नेमार की नहीं, ब्राजील की 'रीढ़ की हड्‍डी' टूट गई

अनवर जमाल अशरफ
टीम सेमीफाइनल में पहुंचे और अखबारों के पहले पन्ने पर जीत की खबर नहीं, बल्कि किसी खिलाड़ी के घायल होने की खबर हो। फुटबॉल क्या, किसी भी खेल में ऐसे मौके शायद ही कभी आते हों। शर्त यह है कि उस खिलाड़ी का नाम नेमार न हो।

कोलंबिया के खिलाफ क्वार्टर फाइनल मुकाबले में भले ही नेमार ने गोल न किया हो लेकिन टीम के लिए शानदार पास बनाए। आखिरी लम्हे में कोलंबिया के खुआन सुनीगा ने पीछे से उनकी पीठ पर ऐसा घुटना मारा कि नेमार की रीढ़ की हड्डी टूट गई।

उम्मीद तो वैसे भी थी कि वर्ल्ड कप जीतने के बाद साथी खिलाड़ी नेमार को अपने पांव पर बाहर नहीं जाने देंगे, बल्कि कंधों पर उठाकर ले जाएंगे, पर भला यह किसने सोचा था कि उन्हें बाहर ले जाने के लिए स्ट्रेचर की जरूरत पड़ेगी। यह बात दावे के साथ नहीं कही जा सकती कि क्या सुनीगा ने जानबूझ कर ऐसा फाउल किया लेकिन यह बात तय है कि ऐसे फाउल के बाद उन्हें रेड कार्ड मिलना चाहिए था।

फीफा के इस वर्ल्ड कप में रेफरियों ने काफी नरमी बरती है और इस मौके पर ब्राजील के पूर्व खिलाड़ी जीको की टिप्पणी ध्यान आती है, जब उन्होंने कहा था कि इस खेल में एकाध पीले कार्ड तो ब्राजीली खिलाड़ियों को भी मिलने चाहिए थे। रेफरी कमेटी यह कह चुकी है कि वह खिलाड़ियों के प्रति बहुत उग्र रवैया नहीं अपनाना चाहती है लेकिन ऐसे चोटों के बाद तो उसे दोबारा विचार करना ही होगा।

इस वर्ल्ड कप में चोट की वजह से बाहर होने वाले नेमार पहले खिलाड़ी हैं और फुटबॉल की यह रिवायत रही है कि रेफरी की नजर से बच जाने के बाद आम तौर पर खिलाड़ी के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती। लेकिन इसी वर्ल्ड कप में दांत काटने वाले उरुग्वे के लुइस सुआरेस के खिलाफ मैच के बाद कार्रवाई की जा चुकी है।

इसी आधार पर सुनीगा के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि इस बात में कोई शक नहीं कि उन्होंने हिंसक तरीके से फाउल किया, भले ही वह खुद भी नहीं जानते होंगे कि इसका नतीजा यह निकलेगा। इस तरह के मामलों में नरमी या रहम की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

जहां तक ब्राजीली टीम का सवाल है, इस बात में कोई शक नहीं कि नेमार की रुखसती के बाद वह कमजोर पड़ी है। खास तौर पर तब भी, जब कप्तान डी सिल्वा भी दो पीले कार्ड खा चुके हैं और जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल में नहीं खेल पाएंगे।

सिर्फ 22 साल के नेमार ने इस वर्ल्ड कप में धूम धड़ाके के साथ शुरुआत की थी और उन्होंने कभी जिदान की ट्रिक तो कभी माराडोना की सी ड्रिबलिंग और तेजी दिखाई। अगले मैच में जर्मनी जैसी टीम है, जिसे प्रतिभाओं के समुच्च्य के तौर पर देखा जाता है।

ब्राजील की अब तक की रणनीति दो स्तर पर दिख रही थी। पहला, नेमार के साथ गेंद आगे बढ़ाई जाई, दूसरा, जब गेंद आगे बढ़ने में कामयाबी न मिले, तो गेंद नेमार की तरफ बढ़ा दी जाए और पहले प्लान पर लौट जाया जाए। तो क्या नेमार के बगैर टीम किसी काम की नहीं।

ब्राजीली कोच स्कोलारी के लिए यह बेहद बड़ी चुनौती है। उन्हें साबित करना है कि टीमें हमेशा एक खिलाड़ी से बड़ी होती हैं। डी सिल्वा से भी और नेमार से भी। उन्हें टीम के बाकी बचे खिलाड़ियों में यह जान फूंकनी होगी कि उनकी टीम नेमार के बगैर भी जीत सकती है। चाहें तो मिसाल 1962 से ले लें, जब पेले बीच टूर्नामेंट में घायल हो गए लेकिन ब्राजील ने खिताब जीता। और दूसरे शब्दों में, 'पैसे भी तो इसी बात के हैं।'

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