धर्म योद्धा गुरु गोबिंदसिंह

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
WD
' सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ'

गुरु गोबिंदसिंह मूलतः धर्मगुरु थे। अस्त्र-शस्त्र या युद्ध से उनका कोई वास्ता नहीं था, लेकिन औरंगजेब को लिखे गए अपने 'अजफरनामा' में उन्होंने इसे स्पष्ट किया था- ' चूंकार अज हमा हीलते दर गुजशत, हलाले अस्त बुरदन ब समशीर ऐ दस्त।'

अर्थात जब सत्य और न्याय की रक्षा के लिए अन्य सभी साधन विफल हो जाएँ तो तलवार को धारण करना सर्वथा उचित है। धर्म, संस्कृति व राष्ट्र की शान के लिए गुरु गोबिंदसिंह ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इस अजफरनामा (विजय की चिट्ठी) में उन्होंने औरंगजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।

गुरु गोबिंदसिंहजी ने कहा है कि ' जब-जब होत अरिस्ट अपारा, तब-तब देह धरत अवतारा।' अर्थात जब-जब धर्म का ह्रास होकर अत्याचार, अन्याय, हिंसा और आतंक के कारण मानवता खतरे में होती है तब-तब भगवान दुष्टों का नाश और धर्म की रक्षा करने के लिए इस भूतल पर अवतरित होते हैं।

सिखों के दसवें गुरु गोबिंदसिंहजी स्वयं एक ऐसे ही महापुरुष थे, जो उस युग की बर्बर शक्तियों का नाश करने के लिए अवतरित हुए। वे क्रांतिकारी युगपुरुष थे। वे धर्म-प्रवर्तक और एक शूरवीर राष्ट्र नायक थे। वे सत्य, न्याय, सदाचार, निर्भीकता, दृढ़ता, त्याग एवं साहस की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने भारतीय अध्यात्म परंपरा में साहस का समावेश करके अपने धर्म, अपने देश, अपनी स्वतंत्रता और अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी।

बाबा बुड्ढ़ा ने गुरु हरगोविंद को 'मीरी' और 'पीरी' दो तलवारें पहनाई थीं। पहली आध्यात्मिकता की प्रतीक थी, तो दूसरी सांसारिकता की। परदादा गुरु अर्जुनदेव की शहादत, दादागुरु हरगोविंद द्वारा किए गए युद्ध, पिता गुरु तेगबहादुर की शहीदी, दो पुत्रों का चमकौर के युद्ध में शहीद होना, दो पुत्रों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया जाना वीरता व बलिदान की विलक्षण मिसालें हैं।

खालसा पंथ :
औरंगजेब सहित अन्य राजाओं के अत्याचार से तंग आकर गुरु गोबिंदसिंहजी ने सिखों को एकजुट करके एक नई धर्मशक्ति को जन्म दिया। उन्होंने सिख सैनिकों को सैनिक वेश में दीक्षित किया। 13 अप्रैल 1699 को वैशाखी वाले दिन गुरुजी ने केशगढ़ साहिब आनंदपुर में पंच पियारों द्वारा तैयार किया हुआ अमृत सबको पिलाकर खालसा को ऊर्जा दी। खालसा का मतलब है वह सिख जो गुरु से जुड़ा है। वह किसी का गुलाम नहीं है, वह पूर्ण स्वतंत्र है।

पाँच ककार :
युद्ध की प्रत्येक स्थिति में सदा तैयार रहने के लिए उन्होंने सिखों के लिए पाँच ककार अनिवार्य घोषित किए, जिन्हें आज भी प्रत्येक सिख धारण करना अपना गौरव समझता है:-

(1) केश : जिसे सभी गुरु और ऋषि-मुनि धारण करते आए थे।
(2) कंघा : केशों को साफ करने के लिए।
(3) कच्छा : स्फूर्ति के लिए।
(4) कड़ा : नियम और संयम में रहने की चेतावनी देने के लिए।
(5) कृपाण : आत्मरक्षा के लिए।

अन्य आलेख
गुरु गोबिंदसिंहजी का जीवन परिचय
खालसा पंथ की स्थापना का त्योहार वैशाखी
हिन्द की चादर गुरु तेगबहादुर

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

4 भयंकर योग के चलते 5 राशियों को रहना होगा इस साल संभलकर

बढ़ता ही जा रहा है गर्मी का तांडव, क्या सच होने वाली है विष्णु पुराण की भविष्यवाणी

भविष्यवाणी: ईरान में होगा तख्तापलट, कट्टरपंथी खामेनेई की ताकत का होगा अंत!

ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा कहां से निकलकर कहां तक जाती है?

जब मेहर बाबा ने पहले ही दे दिया था विमान दुर्घटना का संकेत, जानिए क्या था वो चमत्कार?

सभी देखें

धर्म संसार

विश्व योग दिवस 2025: पढ़ें 15 पावरफुल स्लोगन, स्वस्थ रखने में साबित होंगे मददगार

Ahmedabad Plane Crash: प्लेन का लोहा पिघल गया लेकिन कैसे बच गई भागवत गीता?

वर्ष का सबसे लंबा दिन 21 जून को, जानें कारण और महत्व

भविष्यवाणी: 5 भविष्यवाणियां सच होकर ही रहेगी, कोई टाल नहीं सकता

क्या भविष्य मालिका की भविष्यवाणी जुड़ी है जगन्नाथ मंदिर के 10 संकेतों से?