24 नवंबर : गुरु तेगबहादुर सिंह जी का शहीदी दिवस

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गुरु तेगबहादुर साहब बाल्यावस्था से ही संत स्वरूप गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर व निर्भीक स्वभाव के थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा मीरी-पीरी के मालिक गुरु-पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब की छत्र छाया में हुई। इसी समय इन्होंने गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों तथा घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की। 


 
हरिकृष्ण राय जी (सिखों के 8वें गुरु) की अकाल मृत्यु हो जाने की वजह से गुरु तेगबहादुर जी को गुरु बनाया गया था। मात्र चौदह वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया। इस  वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम तेगबहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया। 
 
गुरु तेगबहादुर सिंह जहां भी गए, उनसे प्रेरित होकर लोगों ने न केवल नशे का त्याग किया, बल्कि तंबाकू की खेती भी छोड़ दी। उन्होंने देश को दुष्टों के चंगुल से छुड़ाने के लिए जनमानस में विरोध की भावना भर, कुर्बानियों के लिए तैयार किया और मुगलों के नापाक इरादों को नाकामयाब करते हुए कुर्बान हो गए। 
 
गुरु तेगबहादुर सिंह जी द्वारा रचित बाणी के 15 रागों में 116 शबद (श्लोकों सहित) श्रीगुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। 
 
गुरु तेगबहादुर साहब का जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था। उनके बचपन का नाम त्यागमल था। उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था।  सिक्खों के नौंवें गुरु तेगबहादुर सिंह ने अपने युग के शासन वर्ग की नृशंस एवं मानवता विरोधी नीतियों को कुचलने के लिए बलिदान दिया। कोई ब्रह्मज्ञानी साधक ही इस स्थिति को पा सकता है। मानवता के शिखर पर वही मनुष्य पहुंच सकता है, जिसने 'पर में निज' को पा लिया हो।
 
गुरु तेगबहादुर सिंह में ईश्वरीय निष्ठा के साथ समता, करुणा, प्रेम, सहानुभूति, त्याग और बलिदान जैसे मानवीय गुण विद्यमान थे। शस्त्र और शास्त्र, संघर्ष और वैराग्य, लौकिक और अलौकिक, रणनीति और आचार-नीति, राजनीति और कूटनीति, संग्रह और त्याग आदि का ऐसा संयोग मध्ययुगीन साहित्य व इतिहास में बिरला है।
 
 

 


एक प्रसंग के अनुसार सिखों के आठवें गुरु हरकृष्ण रायजी के देहांत के बाद कई दावेदारों में से कुछ ने खुद को गुरु घोषित कर दिया। उसी दौरान समुद्र के रास्ते हिन्दुस्तान लौट रहे माखन शाह नामक एक व्यापारी का जहाज तूफान में फंस गया। उसने गुरु का स्मरण कर संकल्प किया कि तट पर सुरक्षित पहुंचने पर वह गुरु को पांच सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट करेगा। 
 
इसके बाद तूफान थम गया और जहाज सकुशल किनारे लग गया। तट पर उतरते ही माखन शाह को गुरु हरकृष्णजी के देहांत और गुरु पद के दावेदारों के बारे में पता चला। उसने तय किया कि वह असली गुरु की खोज कर उन्हें स्वर्ण मुद्राएं भेंट करके ही दम लेगा। 
 
वह बकाला गांव पहुंचा। एक-एक कर वह सभी स्वयंभू गुरुओं के डेरे पर जाता और उन्हें एक स्वर्ण मुद्रा भेंट करता। लेकिन हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी क्योंकि कोई भी उसके आने का असली मकसद नहीं जान पाया।
 
अंत में जब वह गुरु तेगबहादुर से मिलने पहुंचा और उसने थैली से एक स्वर्ण मुद्रा निकालकर उनके चरणों में रख दी। 

गुरुजी बोले- पांच सौ 500 स्वर्ण मुद्राओं का संकल्प कर सिर्फ एक ही दे रहे हो? यह सुनकर माखन शाह फूला नहीं समाया। उसने सिखों के नौवें गुरु को जो खोज लिया था। उसने गुरुजी को पांच सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कर उनका शुक्रिया अदा किया।

गुरु तेगबहादरसिंह ने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया और सही अर्थों में 'हिन्द की चादर' कहलाए। 24 नवंबर को गुरु तेगबहादुर सिंह जी का शहीदी दिवस मनाया जाता है। 
 
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