गुरु ग्रह के लिए पूजें प्रयागेश्वर महादेव को

58वें महादेव लिंग प्रयागेश्वर (गुरु ग्रह आधिपत्य)

ज्योतिर्विद सीता शर्मा
पौराणिक कथा : स्कंदपुराण के अवंतिखण्ड में बद्रिकाश्रम में तपस्यारत प्रियव्रत ने नारद से कोई प्रेरक प्रसंग सुनाने को कहा।

नारद ने कहा कि एक बार उन्होंने श्वेत द्वीप सरोवर में एक कन्या को देखा और उसका परिचय पूछा। तब उसने आंखें बंद कर ली। तभी उनका समस्त ज्ञान नष्ट हो गया। तब उन्होंने कन्या स्वरूप देवी को प्रणाम कर क्षमा प्रार्थना की, तो उसके शरीर में तीन पुरुष आकृतियां दिखाई देने लगी। कन्या ने कहा कि वह सावित्री है।

आकृतियां ऋग, यजु और साम नामक तीन वेद हैं। तब नारद ने प्रयाग जाकर तपस्या शुरू कर दी। तब विष्णु प्रकट हुए और कहा कि वे महाकाल वन चलें। वहां दिव्यलिंग के दर्शन हुए, जिसमें ब्रह्माजी और सभी वेद सहित देवी सावित्री भी दिखाई दी।

दर्शनों से उन्हें सभी शास्त्रों का ज्ञान पुनः स्मरण हो गया। तब से लिंग प्रयागेश्वर के रूप में ख्यात हुए। यह मंदिर उज्जैन स्थित पिपली नाका क्षेत्र में है।

विशेष- शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूजन और अभिषेक से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है व श्रावण मास में गुरु ग्रह की शांति के लिए संतरे के रस रूद्राभिषेक करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

दान- सोना, चने की दाल, पीला वस्त्र, हल्दी।

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