कौन होते हैं अघोरी? कैसे करते हैं साधना, पढ़ें चौंकाने वाले रहस्य

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सिंहस्थ के निकट आते ही उज्जैन में साधु-संतों ने डेरा जमा लिया है। इस विशाल महा-आयोजन में सबसे ज्यादा अगर कोई आकर्षण का विषय है तो वह है अघोरी। वह जो कापालिक क्रिया करते हैं। वह जो तांत्रिक साधना श्मशान में करते हैं और वह जो भस्म से लिपटे होते हैं जिनसे आमजन स्वाभाविक तौर पर डरते हैं। 



घोरी-अघोरी-तांत्रिक श्‍मशान के सन्नाटे में जाकर तंत्र-क्रियाओं को अंजाम देते हैं। घोर रहस्यमयी साधनाएं करते हैं। वास्तव में अघोर विद्या डरावनी नहीं है। उसका स्वरूप डरावना होता है। अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो।


अघोर बनने की पहली शर्त है अपने मन से घृणा को निकालना। अघोर क्रिया व्यक्त को सहज बनाती है। मूलत: अघोरी उसे कहते हैं जो शमशान जैसी भयावह और विचित्र जगह पर भी उसी सहजता से रह सके जैसे लोग घरों में रहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि अघोरी मानव के मांस का सेवन भी करता है। ऐसा करने के पीछे यही तर्क है कि व्यक्ति के मन से घृणा निकल जाए। जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है। लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफ़न से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है।
 
अघोर विद्या भी व्यक्ति को हर चीज़ के प्रति समान भाव रखने की शिक्षा देती है। अघोरी तंत्र को बुरा समझने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि इस विद्या में लोक कल्याण की भावना है। अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है।
 
अघोर विद्या के जानकारों का मानना है कि जो असली अघोरी होते हैं वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका नहीं रखते, वे केवल अपनी साधना में ही व्यस्त रहते हैं। अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है।

क्या है अघोरपंथ
 
साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। उनका अपना विधान है, अपनी विधि है, अपना अलग अंदाज है जीवन को जीने का। अघोरपंथी साधक अघोरी कहलाते हैं। खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं होता। अघोरी लोग गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों का भक्षण करते हैं। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसीलिए अघोरी शमशान वास करना ही पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है।





 
अघोर पंथ की उत्पत्ति और इतिहास
 
अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया। अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं। इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।

क्या करते हैं अघोरी 
 
अघोर संप्रदाय के साधक समदृष्टि के लिए नर मुंडों की माला पहनते हैं और नर मुंडों को पात्र के तौर पर प्रयोग भी करते हैं। चिता के भस्म का शरीर पर लेपन और चिताग्नि पर भोजन पकाना इत्यादि सामान्य कार्य हैं। अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता अर्थात महल या श्मशान घाट एक समान होते हैं।



प्रमुख अघोर स्थान
 
वाराणसी या काशी को भारत के सबसे प्रमुख अघोर स्थान के तौर पर मानते हैं। भगवान शिव की स्वयं की नगरी होने के कारण यहां विभिन्न अघोर साधकों ने तपस्या भी की है। यहां बाबा कीनाराम का स्थल एक महत्वपूर्ण तीर्थ भी है। काशी के अतिरिक्त गुजरात के जूनागढ़ का गिरनार पर्वत भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। जूनागढ़ को अवधूत भगवान दत्तात्रेय के तपस्या स्थल के रूप में जानते हैं।

अघोरियों का स्वभाव 
 
अघोरियों के बारे में मान्यता है कि बड़े ही रूखे स्वभाव के होते हैं लेकिन भीतर उनमें जन कल्याण की भावना छुपी होती है। अगर किसी पर मेहरबान हो जाए तो अपनी सिद्धि का शुभ फल देने में भी नहीं हिचकते और अपनी तांत्रिक क्रियाओं का रहस्य भी उजागर कर देते हैं। यहां तक कि कोई उन्हें अच्छा लग जाए तो उसे वह अपनी तंत्र क्रिया सीखाने को भी राजी हो जाते हैं लेकिन इनका क्रोध प्रचंड होता है।





इनकी वाणी से सावधान रहना चाहिए। इनके आशीर्वाद शीघ्र प्रतिफलित होते हैं। यह अगर खुश हो जाए तो आपकी किस्मत बदलने की क्षमता रखते हैं। आमतौर पर यह किसी से खुलकर बात नहीं करते। अपने आप में मगन रहने वाले यह तांत्रिक, समाज से दूर रहते हैं, हिमालय की कठिन तराइयों में इनका वास होता है। कहते हैं इन्हें साक्षात शिव भी दर्शन देते हैं। और जब तक इन्हें ना छेड़ा जाए किसी का अहित नहीं करते। 

अघोरी साधना कहां होती है 
 
अघोरी श्‍मशान घाट में तीन तरह से साधना करते हैं - श्‍मशान साधना, शिव साधना, शव साधना। ऐसी साधनाएं अक्सर तारापीठ के श्‍मशान, कामाख्या पीठ के श्‍मशान, त्र्यम्‍बकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्‍मशान में होती है। अघोर पंथियों के 10 तांत्रिक पीठ माने गए हैं। 


अघोरी साधना कैसे की जाती है 
 
शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है। शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्‍मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।


अघोरपंथ की तीन शाखाएं 
 
अघोरपंथ की तीन शाखाएं प्रसिद्ध हैं - औघड़, सरभंगी, घुरे। इनमें से पहली शाखा में कल्लूसिंह व कालूराम हुए, जो किनाराम बाबा के गुरु थे। कुछ लोग इस पंथ को गुरु गोरखनाथ के भी पहले से प्रचलित बतलाते हैं और इसका सम्बन्ध शैव मत के पाशुपत अथवा कालामुख सम्प्रदाय के साथ जोड़ते हैं।

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