदेव प्रसन्न हुए हैं। अब वह सरदार कहता है- अरे अग्निदेव की बात क्या करते हो जब हमारे शकुनि देव प्रसन्न होंगे तो फिर देखना इस सफलता का क्या इनाम मिलता है, वारे-न्यारे हो जाएंगे तुम सबके।
इधर, नाव में बैठने से पूर्व वज्रदत्त पांडवों से कहता है कि पार उतरते ही उत्तर दिशा में जाइयेगा। दस कोस जाने पर एक जगह वट के चार वृक्ष मिलेंगे। वहां से पश्चिम की ओर बीस कोस जाने के पश्चात एक पहाड़ी मिलेगी। उस पहाड़ी को पार करने के पश्चात सीधे चलते जाइये। उधर कोई नगर नहीं है केवल कुछ वनवासी जातियां रहती हैं। वहीं से हस्तिनापुर की सीमा समाप्त हो जाएगी और पांचाल देश की सीमा प्रारंभ हो जाएगी। आप पांचाल के गांवों में इसी ब्राह्मण के वेश में घुमते रहिये। वहीं महामंत्रीजी का आपको अगला संदेश मिलेगा।
उधर, महल आग में धू-धू कर जल रहा होता है तो एक नागरिक कहता है देखो बैचारी कुंती का कैसा दुर्भाग्य है कि पांचों जवान बेटों के साथ आग में जलकर मर गई। एक महिला रोते हुए कहती हैं- कहने को तो महारानी थी परंतु इस जीवन में क्या सुख पाया उसने। इस पर एक कहता है कि एक बात बड़ी विचित्र है कि इतना बड़ा महल जलकर खाक हो गया, परंतु इसमें ईंट-पत्थर का कहीं नामोनिशान नहीं? यह सुनकर दूसरा कहता है कि मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है। कहीं दुर्योधन आदि ने कोई षड्यंत्र न रचा हो।...इस तरह नागरिकों में कई तरह की बातें होती हैं।
इधर, सभी बातें समझाने के बाद वज्रदत्त कहता है कि राजमाता और राजकुमारों के श्रीचरणों में सेवक का प्रणाम। तब युधिष्ठिर कहते हैं- वज्रदत्त तुम्हारी इस सहायता के लिए हम तुम्हारे सदैव ऋणि रहेंगे। विदुर काका को हमारा प्रणाम कहता। तब अर्जुन बीच में ही कहता है कि और काका को यह भी कहना की वह भीम और अर्जुन की शक्ति पर पूरा भरोसा रखें। हम दोनों के रहते युवराज युधिष्ठिर का अधिकार कोई नहीं छीन सकता और कहना कि उनकी आज्ञा अनुसार अभी तो हम अज्ञातवास में चले जाते हैं परंतु बहुत देर भिखारियों के वेश में नहीं रह सकेंगे। अपने भाई का अधिकार मांगने के लिए अतिशीघ्र अर्जुन हस्तिनापुर के दरवाजे खटखटाने आएगा। यह सुनकर युधिष्ठिर कहते हैं कि विदुर काका से तुम ऐसी कोई भी बात मत कहना वज्रदत्त। उनसे कहना कि हम उनके संदेश की प्रतीक्षा करेंगे कि आगे हमें क्या करना चाहिए। वे जैसी आज्ञा देंगे वैसा करना हमारा धर्म होगा।.. वज्रदत्त कहता है जी युवराज।
फिर सभी नाव में सवार होकर निकल जाते हैं। तब वज्रदत्त अपने साथी वीरसेन से कहता है कि तुम इसी क्षण घोड़े पर सवार होकर निकल जाओ और महामंत्री को जाकर सूचना दो कि उनकी योजना सफल हो गई है।
उधर, महल की आग बुझे के बाद वही सैन्य प्रधान या सरदार राख में हड्डी और कंकाल के सामने बैठकर सभी नागरिकों के सामने रोने का नाटक करता है और कहता है कि अब मैं महाराज को क्या मुंह दिखाऊंगा? इस अग्निकांड ने हमारे वारणावत पर सदा के लिए कलंक लग गया। मुझे क्षमा करना महारानी कुंती, मैं आपके जीवन की रक्षा नहीं कर सका।
इधर, नाव में सवार नकुल कहता है कैसा भयानक षड्यंत्र था। यदि उस वक्त हम सब नींद सोये होते तो सबकुछ नष्ट हो जाता। तब युधिष्ठर कहता है हां नकुल, आज तो विदुर काका ने ही हम सबके प्राणों की रक्षा की। हमें उनका आभार मानना चाहिये। यह सुनकर माता कुंती कहती है उनके उपकार का धन्यवाद अवश्य करना चाहिए लेकिन जिन्होंने हम सबके प्राणों की रक्षा की है उनको भी हाथ जोड़कर नमस्कार करना चाहिए तुम्हें। तब नकुल पूछता है किन्हें मां? तब कुंती कहती हैं वो जो जीवन और मृत्यु दोनों का स्वामी है उन भगवान श्रीकृष्ण को। तब कुंती सहित सभी उनको नमस्कार करते हैं और माता कुंती कहती है अब आगे की यात्रा भी सुखद हो प्रभु और मेरे बच्चों की सदा रक्षा करो। श्रीकृष्ण कुंती की पुकार सुन लेते हैं।
इसके बाद शकुनि रोते हुए महाराज धृतराष्ट्र और गांधारी के पास जाकर यह दुखद समाचार सुनाता है कि वारणावत में महल की आग में जलकर सभी पांडव अपनी मां कुंती के साथ मर गए हैं। यह सुनकर धृतराष्ट्र और गांधारी रोने लगते हैं। जय श्रीकृष्णा।
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