रूद्र बीसी में सावन मास में मिलती है शक्ति

शांति और समृद्धि बढ़ाएगी शिव की आराधना

Webdunia
- आशीष शुक्ला

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इस सावन सोमवार की शुरूआत के साथ ही रूद्र की बीसी अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ रही है। सृष्टि के संचालन के लिए भगवान बह्मा, विष्णु और महेश के 20-20 वर्षों में से 2014 से बह्मा की बीसी शुरू होगी। ज्योतिषियों के अनुसार अपने अंतिम चरण में रूद्र की बीसी अधिक संहारकारक रहेगी। मौसम की खंडता, उपद्रता और वैश्विक अस्थिरता को इसी का प्रभाव माना जा रहा है। रूद्र की बीसी में सावन सोमवार का विशेष महत्व बताते हुए ज्योतिषाचार्य भगवान शिव की आराधना शांति और समृद्धि लाने वाली बताते हैं।

बीसी विश्वनाथ की, विषाद बड़ो वाराणसी।
बूझिए न ऐसी गति, शंकर संहार की ॥

महात्मा तुलसीदास की गीतावली में उल्लेखित इन पंक्तियों का अर्थ बताते हुए ज्योतिषाचार्य पं. देवेन्द्र कुमार पाठक कहते हैं कि सृष्टि के संचालन के लिए भगवान उत्पत्तिकर्ता बह्मा, पालनकर्ता विष्णु और संहारक भगवान शंकर के लिए 20-20 वर्ष बाँटे गए हैं पूर्व में भगवान विष्णु की बीसी रही और वर्तमान में 1995 से शुरू हुई रूद्र की बीसी इन सावन सोमवारों से अंतिम चरण की ओर है जो कि अधिक संहारक है। अवर्षा की स्थिति, उपद्रव, प्राकृतिक आपदाएँ और अस्थिरता की स्थिति इसी के चलते निर्मित हो रही हैं।

कलि बारहई बार दुकाल पड़े।
अन्न बिना बहु लोग मरे॥

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रामचरित मानस की चौपाई का अर्थ बताते हुए पं. देवेंद्र पाठक कहते हैं कि कहीं पर अच्छी वर्षा तो कहीं अवर्षा और कहीं बाढ़ जैसी स्थितियाँ इसे ही 'दुकाल' कहा जाता है। शिव बीसी के पिछले वर्षों को देखे तो यही स्थिति लगातार बनी हुई है और अंतिम चरण में यह अधिक संहारक होगी। इस कोप को कम करने के लिए सावन माह में शिव की आराधना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि अन्य माहों में यह शक्ति नहीं होती।

पार्थिव शिवपूजन विशेष रूप से दूध, दही, घी, शहद, शर्करा, चावल और पुष्प, गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए। शिव यंत्र देखकर माहभर एक ही समय में निश्चित बेलपत्र एवं निश्चित अर्कपुष्प से अर्चना करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। श्रावण मास के मंगलवार को अविवाहिता लड़कियों को मंगला गौरी का व्रत मनोकामना पूर्ण करने वाला रहेगा।
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